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- ये दरारें बहुत पुरानी...
तवलीन सिंह: मैंने अभी तक 'कश्मीर फाइल्स' नहीं देखी है। शुरू में इस बात को स्पष्ट करना जरूरी है। देखना चाहती हूं, लेकिन जब भी कोशिश की है अपने पड़ोस वाले सिनमाघर में देखने की, किसी न किसी कारण जा नहीं पाई। मगर देखे बिना हैरान हूं कि इतने सारे प्रसिद्ध, समझदार लोग कहते फिर रहे हैं इन दिनों कि इस एक फिल्म की वजह से देश में अशांति और सांप्रदायिक हिंसा फैलने लगी है। क्या सच यह नहीं है कि अशांति और सांप्रदायिक हिंसा पहले से इतनी फैली हुई थी कि यह पिक्चर केवल एक नया बहाना बन गई है?
सच यह भी है कि अशांति के इस माहौल को कायम रखने में भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिलता है। इसलिए जब भाजपा के कुछ बड़े राजनेताओं ने हिंसक भीड़ को साथ लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री के घर पर हमला किया पिछले सप्ताह, तो भाजपा के किसी भी बड़े नेता के मुंह से निंदा का एक शब्द नहीं निकला। छोटी बात नहीं है किसी मुख्यमंत्री के घर तक हिंसक भीड़ का पहुंचना और पहुंचने के बाद धावा बोलना। जब ऐसी घटना देश की राजधानी में होती है, ऐसे समय जब विदेश से आला अधिकारियों का खूब आना-जाना है, तो सवाल उठता है कि भारत की छवि को कितना नुकसान होता होगा। क्या अपने देश वापस लौटने के बाद ये लोग अपने मुल्क के निवेशकों और पर्यटकों को सावधान नहीं करेंगे?
बात सिर्फ दिल्ली की नहीं है। कर्नाटक में लगातार इतना तनाव बना रहा है हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कि किरण मजूमदार शा जैसी जानी-मानी हस्ती को आवाज ऊंची करके कहना पड़ा पिछले हफ्ते कि इस तरह का तनाव आइटी कारोबार के लिए अच्छा नहीं है। बिजनेस में अपना नाम बनाने के नाते किरण जी जानती हैं अच्छी तरह कि विदेशी निवेशक उन देशों से दूर भागते हैं, जहां अशांति होती है और जहां कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलराज होता है।
कर्नाटक में माहौल बिगड़ने लगा था हिजाब के उस किस्से से, जिसमें कुछ छात्रों को प्यादा बना कर चाल चली थी पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) नाम की जिहादी संस्था ने। समझ में नहीं आता कि इस संस्था का लंबा जिहादी इतिहास जानने के बाद भी इसकी गतिविधियों को क्यों नहीं रोका है कर्नाटक की भाजपा सरकार ने? हिजाब वाले किस्से के बाद जब मुसलमानों को एक हिंदू मेले में अपनी दुकानें लगाने से कुछ हिंदू संस्थाओं ने मना किया तब भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री चुप रहे हैं अभी तक।
सांप्रदायिक अशांति फैलाने वाले सिर्फ कर्नाटक में नहीं हैं। हर राज्य में दिखते हैं आजकल भगवापोश साधु-संत नफरत भरे भाषण देते हुए। हर राज्य में दिखते हैं भगवा पटके पहने हुए बजरंग दल के कार्यकर्ता, जो सीधा हमला करते हैं मुसलमानों पर। क्या यह सब हो रहा है इसलिए कि हाल में हुए पांच विधानसभा चुनावों में हिंदुओं और मुसलमानों में दरार पैदा करके भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत हुई थी, अलावा पंजाब के? ऐसा शक पैदा होता है, क्योंकि जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, किसी न किसी कारण मुसलिम समाज निशाने पर रहा है।
सिलसिला शुरू हुआ था मोहम्मद अखलाक की लिंचिंग से 2016 में। इसके बाद गोरक्षक दिखने लगे इतने ज्यादा कि पशु पालना मुश्किल हो गया, बूचड़खानों का चलना मुश्किल हो गया और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में गोश्त की दुकानें चलाना भी कठिन। फिर 'लव जिहाद' को रोकने के लिए योगी आदित्यनाथ ने एंटी रोमियो स्क्वाड बनाए थानों में और उनका मुख्य काम था उन मुसलिम लड़कों को पकड़ना, जो किसी हिंदू लड़की के साथ चलते दिखें। शादीशुदा लोगों के घरों में भी घुस गए लव जिहाद के पहरेदार।
उनके खिलाफ अगर कोई कार्रवाई हुई भी तो मामूली। इसके बाद आया नागरिकता कानून में ऐसा संशोधन, जिसने मुसलमानों में अपनी नागरिकता खो देने का डर पैदा किया और देश के तकरीबन हर शहर में निकल कर आए संशोधन का विरोध करने वाले। उत्तर प्रदेश के मुसलिम निवासी मानते हैं कि योगी के दोबारा जीतने का एक अहम कारण यह है कि योगी ने विरोध करने वालों की संपत्ति जब्त कर ली थी। विरोधी अक्सर मुसलिम थे।
कहने का मतलब है कि कई सालों से बन रहा है तनाव हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, सो जो लोग 'कश्मीर फाइल्स' पर सारा दोष डाल रहे हैं दरारें पैदा करने का, वे गलत हैं। हां यह जरूर है कि चूंकि दरारें पहले से थीं, आज सिनमाघरों में हम सुन रहे हैं सांप्रदायिक नारे और मुसलमानों से बदला लेने की बातें कश्मीरी पंडितों की तरफ से। इस पिक्चर ने कई सारे पुराने जख्म खोल दिए हैं, लेकिन खुले हैं इसलिए, क्योंकि अभी तक भरे नहीं थे। सवाल यह है कि अब क्या होगा? ऐसे ही चलता रहा देश, तो बेशक भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक लाभ होता रहेगा चुनावों में, लेकिन देश का हाल यह होगा कि यहां विदेश से न पर्यटक आएंगे न निवेशक।
तो करना क्या चाहिए? फारूक अब्दुल्ला ने सुझाव दिया है कि जैसे दक्षिण अफ्रीका में ट्रुथ कमिशन (सत्य आयोग) बना था, वैसे यहां भी होना चाहिए, ताकि हिंदू और मुसलमान जाकर अपनी शिकायतें रख सकें। फारूक साहब ने कश्मीर तक सीमित रखा था अपना सुझाव, लेकिन देश भर में ऐसे आयोग बैठाए जाएं तो और भी अच्छा होगा। यहां हिंदू और मुसलमान अपने तमाम गिले-शिकायतें रख सकें ताकि ये दरारें, ये नफरतें हमेशा के लिए समाप्त हो जाएं और भारत वास्तव में विकास और परिवर्तन के रास्ते पर चल पड़े। 'कश्मीर फाइल्स' को देखने के बाद जो हिंदू अब मुसलमानों को भारत से भगाने की बातें करने लगे हैं खुलेआम, जानते नहीं हैं कि नुकसान मुसलिम समाज का कम और भारत देश का ज्यादा कर रहे हैं।