सम्पादकीय

आध्यात्मिक प्रगति का सबसे महत्वपूर्ण गुण अपने हिस्से का काम कर इंतजार करना है

Rani Sahu
6 Oct 2021 3:04 PM GMT
आध्यात्मिक प्रगति का सबसे महत्वपूर्ण गुण अपने हिस्से का काम कर इंतजार करना है
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आजकल मैं ऐसे कई युवाओं से मिल रहा हूं जो कॉलेज नहीं जाना चाहते, उन्हें ऑनलाइन क्लास पसंद है

एन. रघुरामन आजकल मैं ऐसे कई युवाओं से मिल रहा हूं जो कॉलेज नहीं जाना चाहते, उन्हें ऑनलाइन क्लास पसंद है, जबकि कॉलेज धीरे-धीरे सामान्य संचालन यानी महामारी से पहले के दिनों में लौटने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले 19 महीनों में कुछ युवाओं को ऑनलाइन नौकरियां मिली हैं, जिनसे वे 15 हजार रुपए प्रतिमाह तक कमा रहे हैं।

उन्हें इस पैसे की इतनी आदत हो गई है कि वे फुल टाइम कॉलेज जाते हुए फिर से माता-पिता से पॉकेट मनी नहीं मांगना चाहते। चूंकि उनका ध्यान शिक्षा और कमाई, दो जगहों में बंट गया है, इसलिए समय के साथ उनका किसी एक से ध्यान हट जाता है, जिससे वे किसी में भी विशेषज्ञ नहीं बन पा रहे। यह कहानी ऐसी ही दुविधा में फंसे लोगों के लिए है।
प्रफुल्ल बिलोरे (26) भी इसी नाव में सवार थे, जब वे बीकॉम के साथ एमवे के लिए काम कर 25,000 रुपए प्रतिमाह कमाते थे। उन्होंने काम और पढ़ाई में संतुलन बना लिया था क्योंकि एक औसत छात्र के पास पर्याप्त समय होता है, चूंकि उसे टॉपर्स के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए पढ़ने की चिंता नहीं होती।
वे जानते थे कि उसकी महत्वाकांक्षाओं के लिए वेतन पर्याप्त नहीं था। उनके दोस्तों ने उन्हें एमबीए करने या कैट परीक्षा देने की सलाह दी जिससे 6 अंकों वाला वेतन मिल सके। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ी और अंग्रेजी सीखने में छह महीने खर्च करने के बाद परीक्षा की तैयारी के लिए मप्र के धार से इंदौर आ गए। हालांकि वे निराश हुए जब उन्हें किसी भी शीर्ष कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला।
उन्होंने 2017 में फिर परीक्षा दी, जिसमें 82% अंक मिले लेकिन शीर्ष कॉलेज नहीं मिले। उन्होंने एमबीए का विचार छोड़ दिया। वे पिता से 10-12 लाख रुपए उधार लेकर बिजनेस करना चाहते थे, लेकिन इसमें जोखिम लग रहा था। उन्होंने 'बड़ा सपना देखो, छोटी शुरुआत करो और अभी काम करो' की धारणा पर विश्वास कर धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ाना शुरू किया।
वे देशभर में घूमे और अंतत: अहमदाबाद पहुंचे। वहां दोस्त की बाइक पर शहर में घूमे और देखा कि मर्सिडीज में घूमने वाले भी कार रोककर सड़क किनारे गुमटी पर चाय पीते हैं। शहर को समझने के लिए वे वहीं मैक्डोनाल्ड में 32 रुपए प्रति घंटे पर काम करने लगे।
उन्होंने 45 दिनों में साहस जुटाकर चाय का स्टॉल शुरू किया। पिता से 8,000 रुपए उधार लेकर 25 जुलाई 2017 को पहला स्टॉल शुरू किया और शाम 7 से रात 10 तक चलाने लगे क्योंकि मैक्डोनाल्ड में भी नौकरी जारी थी। इस काम ने उन्हें विनम्रता और शिष्टाचार के साथ छोटे बिजनेस के तरीके भी सिखाए।
दुकान का नाम 'एमबीए चाय वाला' रखा गया, जहां 10,000 कप चाय रोज बिकने लगीं। जल्द उनके परिवार को भी एक यूट्यूब वीडियो के जरिए इसके बारे में पता चला। धीरे-धीरे टर्नओवर 3 करोड़ रुपए हो गया। अब वे भारत के कई शहरों में फ्रेंचाइजी का विस्तार कर रहे हैं। और अंतत: उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद में लेक्चर दिया, जहां से वे एमबीए करना चाहते थे।
'इंतजार' और 'किसी के इंतजार' में जरा-सा अंतर है। और इसी तरह 'शांतिपूर्ण सफलता' और 'तनावपूर्ण सफलता' में अंतर है। अगर आपने फैसला लेकर कुछ किया है तो इंतजार करें। फिर 'इसका, उसका, किसी और चीज का' इंतजार न करें। फंडा यह है कि आध्यात्मिक प्रगति का सबसे महत्वपूर्ण गुण अपने हिस्से का काम कर इंतजार करना है। आध्यात्मिक अनुभव चाहने वाले ज्यादातर लोग वास्तव में परेशान होते हैं क्योंकि उनके रवैये में 'किसी का इंतजार' करने की बीमारी होती है।


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