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सम्पादकीय
दिलों को सुकून देती कश्मीर से आई सेना की इस तस्वीर के कई मायने हैं
Gulabi Jagat
30 April 2022 7:42 AM GMT
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कश्मीर से आई सेना की तस्वीर
संजय वोहरा |
रमज़ान (Ramadan) के पवित्र महीने और नवरात्रि के दौरान जब दिन भर भूखे रह कर अपने ईष्ट के प्रति समर्पण किया जाता हो तब फिज़ा में मज़हब के नाम पर नफ़रत दिखाई देना किसी भी सभ्य समाज़ के लिए सबसे बड़ी तकलीफ की बात है. मस्जिद की दीवारों और मीनारों पर भगवे ध्वज लेकर विजयी भाव से चढ़े शोहदों, कानफोडू संगीत बजाकर रामनवमी का जुलूस निकालते लोगों पर पत्थरों की बरसात करने वाली तस्वीरों ने बहुतों को शारीरिक और मानसिक तौर पर चोटिल किया है. यही नहीं दंगे-फसाद और इस पर बदले की भावना से की गई कार्रवाई और सियासत के बुलडोज़र की तस्वीरों ने तो बाद में माहौल को चरम तक दूषित किया. खूब शोर शराबे के साथ सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता फैलाने वाली इन तस्वीरों के बीच हौले से आई एक खूबसूरत तस्वीर को उतनी तवज्जो नहीं मिली जितना आज के माहौल में इसकी दरकार है. ये तस्वीर धरती की जन्नत कहलाने वाले उस कश्मीर से आई है जो आतंकवाद के ज़हर से मुक्त होने के लिए लम्बे समय से छटपटा रहा है.
दिलों को सकून देने वाली ये तस्वीर केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की राजधानी श्रीनगर से आई है और ये कई मायने लिए हुए है. तस्वीर में भारतीय सेना की चिनार कोर (Chinar Corps) के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल देवेन्द्र प्रताप पांडे नमाज़ पढ़ने वाली मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं. यही नहीं लेफ्टिनेंट जनरल पांडे के साथ कुछ और गैर मुस्लिम अधिकारी भी हैं. इनमें एक अन्य वरिष्ठ सैनिक अधिकारी सिख भी हैं जो ठीक लेफ्टिनेंट जनरल पांडे के बगल में हैं. दिन भर भूखे प्यासे रहकर भी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद रहने वाले सैनिकों के लिए रमज़ान के महीने में शाम को रोज़ा खोलने से पहले पढ़ी जाने वाली मगरिब की नमाज़ खास अहमियत रखती है.
ये तस्वीर भी ऐसे ही मौके की है जो हाल ही में सेना के आधिकारिक हैंडल से ट्वीट की गई. नमाज़ पढ़ते भारतीय सैनिकों की ये तस्वीर श्रीनगर में एक सैन्य परिसर में ही ली गई है. सेना में कार्यरत लोगों, उनके परिवारों और सेना को करीब से जानने वालों के लिए ये तस्वीर भले ही बहुत एक्साईट करने वाली सामग्री न हो, लेकिन इसने तारीफ़ तो बटोरी ही है. मुस्लिम सैनिकों के साथ गैर मुस्लिम सैनिकों के भी नमाज़ पढ़ने की सोशल मीडिया पर आई इस तस्वीर ने काफी लोगों का ध्यान खींचा है. शायद आधिकारिक तौर पर ये तस्वीर पोस्ट भी इसी ख़ास मकसद से की भी गई होगी.
