सम्पादकीय

सत्ता का यही चरित्र है नीतीशजी ?

Rani Sahu
12 Aug 2022 8:54 AM GMT
सत्ता का यही चरित्र है नीतीशजी ?
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पटना में डाक बंगला चौराहे पर एक कॉफी हाउस है. यह कॉफी हाउस साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों और राजनीतिज्ञों की बैठकी के लिए ख्यात है
by Lagatar
DR. Santosh Manav
पटना में डाक बंगला चौराहे पर एक कॉफी हाउस है. यह कॉफी हाउस साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों और राजनीतिज्ञों की बैठकी के लिए ख्यात है. यहीं कालजयी साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु भी कभी बैठते थे. बिहार के नालंदा जिले की हरनौत सीट से 1977 और 80 का विधानसभा चुनाव हार चुके एक युवा नेता भी यहां बैठकी लगाते थे. वे पत्रकर मित्रों से कहते- 'मैं एक दिन बिहार का मुख्यमंत्री बनूंगा- By hook or by crook यानी येन-केन-प्रकारेण.' लोग तब मन ही मन हंसते. उन्हें लगता कि दो बार लगातार चुनाव हार चुका यह नेता बड़बोला है. कुछ उनके साहस, मनोबल के प्रशंसक भी थे. वह नेता 1985 का विधानसभा चुनाव उसी हरनौत सीट से जीता. इसके बाद राजनीति के मैदान में पलटी जरूर मारी, पर पलट कर नहीं देखा. वे मुख्यमंत्री बने. ऐसा बने कि बिहार में रिकॉर्ड बना दिया. सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड. यह नेता कोई और नहीं, नीतीश कुमार हैं.
नीतीश के पेट में कितने दांत ?
जीतन राम मांझी का सात माह का कार्यकाल यदि छोड़ दें, तो नीतीश कुमार नवंबर 2005 से लगातार मुख्यमंत्री हैं. कब तक रहेंगे, कहना कठिन है. सीएम बनने और बने रहने के लिए उन्होंने कितने समझौते किए या कितनी बार पलटी मारी, यह कहना और गिनना फिजूल है. इसलिए कि राजनीति में कोई संत नहीं होता. राजनीति सत्ता के लिए होती है. राजनीति में जितने विरोधाभास होते हैं, राजनीति के पेट में जितने दांत होते हैं, उतने ही विरोधाभास और दांत नीतीश कुमार के व्यक्तित्व में भी हैं. कहते हैं कि सत्ता की राजनीति में जो कहा जाता है, वह किया नहीं जाता और जो किया जाता है, वह कहा नहीं जाता. राजनीति विरोधाभासों, संभावनाओं को साधने की कला है और इस कला में नीतीश पारंगत हैं. इसीलिए वे कभी बीजेपी, तो कभी आरजेडी के साथ हो लेते हैं. आखिर सारी लड़ाई सत्ता के लिए ही है न .
चित भी मेरी पट भी मेरी
इन शब्दों का कोई मतलब नहीं कि गंगा में डूब जाऊंगा, मिट्टी में मिल जाऊंगा, लेकिन बीजेपी के साथ अब नहीं जाऊंगा.
समझौते नहीं करेंगे, पलटी नहीं मारेंगे, तो नेता हो सकते हैं, जननेता हो सकते हैं, बड़े नेता हो सकते हैं, लेकिन पीएम, सीएम होना है, रहना है, तो मानकर चलिए कि पलटी और समझौता उसके हथियार हैं. इसलिए लालू यादव कहते रहे कि नीतीश के पेट में दांत है या वे पलटूराम हैं, नीतीश कुमार को इससे फर्क नहीं पड़ता. सीएम के किसी दूसरे आग्रही को भी इससे फर्क नहीं पड़ता. इसलिए सांप्रदायिकता के सवाल पर नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ देते हैं और भ्रष्टाचार के सवाल पर आरजेडी को 'दगा' देकर बीजेपी के साथ हो लेते हैं. यानी दोनों हाथ में लड्डू. चित भी मेरी पट भी मेरी.
