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पिछले पखवाड़े बेसिक शिक्षा की स्थिति का आकलन करने के प्रयोजन से पूरे उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों का निरीक्षण कराया गया था। इस अभियान का क्या परिणाम निकला यह तो ज्ञात नहीं किन्तु इतना अवश्य पता चला है कि निरीक्षण के दौरान बड़ी संख्या में शिक्षक अनुपास्थित मिले।
बेसिक शिक्षा के महानिदेशक किरण आनन्द ने बताया कि विद्यालयों के निरीक्षण में 2968 शिक्षक गैर हाजिर मिले हैं। इनमें मे 2323 शिक्षकों का वेतन रोका गया है, 1547 से स्पष्टीकरण मांगा गया और 98 शिक्षकों को बर्खास्त किया गया।
यह निरिक्षण का केवल एक बिन्दु है। सबसे आश्चर्यजनक एवं दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि उत्तरप्रदेश के बारह बेसिक शिक्षा अधिकारी या इनके अधीनस्थ डिप्टी इंस्पेक्टर शासनादेश का पालन करने में विफल रहे। मुख्यालय से आदेश के बावजूद 12 बी. एस. ए. दफ्तर से बाहर ही नहीं निकले।
स्कूलों में कितने बच्चों के दाखले हैं, कितने उपस्थित और कितने गैरहाजिर मिले, स्कूल भवनों की स्थिति, मिड डे मील की गुणवत्ता, हवा, प्रकाश, पेयजल, शौचालय एवं स्वच्छता की स्थिति की वास्तविकता का सच्चा विवरण यदि सामने आता तो महा निदेशक महोदय यह कहने पर मजबूर हो जाते कि बेसिक शिक्षा का सारा ढाँचा ही ध्वस्त हो चुका है।
यह तो समस्या का एक पहलू है। सरकार ने कभी नहीं सोचा कि जिन शिक्षकों पर शिक्षा की बुनियाद टिकी है, उन पर कितना वर्क लोड है। शिक्षण के अलावा रैलियों, आधार कार्ड, मंगला योजना, टीकाकरण तथा अन्य शासकीय योजनाओं का अतिरिक्त भार शिक्षकों की पीठ पर लदा रहता है। एक विसंगति यह है कि किसी विद्यालय में 10 छात्रों पर 4 शिक्षक हैं तो किसी में 300 विद्यार्थियों में 3 ही शिक्षक हैं। हाजरी, गैर हाजरी की समस्या अलग से है। वास्तविकता यह है कि उ.प्र. में बेसिक शिक्षा की गाड़ी पटरी से उतर चुकी है। सरकार में क्रान्तिकारी कदम उठाने का जज्बा व ताकत हो तभी बेसिक शिक्षा पटरी पर आ सकती है।
गोविन्द वर्मा
Rani Sahu
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