सम्पादकीय

समय की मांग है युद्धविराम

Subhi
3 March 2022 5:55 AM GMT
समय की मांग है युद्धविराम
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यूक्रेन पर हमले के एक सप्ताह बाद भी रूस वांछित नतीजा हासिल नहीं कर पाया है। वह यूक्रेन से बात करने को तो तैयार है, लेकिन अपनी शर्तो पर। उसके ऐसे रवैये के चलते यदि दोबारा बात होती भी है

संजय पोखरियाली: यूक्रेन पर हमले के एक सप्ताह बाद भी रूस वांछित नतीजा हासिल नहीं कर पाया है। वह यूक्रेन से बात करने को तो तैयार है, लेकिन अपनी शर्तो पर। उसके ऐसे रवैये के चलते यदि दोबारा बात होती भी है तो उससे कोई ठोस परिणाम निकलने की आशा कम ही है। रूस के इरादे जो भी हों, वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि यूक्रेन पर उसके भीषण हमलों में वहां लोगों की जान जा रही है-न केवल निदरेष-निहत्थे यूक्रेनियों की, बल्कि अन्य देशों के नागरिकों की भी। गत दिवस एक भारतीय छात्र की भी जान गई। अभी भी वहां भारत के साथ अन्य देशों के तमाम छात्र फंसे हुए हैं।

यदि उनके साथ कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए केवल रूस ही जिम्मेदार होगा। विश्व के एक बड़े हिस्से में रूस पहले ही एक खलनायक जैसा उभर आया है। बेलारूस, वेनेजुएला, सीरिया, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे चंद देशों को छोड़कर अन्य कोई देश सीधे तौर पर उसके साथ नहीं खड़ा। रूस को न केवल अपनी वैश्विक छवि की चिंता करनी चाहिए, बल्कि यूक्रेन में फंसे विदेशी नागरिकों के साथ आम यूक्रेनियों की जिंदगी की भी।

यह सही है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस के सुरक्षा हितों की उपेक्षा करते हुए यूक्रेन को सैन्य संगठन नाटो का हिस्सा बनाने की अनावश्यक पहल की, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के आम लोगों के साथ वहां रह रहे विदेशी नागरिकों की जान की परवाह न करें। फिलहाल वह ऐसा ही करते दिख रहे हैं और इसीलिए पश्चिम के साथ-साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में भी निंदा का पात्र बने हुए हैं। खुद भारत ने सुरक्षा परिषद में यह साफ किया है कि यूक्रेन में हमला करके रूस ने उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करने के साथ जिस तरह संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय नियमों की अवहेलना की, वह उसे स्वीकार नहीं।

एक ऐसे समय जब भारत पर यह दबाव बढ़ रहा है कि वह यूक्रेन संकट पर तटस्थ रहने की अपनी नीति छोड़े, तब उचित यही है कि नई दिल्ली की ओर से मास्को को यह संदेश दिया जाए कि वह कुछ समय के लिए ही सही, युद्धविराम के लिए राजी हो, जिससे वहां फंसे भारतीयों के साथ अन्य देशों के नागरिकों को निकलने का अवसर मिल सके। वास्तव में भारत को युद्धविराम के साथ ही इसकी भी ठोस पहल करनी चाहिए कि दोनों पक्ष बातचीत के जरिये समस्या का हल निकालने को आगे आएं।


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