सम्पादकीय

अबकी बार कांगड़ा में

Rani Sahu
17 April 2022 7:17 PM GMT
अबकी बार कांगड़ा में
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राजनीति को जब चुनाव याद आते हैं, तो हिमाचल की हर गली आबाद हो जाती है

राजनीति को जब चुनाव याद आते हैं, तो हिमाचल की हर गली आबाद हो जाती है और यही इस वक्त की नज़ाकत में कहा और सुना जा रहा है। मंडी में अवतरित आम आदमी पार्टी अब अपना लंगर कांगड़ा में लगा रही है, तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के तोरण द्वार भी इसी क्षेत्र में सज रहे हैं। स्वयं मुख्यमंत्री कांगड़ा में दौरे बढ़ाकर इस बार हिमाचल दिवस का शृंगार भी इसी संसदीय क्षेत्र में कर गए हैं। यह दीगर है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री व दो बार मुख्यमंत्री रह चुके शांता कुमार अब कांगड़ा के बजाय ऐसे पन्नों पर सफर करते हैं, जो वर्तमान सरकार की तारीफ को ही प्रमाणित करते हैं। भाजपा के वर्तमान नक्षत्रों में शांता कुमार जहां भी हों, वह यह मानते हैं कि हिमाचल के सितारे जगत प्रकाश नड्डा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की वजह से बुलंद हैं, हालांकि वयोवृद्ध नेता इसे साबित करते तर्क नहीं दे पाते। यह इसलिए भी कि बतौर सांसद उन्होंने जो ड्रीम प्रोजेक्ट देखे, वे सभी धूल धूसरित हो गए।

चंबा का सीमेंट प्लांट डिब्बे में बंद है। पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेलवे लाइन अपने अस्तित्व के अभावग्रस्त दिन देख रही है, तो शांता कुमार का ब्रॉडगेज प्रोजेक्ट पता नहीं कहां चला गया। कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार परियोजना न जाने किस संदूक में बंद है, तो केंद्रीय विश्वविद्यालय अनुराग ठाकुर की अमानत में पलते हुए कांगड़ा के दो टुकड़े कर चुका है। इतना ही नहीं, कांगड़ा को जोड़ती पठानकोट-मंडी व शिमला-धर्मशाला फोरलेन परियोजनाएं आज भी प्राथमिकता के अभाव में उपेक्षित हैं। इसमें दो राय नहीं कि नड्डा की बदौलत बिलासपुर में एम्स आ गया। अनुराग की बदौलत हमीरपुर मेडिकल कालेज, ऊना ट्रिपल आईटी व रेल परियोजनाएं आगे बढ़ते हुए हमीरपुर की परिक्रमा कर रही हैं, तो मुख्यमंत्री जयराम ने शिवधाम जैसी परियोजना से मंडी को ताज पहना दिया। मंडी में मेडिकल यूनिवर्सिटी, कलस्टर यूनिवर्सिटी, एक और मंडी विश्वविद्यालय तथा क्षेत्रीय कार्यालयों की पुष्पमाला तैयार कर दी। बेशक इन तीनों नेताओं के कारण हिमाचल के नक्षत्र शांता को नजर आते हैं, लेकिन वह ढूंढ कर बताएं कि उनका कांगड़ा अब केवल पालमपुर नगर निगम या सौरभ कालिया वन विहार का पुनर्निर्माण देखकर कितना प्रसन्न है। क्या टांडा मेडिकल कालेज का रुतबा इस लायक हो गया कि क्षेत्र की जनता सुरक्षित है और शांता जी तो खुद मोहाली के निजी चिकित्सा संस्थान की तारीफ में जज्बात उंडेलते हुए मान चुके हैं कि कांगड़ा में जान बचाने के लाले पड़ गए थे। उन्होंने अपनी पत्नी को महज इसलिए खोया, क्योंकि टीएमसी पर भरोसा किया था, लेकिन बाद में खुद निजी अस्पताल में शिफ्ट होना पड़ा था। ऐसे में क्या कांगड़ा अब शांता से सहमत होकर मिशन रिपीट करेगा।
क्या अनुराग की केंद्रीय भूमिका या जगत प्रकाश नड्डा के राष्ट्रीय ताज पहन कर कांगड़ा के प्रति सियासी इनसाफ हो चुका है। कांगड़ा खुद से पूछ रहा है कि भाजपा की तरफ से उसका सबसे बड़ा नेता कौन है। क्या कांगड़ा के सांसद किशन कपूर पूरे संसदीय क्षेत्र को बचा पाएंगे या धर्मशाला से अपने बेटे के टिकट के लिए पंजा ही लड़ाएंगे। कांगड़ा का आक्रोश फतेहपुर उपचुनाव में जाहिर हुआ या शांता के नए नवेले नगर निगम में भाजपा की हार का सदमा किसी को महसूस ही नहीं हुआ। ऐसे में कांगड़ा की याद अगर आम आदमी पार्टी को आई भी, तो कुछ देर कर दी आते-आते, फिर भी केजरीवाल का आगमन कुछ तो बटोर ही लेगा। कांग्रेस की छवि कांगड़ा में हर बार सत्ता परिवर्तन के समय याद की जाती रही है, लेकिन नेतृत्व के हिसाब से यहां भी पार्टी की खिचड़ी भ्रमित कर रही है। बहरहाल प्रदेश के बड़े नेता फिर कांगड़ा को खिलौना मानकर खेलने आ रहे हैं। एक टूटे हुए खिलौने से भाजपा के नेता कितना खेल पाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कांगड़ा को कमजोर इकाई बनाने में इसी जिला के ही नेताओं का हाथ है। शांता कुमार भी इस दोष से मुक्त नहीं हो सकते। कांगड़ा ने बार-बार टूटकर भी भाजपा और कांग्रेस के पलड़े ही भारी किए, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी के आने से कुछ तो परिदृश्य बदलेगा। कांगड़ा से भाजपा और कांग्रेस की नेतृत्वविहीनता को देखते हुए अगर 'आप' इस खालीपन को भर दे, तो यकीनन यह सियासी भूकंप ही होगा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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