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- मोटे नहीं, पौष्टिक हैं...
हमारे देश में अनाजों की विविधता की संस्कृति रही है। चावल, गेहूं के अतिरिक्त ज्वार, बाजरा, कोदरा (रागी), कंगनी, चीणा, स्वांक (झंगोरा) आदि कई अनाज उगाए जाते थे और उनके पोषक तत्त्वों के ज्ञान के आधार पर उनका मौसम या तासीर के हिसाब से भोजन में उपयोग किया जाता था। किंतु हरित क्रांति के दौर में न जाने कहां से यह भ्रमपूर्ण विचार फैल गया कि गेहूं-चावल ही उत्कृष्ट अन्न हैं और बाकी को मोटे अनाज कह कर हीन दृष्टि से देखा जाने लगा। कुछ लोग तो अज्ञानवश ये सोचने लग पड़े कि ये मोटे अन्न गरीबों का खाना हैं। अतः इन अनाजों की न केवल अनदेखी हुई, बल्कि इन्हें हिकारत की दृष्टि से देखा जाने लगा। किंतु एक जानकार वर्ग इनके संरक्षण और गुणवत्ता के ज्ञान का रक्षक बना रहा और आज फिर से इन अनाजों के प्रति चेतना फैलना शुरू हुई है। इन अनाजों को रासायनिक खादों और दवाइयों की भी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि इनमें कीड़ा नहीं लगता, और ये कम उपजाऊ जमीनों में भी बढि़या पैदावार देते हैं। ये पौष्टिक भोजन और चारा देते हैं। यदि इनके मुकाबले में गेहूं-चावल के पोषक तत्त्वों को देखें तो ये 4-5 गुणा ज्यादा पौष्टिक पाए जाते हैं।