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- खुद को कमजोर साबित...
भूपेंद्र सिंह| संसद का मानसून सत्र चलने का नाम नहीं ले रहा है, क्योंकि विपक्ष पेगासस जासूसी मामले की जांच कराने और तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आक्रामक मुद्रा में है। इसी मुद्रा के चलते वह न तो लोकसभा चलने दे रहा है और न ही राज्यसभा। ये दोनों ही मसले ऐसे नहीं जिन पर संसद में बहस नहीं हो सकती। बहस के दौरान विपक्ष अपने तर्कों से सत्तापक्ष को निरुत्तर कर सकता है-ठीक वैसे ही जैसे राज्यसभा में कोरोना पर बहस के दौरान राजद सांसद मनोज झा ने अपने भावुक और प्रभावी संबोधन से किया। उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकारों की नाकामी और आम आदमी की बेबसी को जिस तरह बयान किया, उसने सभी को प्रभावित किया। आखिर संसद में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ऐसे ही भाषण क्यों नहीं हो सकते, जो सरकार के साथ आम आदमी को सोचने के लिए बाध्य करें? यह वह सवाल है, जो विपक्ष को खुद से पूछना चाहिए, क्योंकि वही है, जो संसद को चलने नहीं दे रहा है। मनोज झा के संबोधन ने यह रेखांकित किया कि विपक्ष तार्किक हो तो उसका संख्याबल मायने नहीं रहता।