सम्पादकीय

अमेरिका में एक बार फिर दिखा पुलिस का अमानवीय चेहरा, गुस्से में लोग, ट्रंप को डर है कि कहीं लेने के देने न पड़ जाए

Neha Dani
8 Oct 2022 4:13 AM GMT
अमेरिका में एक बार फिर दिखा पुलिस का अमानवीय चेहरा, गुस्से में लोग, ट्रंप को डर है कि कहीं लेने के देने न पड़ जाए
x
शॉविन अपने घुटने से उसकी गर्दन दबा रहा है। जