सम्पादकीय

फिर मुर्गी का अंडा चोरी

Rani Sahu
20 March 2022 7:09 PM GMT
फिर मुर्गी का अंडा चोरी
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अमरीका और नाटो के सारे अंडे शेर की तलाश में फूट-फूट कर बेकार हो गए हैं

सोशल मीडिया की डिबेट से पहले भी जंगल की बहस तीखी, नाजुक और समवेत स्वर मेंे उच्चारण करती थी और इसीलिए अब कई जहीन लोग सोशल मीडिया को अपने कौशल से जंगल बना देते हैं। ऐसे जंगली संवाद पर ताली और इसकी ताल ठीक वैसी ही है, जैसी जंगल में नाचते मोर की होती है। सोशल मीडिया की चीखों से अब जंगली व पालतू प्राणियों में भी उत्साह का सृजन होने लगा है। अचानक एक दिन मुर्गी का आत्मविश्वास इस कद्र जाग गया कि वह अपने फूटे अंडे में 'शेरू' ढूंढने लगी। यानी उसे यह विश्वास था कि अब उसके अंडे से ही शेर पैदा होंगे। दरअसल उसे यह भनक सोशल मीडिया से लगी थी, जहां हर दिन अंडे फोड़कर कोई न कोई शेर सिंह बनने की कोशिश करता है। उसे मुर्गे ने समझाया कि आज तक हमारी औलाद 'मुर्गा सिंह' तक नहीं हो सकी, तो क्या अब शेर सिंह मुर्गी के अंडे से पैदा होंगे। मुर्गी मानने वालों में से नहीं थी। उसने भारतीय लोकतंत्र से यही सीखा था कि मान गए, तो कुछ नहीं मिलेगा और नहीं मानें तो हर कुछ मिलेगा। अब यह मुर्गी की प्रतिष्ठा और जिद्द थी कि सारे प्राणी मानें कि उसके अंडे से ही शेर निकल सकता है। उसने अंतरराष्ट्रीय खबरें तक सुन रखी थीं, जहां उसे हर राष्ट्राध्यक्ष किसी मुर्गी से अधिक नहीं लग रहा था। उसके लिए रूस व यूक्रेन युद्ध भी अंडे फूटने जैसा था। वह कभी पुतिन के पक्ष में फटा अंडा देखती, तो कभी यूक्रेन के अंडों को निहारती। यह युद्ध दरअसल होता ही फूटे अंडे से शेर को निकालने जैसा।

'अमरीका और नाटो के सारे अंडे शेर की तलाश में फूट-फूट कर बेकार हो गए हैं, इसलिए तू भी अंडे से शेर सिंह के निकलने का इंतजार मत कर।' मुर्गी ने जवाब दिया, 'तू वर्षों से बांग देकर हर किसी को जगा सकता है, तो मैं अंडे से शेर सिंह क्यों नहीं निकाल सकती।' मुर्गा चोट खाए विपक्ष की तरह समझदार व आपसी सहमति से आगे बढ़ने का प्रयास करते हुए कह रहा था, 'मैं वर्षों से इनसान और बकरों को जगा रहा हूं, लेकिन दोनों प्रजातियां जागकर भी क्या कर लेंगी। कई बार लगता है इनसान अपनी खूबियों में बकरा अधिक है, क्योंकि उसकी जिंदगी सिर्फ कबूलनामा है। बकरे की किस्म में कोई व्यक्ति कब शादी की शर्तों, फिर बच्चों की फरमाइशों, दफ्तर में मातहत की रजामंदी या बॉस की सहमति से वेतन वृद्धि के लिए कबूलनामा हासिल करेगा, इसी ऊहापोह में जिंदगी गुजार देता है।' मुर्गी यह सुनकर भी टस से मस नहीं हुई, तो मुर्गे को लगा कि यह अपनी औलाद में शेर ढूंढते-ढूंढते कहीं थर्ड फ्रंट ही खड़ा न कर दे। उसने भारत की राजनीति के अंडे चुनते हुए देखा कि किस तरह थर्ड फ्रंट बनाने वाले नेता अपने अंडों से शेर के निकलने की कल्पना में हर क्षण ट्विटर पर दहाड़ते हैं। मुर्गा अब अपनी दुविधा में था। घर बचाने के लिए उसे फूटे अंडे से कोई शेर ढूंढना था अन्यथा जिंदगी भर मादा उत्पीड़न का आरोप झेलना था
वह डरता-डरता शेर के पास पहुंचा और उसे अपने मसले से अवगत कराया। शेर सुन कर हंसा और अपनी प्रजाति को लेकर गंभीर हो गया। शेर अपनी मां की जगह मुर्गी को सामने रखकर सोचने लगा कि उसका जन्म अगर अंडे से होता, तो शायद वह भी उड़ सकता था। पहली बार जंगल जनमत के लिए तैयार हो रहा था ताकि सभी बताएं कि शेर को भविष्य की मां के रूप में मुर्गी को कबूल कर लेना चाहिए। पहले ओपिनियन पोल हुआ, फिर एग्जिट और अब तो पोस्ट पोल भी हो गया। सभी ने बताया कि शेर को किसी भी स्थिति में मुर्गी को मां नहीं मानना चाहिए। शेर भी शेख चिल्ली था, एग्जिट पोल पर भरोसा न कर सका और अपने जन्म की बेहतरी के लिए अंडे में घुसने लगा। तभी कोई चीखा कि शेर और मुर्गी में यही अंतर है कि वह उड़ने के लिए अंडे पैदा नहीं करती। अंततः फूट गए अंडे के करीब वे सभी राजनीतिक दल देखे गए जो उड़ने का बहाना अभी भी ढूंढ रहे थे। 'शायद कभी कोई अंडा विपक्ष को भी चुनावों में उड़ने का सामर्थ्य दे दे', सामने शेर खड़ा मन ही मन सोच कर मुस्करा रहा था।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
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