- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कुशल माली काटता रहता...
x
देश को दूसरे स्वतंत्रता संग्राम में जूझने की आवश्यकता है।...नई शताब्दी हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। नया युग आने वाला है और हम जब 50 साल का लेखा-जोखा लेने के लिए बैठे हैं, स्वाभाविक है कि हमारा ध्यान इस बात की ओर जाए कि आखिर हमने जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं, उस सबके बावजूद देश अपने सारे सपनों को पूरा क्यों नहीं कर सका है? आज जब हम स्वाधीनता को शाश्वत और अमर बनाने का संकल्प ले रहे हैं
अटल बिहारी वाजेपयी,
देश को दूसरे स्वतंत्रता संग्राम में जूझने की आवश्यकता है।...नई शताब्दी हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। नया युग आने वाला है और हम जब 50 साल का लेखा-जोखा लेने के लिए बैठे हैं, स्वाभाविक है कि हमारा ध्यान इस बात की ओर जाए कि आखिर हमने जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं, उस सबके बावजूद देश अपने सारे सपनों को पूरा क्यों नहीं कर सका है? आज जब हम स्वाधीनता को शाश्वत और अमर बनाने का संकल्प ले रहे हैं, हमारे मन में बार-बार यह प्रश्न गूंजता है कि आखिर हम पराधीन क्यों हुए? ...हम इसलिए पराधीन नहीं थे कि हमारे पास धन नहीं था, दौलत नहीं थी। भारत सोने की चिड़िया था, इसीलिए आक्रमण का शिकार था। क्लाइव ने 1757 में विभाजित बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद के बारे में कहा था, मैं उसका उल्लेख करना चाहता हूं, 'यह शहर लंदन की भांति विस्तृत, घनी आबादी वाला है। परंतु मुर्शिदाबाद में लंदन से भी अधिक वैभवशाली लोग थे।' इस संबंध में रजनी पाम दत्त का जो कथन है, वह भी उद्धृत करने लायक है, जिसमें उन्होंने कहा, 'सत्रहवीं शताब्दी में ब्रिटेन भारत को कोई ऐसी चीज देने की स्थिति में नहीं था, जो भारत के पास नहीं थी। चाहे वह प्रोडक्ट्स की क्वालिटी की दृष्टि से हो और चाहे टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड की दृष्टि से हो।
200 साल में देश की स्थिति क्या हो गई, हम सब उससे परिचित हैं। स्पष्टत: हम इसलिए नहीं हारे कि दौलत नहीं थी। हम इसलिए भी नहीं हारे कि हमारे पास सेना नहीं थी, पराक्रम नहीं था। पानीपत के मैदान में हमारे पास सेना अधिक थी, पर हम हार गए, स्वाधीनता खो बैठे। प्लासी में तो लड़ाई हुई ही नहीं, विश्वासघात हुआ। प्लासी के मैदान में जब लड़ाई चल रही थी, तब लड़ने वालों से ज्यादा लोग प्लासी के मैदान के बाहर यह देख रहे थे कि इस लड़ाई का निर्णय क्या होता है, मानो वहां कोई तमाशा हो रहा था।...
शताब्दियों के बाद लद्दाख से लेकर अंडमान-निकोबार तक यह सारी भूमि एक झंडे के नीचे आई है। भारतीय गणराज्य अपनी संपूर्ण गौरव-गरिमा के साथ खड़ा है, यह अभिमान की बात है, यह जिम्मेदारी की बात भी है। इस गणराज्य की रक्षा होनी चाहिए। गणराज्य मजबूत हो, समृद्धशाली हो और ऐसी समृद्धि हो, जिसमें सबको हिस्सा मिले। सामाजिक समता हो, समरसता हो।... इस देश में अंतर्विरोधों के बीच में सामंजस्य और सौमनस्य पैदा करने की अद्भुत क्षमता है, अद्भुत शक्ति है। कितनी विविधता है। भविष्यवाणियां हुई थीं कि भारत एक नहीं रहेगा। 500 रियासतों में देश बंटा था। मातम के मसीहा घोषणाएं कर रहे थे कि अंग्रेजों ने एक विभाजन किया है, दूसरा विभाजन स्वयं करेंगे। उन भविष्यवाणियों पर पानी फिर गया। हम एक गणराज्य के रूप में खड़े हैं।
दूसरी उपलब्धि हमारी यह है कि हमने लोकतंत्र की रक्षा की है, लोकतंत्र के अनुसार हम चल रहे हैं। लोकतंत्र को हमने सफल बनाने का प्रयास किया है। इसके बारे में भी भविष्यवाणी थी।...शिक्षा नहीं है, गरीबी है, मताधिकार का उपयोग कैसे होगा, ये मजहब के आधार पर बंटे हुए हैं?...लोकतंत्र हमारा आधार है, हमारी एकता को पुष्ट करने का सबसे बड़ा कारण है। ...
लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा भ्रष्टाचार से है।... कथनी से नहीं, करनी से लोगों के खोए हुए विश्वास को फिर से बचाया जा सकता है।... भ्रष्टाचार के मामलों में तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए। श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक बार कहा था कि यह एक अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य है। उन्होंने गलत नहीं कहा था। जहां-जहां लोकतंत्र है, वहां भ्रष्टाचार पनपने लगता। जहां-जहां फूल खिलते हैं, वहां जंगली घास पैदा होने का खतरा रहा है, लेकिन कुशल माली जंगली घास को काटता रहता है। ...लोकपाल विधेयक का क्या हुआ, मैं नहीं जानता कि इसको लाने में क्यों देर लग रही है। खुली चर्चा होनी चाहिए।...कितने प्रश्न हैं, जो अनुत्तरित पड़े हैं।...मतभेदों के बावजूद कुछ मामलों में सबको मिलाकर चलने की जो हमारी पुरानी पद्धति है, वही लोकतंत्र का आधार है। लोकतंत्र हमने आयात नहीं किया है, पंच परमेश्वर की पुरानी कल्पना है। शास्त्रार्थ के आधार पर फैसले होते थे। यह देश की विरासत है। लेकिन हमने राष्ट्रीय पंचायत को मछली मार्केट बना दिया है। यह स्थिति बदलनी चाहिए।...अगर हम सब मिलकर उन अपेक्षाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते, तो आने वाला भारत हमें कभी क्षमा नहीं करेगा।
(लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश)
सोर्स- Hindustan Opinion Column
Rani Sahu
Next Story