सम्पादकीय

कट्टरता का घना होता साया, भारत पर भी मंडरा रहा खतरा

Gulabi Jagat
20 July 2022 4:16 PM GMT
कट्टरता का घना होता साया, भारत पर भी मंडरा रहा खतरा
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इसी 15 जुलाई को कुछ समाचार पत्रों में यह छोटा सा समाचार प्रकाशित हुआ कि
राजीव सचान : इसी 15 जुलाई को कुछ समाचार पत्रों में यह छोटा सा समाचार प्रकाशित हुआ कि अफगानिस्तान से 21 हिंदू-सिख भारत आए। इसके पहले इसी तरह की एक छोटी सी खबर एक जुलाई को छपी थी, जो यह बताती थी कि 11 सिख भारत आए। उन्हें भारत इसलिए आना पड़ा, क्योंकि 16 जून को काबुल में एक गुरुद्वारे पर हमले के बाद उनका वहां रहना दूभर हो गया था। पहले 11 और फिर 21 हिंदू-सिखों के अफगानिस्तान से निकल आने के बाद अब वहां केवल 130 हिंदू-सिख ही बचे हैं। इनमें से करीब 60 ने भारत का वीजा पाने के लिए आवदेन कर दिया है। पता नहीं उन्हें वीजा कब मिलेगा, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि बहुत शीघ्र अफगानिस्तान में एक भी हिंदू या सिख नहीं बचेगा।
1970 के आसपास अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों की संख्या एक लाख से अधिक थी। कहां गए ये सब हिंदू-सिख? उनमें से कुछ मारे गए और कुछ जान बचाकर भारत या अन्य देशों को पलायन करने पर विवश हुए। ऐसी ही विवशता से बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक और विशेष रूप से हिंदू, सिख और ईसाई दो-चार हैं। अभी बीते शुक्रवार को बांग्लादेश के नारेल जिले के सहपारा गांव में नमाज के बाद मस्जिद से निकली मुसलमानों की एक उग्र भीड़ ने हिंदुओं के घरों पर हमला बोल दिया। इस दौरान उनके घरों में जमकर लूटपाट की गई। इसके बाद भीड़ का एक और दस्ता आया और उसने लूटे हुए घरों में कुछ न पाकर उन्हें आग के हवाले कर दिया। इस भीड़ ने लगे हाथ एक मंदिर को भी क्षतिग्रस्त कर डाला
यह भीड़ इसलिए आपे से बाहर थी, क्योंकि आकाश साहा नाम के युवक ने फेसबुक पर इस्लाम को लेकर कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी। बांग्लादेश में यह कोई नई बात नहीं है। वहां अक्सर ही किसी हिंदू नाम से फेसबुक पर इस्लाम के विरुद्ध कुछ लिख दिया जाता है और फिर भीड़ उस व्यक्ति के साथ अन्य हिंदुओं के घरों-दुकानों पर धावा बोल देती है। ऐसे हमलों का निशाना बनने वाले कई हिंदू दोबारा अपने घरों को नहीं लौट पाते। बांग्लादेशी अखबार डेली स्टार के अनुसार सहपारा गांव में हिंदुओं के 108 घर हैं और उनमें से करीब-करीब सभी खाली पड़े हैं। एक-दो घरों में कुछ बुजुर्ग बचे हैं। प्रशासन के लोग हिंदुओं को उनकी सुरक्षा का भरोसा दिलाने के लिए गए, लेकिन किसी को यकीन नहीं कि उनके साथ न्याय होगा।
याद करिए कि पिछले साल अक्टूबर में बांग्लादेश के कोमिला जिले में किस तरह एक मुस्लिम युवक ने एक दुर्गा पूजा पंडाल में हनुमान जी की प्रतिमा के पास कुरान रखकर उसकी फोटो वायरल की थी। इसके बाद वहां कुरान के अपमान की अफवाह फैलाकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसमें सात हिंदू मारे गए और उनके 60 से अधिक घर या तो लूट लिए गए या जला दिए गए। किसी को नहीं पता कि अपना घर-बार छोड़कर भागे कितने हिंदू अपने घरों को लौट पाए?
1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में उदय हुआ तो वहां करीब 14 प्रतिशत हिंदू थे। अब वहां करीब आठ प्रतिशत हिंदू ही बचे हैं। कहना कठिन है कि वे कब तक बचे रहेंगे। 2016 में ढाका यूनिवर्सिटी के प्रो अब्दुल बरकत ने कहा था कि अगले 30 सालों में बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा। अंदेशा है कि यह काम और पहले हो जाएगा, क्योंकि बांग्लादेश में वैसी ही इस्लामी कट्टरता बढ़ रही है, जैसी पाकिस्तान में।
भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान में करीब 22 प्रतिशत हिंदू थे। 1971 में इनमें से लगभग 14 प्रतिशत बांग्लादेश के हिस्से में गए और शेष आठ प्रतिशत पाकिस्तान में बचे। अब पाकिस्तान में उनकी संख्या महज एक-डेढ़ प्रतिशत बची है। यह कहना तो कठिन है कि पाकिस्तान में बचे-खुचे हिंदू और सिख कब तक बचे रहेंगे, लेकिन यह सहज ही समझा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं, जब अफगानिस्तान की तरह यहां के भी हिंदू-सिख विलीन हो जाएंगे। कुछ वहां से जैसे-तैसे पलायन कर जाएंगे। कुछ मारे जाएंगे और कुछ को जबरन इस्लाम स्वीकार करना पड़ेगा। इसके अलावा उनकी और कोई नियति नहीं। इसलिए नहीं, क्योंकि कोई भी उनकी दुर्दशा पर आवाज उठाने वाला नहीं।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में करीब-करीब हर दिन एक-दो हिंदू या ईसाई लड़की का अपहरण कर उनका किसी मुस्लिम से जबरन निकाह कर दिया जाता है। इस तरह की घटनाओं को लेकर कभी-कभार पाकिस्तान और भारतीय मीडिया में खबरें छपती हैं, लेकिन होता कुछ नहीं है, क्योंकि पुलिस और अदालतें इसी नतीजे पर पहुंचती हैं कि अगवा लड़की ने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार किया। यदि आप केवल इससे चिंतित हैं कि अफगानिस्तान के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी हिंदू-सिख संकट में हैं तो कश्मीर घाटी का स्मरण कीजिए, जहां से मार भगाए गए कश्मीरी हिंदुओं के वापस लौटने के कोई आसार नहीं। उलटे जो वहां किसी तरह जीवन-यापन कर रहे हैं, उनकी जान के लाले पड़े हैं।
यदि आप कश्मीर को अपवाद समझ रहे हैं तो पहले यह जानिए कि कैराना कश्मीर बनते-बनते बचा था और फिर यह कि झारखंड के कई मुस्लिम बहुल इलाकों में सरकारी स्कूलों की प्रार्थना या फिर उनके नाम बदल दिए गए और कुछ स्कूलों में रविवार के स्थान पर शुक्रवार को छुट्टी होने लगी। जिन्हें यह सहज-सामान्य लग रहा हो, वे इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि बिहार के फुलवारी शरीफ से गिरफ्तार किए गए लोग 2047 तक भारत को इस्लामी देश बनाने की तैयारी कर रहे थे। स्पष्ट है कि जो खतरा अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भयावह रूप में दिख रहा है, वह भारत के सिर पर भी मंडरा रहा है।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)
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