तेजस्वी के दाग अब अच्छे हैं?
एक सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर नीतीश ने इस बार पलटी क्यों मारी? क्या मुन्ना ( नीतीश का घरेलू नाम) के पीएम बनने की ख्वाहिश फिर जाग गई है? क्या राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, केसीआर से वे अपने को 'बीस' समझ रहे हैं या बीजेपी, आरसीपी सिंह के रूप में बिहार में एकनाथ शिंदे खड़ा कर रही थी-खड़ा कर रही है और बीजेपी खेला करती, उससे पहले उन्होंने ही खेला कर दिया. राजनीति के महीन चाल के इस युग में दावे के साथ कुछ भी कहना कठिन है. यह जरूर कहा जा सकता है कि जितनी महीन बीजेपी चलती है, उतनी ही महीन नीतीश कुमार की भी चाल है. आखिर विरोधाभासों को साधने के सूरमा जो ठहरे! अब कह रहे हैं कि बीजेपी ने हमेशा उनका अपमान किया. किया तो उनके साथ दूसरी बार गए ही क्यों थे? क्या अपमान की इंतिहा अब हुई है? तेजस्वी कुछ साल पहले भ्रष्ट थे. लालू यादव अनावश्यक रूप से शासन में हस्तक्षेप करते थे. क्या अब नहीं करेंगे? क्या तेजस्वी के दाग अब अच्छे हैं?
क्या जेपी और कर्पूरीजी ऐसे थे?
सुविधा के अनुसार तर्क गढ़ना और कुर्सी बचाने-बढ़ाने की कला कोई इनसे सीखे. सुविधा की राजनीति, खुद को पाक-साफ बताने के भोले तर्क. राजनीति में सुविधाकरण के अगुआ नेताओं में एक. यह ठीक है कि नीतीश पर भ्रष्ट होने के आरोप नहीं हैं. वे परिवारवाद से भी दूर हैं. पर हैं सत्ता के घाघ नेता. कुर्सी के लिए नित नूतन तर्क गढ़ने वाले आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध. नीतीश कुमार ने कभी कहा था-मुझे लोकनायक जयप्रकाश नारायण, छोटे साहब सत्येंद्र नारायण सिंह और जननायक कर्पूरी ठाकुर के चरणों में बैठकर जानने और सीखने का मौका मिला है. क्या नीतीश कुमार ने जयप्रकाश नारायण या कर्पूरी ठाकुर से सत्ता के लिए सुविधा के तर्क गढ़ना सीखा? क्या जेपी और कर्पूरीजी ऐसे थे? दरअसल, जितने विरोधाभास राजनीति में हैं, उतने ही नीतीश के व्यक्तित्व में हैं.
मेरी पार्टी और हम ही नेता
नीतीश, जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर वाहवाही लुटेंगे, लेकिन जैसे ही जीतनराम स्वतंत्र अस्तित्व की पहल करेंगे, तो कुर्सी पलट देंगे. चुनावी जीत के लिए आखिरी चुनाव का इमोशन भंजा लेंगे. जिन्हें जंगलराज का अगुआ कहेंगे, वक्त पर उनसे गलबहियां करेंगे, फिर पलटी भी मार देंगे. पार्टी के एकमेव नेता रहेंगे, कोई दूसरा उनकी पार्टी में नेता नहीं होगा. यानी व्यक्ति पूजा. नीतीश कुमार की प्रशंसा के बहुतेरे कारण हैं. लेकिन, प्रशंसा के कारणों से अधिक है विरोधाभासों की संख्या. क्या नहीं? {लेखक दैनिक भास्कर सहित अनेक अखबारों के संपादक रहे हैं. फिलहाल लगातार मीडिया में स्थानीय संपादक हैं }
Rani Sahu

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