भारतीय सेना में सभी धर्मों को सम्मान दिया जाता है
भारतीय सेना में तमाम मुख्य धर्मों को बराबर का सम्मान दिया जाता है. सभी त्यौहार यहां औपचारिक भी और अनौपचारिक भी, दोनों तरीके से मनाए जाते हैं. यहां बाकायदा सभी धर्मों के पूजा-पाठ कराने वालों को भर्ती किया जाता है. विभिन्न धर्मों में आस्था और ताल्लुक रखने वाले सैनिकों की इकाई में सर्वधर्म पूजा स्थल देखने को मिलते हैं, जहां दीवार पर भगवान राम, शिव, कृष्ण या किसी हिन्दू देवी देवता की तस्वीर होंगी तो वहीं गुरु नानक देव के दर्शन भी होंगे, यहां मानवता के लिए सूली पर चढ़े जीसस भी होंगे और उनका पवित्र क्रॉस भी मिलेगा. कीर्तन करने की जगह है तो नमाज़ पढ़ने का स्थान भी मौजूद मिलेगा. सेना ही नहीं अन्य भारतीय वर्दीधारी संगठनों में भी कमोबेश ऐसा माहौल और जगह मिल जाएगी. जब शहीद सैनिकों की याद में युद्ध स्मारक पर पुष्पचक्र अर्पित करने की परम्परा होती है तो वहां पवित्र मन्त्रों के उच्चारण से लेकर कुरआन की आयतें सुनाई देती ही हैं, गुरबाणी के मुताबिक़ अरदास भी होती है. किसी भी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, सेक्युलर और स्वतंत्र व्यवस्था के लिए इस सद्भाव का सेना में खासतौर पर होना महत्वपूर्ण भी है और आवश्यक भी है. भारतीय सेना में इसका अंश काफी है और पुराना है.
धार्मिक सद्भाव को मजबूती देने वाली श्रीनगर से आई ये तस्वीर न सिर्फ आज के माहौल के हिसाब से देश को एक नया संदेश दे रही है बल्कि उस पाकिस्तान को भी एक सटीक जवाब दे रही है जहां भारत के खिलाफ नफरत फैलाए जाने की हमेशा कोशिश की जाती है. कश्मीर पर अपना हक़ जताकर उसे हासिल करने के लिए खून खराबे के बड़े-बड़े मनसूबों में नाकाम हुए पाकिस्तान को उस राग का ये माकूल जवाब है जो राग वो अन्तराष्ट्रीय बिरादरी की सहानुभूति हासिल करने के लिए अलापता रहता है. हमेशा ये तस्वीर कश्मीर पर बनी उस फिल्म का भी जवाब है जिसने देश की फिज़ा को खराब करने में आग में घी का काम किया है. इस तस्वीर से सही तरीके से प्रेषित किए जाने वाला संदेश कुछ मानसिक चोटों पर मरहम का काम भी कर सकने की ताकत रखता है. ये तस्वीर गंगा जमुनी तहज़ीब में पले बढ़े उन लोगों में भी विश्वास की भावना का संचार करती है जिनका विश्वास कभी कभी डगमगाने लगता है.
इस तस्वीर के ख़ास किरदार लेफ्टिनेंट जनरल देवेन्द्र प्रताप पांडे के बारे में एक दिलचस्प बात और भी है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले जनरल पांडे को भारतीय सेना की सिख लाइट इन्फेंट्री रेजीमेंट के कर्नल का ओहदा भी दिया गया है. उन्होंने 1985 में सिख लाइट इन्फेंट्री की 9 बटालियन में कमीशन हासिल किया था. भारतीय सेना के प्रमुख जनरल एम एम नरवणे भी सिख रेजीमेंट में कमीशन पाने वाले अधिकारी थे और वे अब तक इस रेजीमेंट के कर्नल भी रहे. भारतीय सेना की ये परम्परा भी कितनी अनूठी, दिलचस्प और विभिन्नता में भी सांस्कृतिक एकता की परिचायक है. यूपी के ब्राह्मण परिवार का सैनिक अफसर उस सिख रेजीमेंट का कर्नल बनता है जिसकी ज़िम्मेदारी उससे पहले एक हिन्दू मराठा सैनिक अफसर निभा रहा था.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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