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- संघीय ढांचे का राग...
हृदयनारायण दीक्षित।
भारत में संविधान की सत्ता है। संविधान सर्वोच्च विधि है, लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा है कि वह संविधान को फिर से लिखने के लिए संघर्ष चलाएंगे। उनके अनुसार भारत में नए संविधान का मसौदा तैयार करने की जरूरत है। कल्पना करें कि यही बयान भाजपा की ओर से आया होता तो सभी दल आसमान सिर पर उठा लेते। वस्तुत: नए संविधान की मांग आपत्तिजनक है। राव ने संघीय ढांचे को मजबूत बनाने की बात भी कही है, लेकिन उन जैसे नेताओं ने ही संघीय ढांचे का उल्लंघन किया है। कई राज्यों ने केंद्र की जनहितकारी योजनाओं को भी लागू नहीं किया है। उन्होंने आयुष्मान भारत से लेकर 'वन नेशन वन कार्ड' के सिद्धांत को लागू करने में हीलाहवाली की। राव ने रामानुजाचार्य की स्मृति में निर्मित 'स्टेचू आफ इक्वालिटी' के लोकार्पण अवसर पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति के बावजूद समारोह में हिस्सा नहीं लिया। प्रधानमंत्री ने चक्रवात से निपटने के लिए बैठक की, लेकिन बंगाल के मुख्य सचिव उसमें आए ही नहीं। यह संघीय ढांचे का सरासर उल्लंघन है। कई राज्यों ने कृषि कानूनों का विरोध किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में तीनों कानूनों की प्रतियां फाड़ दी थीं। यह कृत्य सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन है। इसी प्रकार पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने केंद्रीय कानूनों के विरोध में विधानसभाओं से प्रस्ताव पारित कराए, जबकि संविधान के अनुसार राज्य केंद्रीय कानून मानने के लिए विवश हैं। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बंगाल, राजस्थान, केरल और पंजाब ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराए थे। ऐसे कृत्य संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन है। संविधान मुख्यमंत्रियों को केंद्रीय कानूनों की अवहेलना का अधिकार नहीं देता। संसद द्वारा अधिनियमित कानून को मानने से इन्कार संविधान का उल्लंघन है। संसद द्वारा अधिनियमित विधि और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधि में विसंगति संभव है। अनुच्छेद 254 में उल्लिखित है कि 'किसी राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधि का कोई हिस्सा संसद द्वारा बनाई गई विधि के विरोध में है तो संसद द्वारा बनाई गई विधि प्रभावी होगी। फिर भी राज्यों ने इस व्यवस्था का उल्लंघन किया।