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- रैगिंग की आग में बुझते...
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रैगिंग की शुरुआत कुछ यूरोपीय विश्वविद्यालयों में हुई थी जहां नए छात्रों के स्वागत के समय सीनियर विद्यार्थी व्यावहारिक मजाक करते थे। धीरे-धीरे यह दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गया। आज लगभग सभी देशों ने सख्त कानून बनाकर रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है और कई देशों में इसे खत्म भी कर दिया गया है। बहुत ही दु:ख की बात है कि हमारे शिक्षण संस्थान अभी भी इस अमानवीय प्रथा से मुक्त नहीं हुए हैं। पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय में कथित तौर पर रैगिंग के कारण एक छात्र की मौत ने कई लोगों को झकझोर कर रख दिया है। गत दिनों हिमाचल के मंडी में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के साथ रैगिंग की घटना सामने आई। संस्थान प्रबंधन ने मामले की जांच के बाद दस सीनियर छात्रों को निलंबित कर दिया है। आईआईटी मंडी के बाद अब हिमाचल के ही श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज नेरचौक में परिचय के बहाने जूनियर्स से रैगिंग की गई। संस्थान प्रबंधन ने छह सीनियर छात्रों के विरुद्ध कार्रवाई की है। उन्हें मेडिकल कॉलेज से तीन महीने और छात्रावास से छह महीने के लिए निलंबित कर दिया है। इसके साथ ही सभी आरोपियों पर पच्चीस हजार रुपए जुर्माना लगाया गया है। एक बार फिर रैगिंग जैसे अमानवीय व्यवहार और इससे निपटने में अधिकारियों के गैर-गंभीर रवैये पर ध्यान आकर्षित किया है। हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों और दिशा-निर्देशों के माध्यम से इस मुद्दे के समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विश्व जागृति मिशन मामले में वर्ष 2001 में रैगिंग को परिभाषित किया।
इसमें रैगिंग को किसी भी अव्यवस्थित आचरण जैसे साथी छात्र-छात्राओं को चिढ़ाना, उनके साथ अशिष्ट व्यवहार करना, अनुशासनहीन गतिविधियों में शामिल होना, जिससे मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है या जूनियर छात्रों के बीच डर का माहौल पैदा होता है। अक्सर जूनियर विद्यार्थियों की तुलना में सीनियर विद्यार्थियों द्वारा शक्ति और श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना रैगिंग के उद्देश्यों में शामिल होता है। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों में रैगिंग को रोकने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रॉक्टोरल समितियां स्थापित करने के लिए कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग मुद्दे पर नियम बनाने के लिए सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन के नेतृत्व में एक समिति नियुक्त की थी। इस राघवन समिति की सिफारिशों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अपनाया गया और इस संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी किए गए जिनका पालन करना विश्वविद्यालयों के लिए जरूरी था। विश्वविद्यालयों को रैगिंग रोकने के लिए इन दिशा-निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया गया है। इसके साथ ही विद्यार्थियों को शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया है कि वे ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे। कई भारतीय राज्यों जैसे केरल, आंध्र प्रदेश, असम और महाराष्ट्र में रैगिंग से निपटने हेतु विशेष रैगिंग निषेध अधिनियम बनाए गए हैं। रैगिंग रोकने संबंधी दिशा-निर्देशों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों, संस्था में पढऩे वाले विद्यार्थियों और संकाय सदस्यों को शामिल करते हुए ऑडिट करवाने की जरूरत है। इस तरह के ऑडिट से इस दिशा में कमियों को दुरुस्त करने और रणनीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है। कोई भी पीडि़त विद्यार्थी गोपनीय तरीके से रैगिंग की जानकारी साझा कर सके, इसके लिए एक मोबाइल ऐप विकसित किया जा सकता है। एक गैर-लाभकारी संगठन, सिक्योरिटी वॉच इंडिया ने छात्रों को सशक्त बनाने के लिए एक फोन एप्लिकेशन लॉन्च किया है। जब किसी विद्यार्थी को खतरा महसूस होता है, तो वह फोन पर एक बटन दबाता है जो आठ दोस्तों या रिश्तेदारों को संदेश, ईमेल और फोन कॉल भेजता है।
फोन स्वचालित वीडियो मोड में चला जाता है और रिकॉर्डिंग उन आठ लोगों के साथ-साथ सिक्योरिटी वॉच इंडिया के कॉल सेंटर को भी दिखाई देती है। स्थान को गूगल मानचित्र पर भी चिह्नित किया जाता है। इस तरह से एक फोन ऐप आईवॉच रैगिंग के शिकार छात्रों को सशक्त बना सकता है। सांस्कृतिक, खेल और अन्य रचनात्मक गतिविधियों का उपयोग एकजुटता बनाने के लिए किया जा सकता है। रैगिंग हिंसा का एक रूप है जो विद्यार्थियों को अपमानित, डराने-धमकाने या चोट पहुंचाने का कारण बनता है, जिसके परिणामस्वरूप अवसाद और कभी-कभी आत्महत्या जैसे प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं। इसलिए परिसरों में और उसके आसपास छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त उपाय किए जाने चाहिए। जूनियर और सीनियर दोनों को शामिल करते हुए सांस्कृतिक उत्सवों और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों का आयोजन ऐसी परिस्थितियों को कम कर सकता है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सूचना के अधिकार के माध्यम से बताया है कि एक जनवरी 2018 से एक अगस्त 2023 के बीच पिछले साढ़े पांच वर्षों में केंद्रीय निकाय के साथ पंजीकृत की गई शिकायतों में यह पता चला है कि रैगिंग का शिकार होने के बाद कम से कम 25 छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गई है। छात्रों की आत्महत्या का मुद्दा एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है। उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के लिए यूजीसी के नियम स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान करते हैं और सभी संस्थानों को रैगिंग रोकने के लिए इन दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को मानसिक स्वास्थ्य, तनाव प्रबंधन के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। रैगिंग करने वाले बच्चों के बीच नैतिकता की कमी पाई गई है, इसीलिए शिक्षण विषय सूची में भी नैतिकता का पाठ जोडऩा और पढ़ाना बेहद जरूरी है। शैक्षणिक काउंसिलिंग की भी व्यवस्था होनी चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रैगिंग रोकने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। छात्रों को शिक्षित भी किया जाना चाहिए।
प्रत्यूष शर्मा
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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