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- शेष हैं दुरुपयोग
सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून की धारा 124-ए के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी है, लेकिन अभी यह अध्याय बंद नहीं हुआ है। धारा 124-ए को रद्द नहीं किया गया है। कानून की किताबों में राजद्रोह के प्रावधान अब भी मौजूद हैं। देश की जेलों में 13,000 से ज्यादा कथित 'देशद्रोही' कैद हैं, लेकिन इस फौरी रोक के बावजूद सभी कैदी जमानत के पात्र नहीं होंगे। सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया है, क्योंकि राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज करते हुए आरोपित पर अन्य धाराएं भी चस्पा कर दी जाती हैं। कैदी राजद्रोह कानून के तहत जमानत की अपील कर सकता है, लेकिन शेष धाराओं में निचली अदालतें भी कानून के मुताबिक ही जमानत देंगी। एक उम्मीद जगी है कि औसत नागरिक की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा का एक संवैधानिक रास्ता खुला है। समीक्षा के साथ-साथ संशोधनों पर भी विमर्श किया जाएगा। सरकार वैकल्पिक कानून का मसविदा कैसा तैयार करती है, उसके बाद ही नई बहस शुरू होगी और सर्वोच्च अदालत भी उसी के अनुरूप अपना पूर्ण फैसला देगी। उसका इंतज़ार करना पड़ेगा, लेकिन पुलिस की भूमिका को लेकर क्या संशोधन किए जा सकते हैं और सरकार किन स्तरों तक समीक्षा कर सकती है, यह देखना अभी शेष है। हमारे आपराधिक कानून में पुलिस सबसे ताकतवर और निरंकुश इकाई है। भारत में पुलिस और अभियोजन पक्ष लगभग एक ही हैं। विदेशों में ये अलग-अलग विभाग काम संभालते हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली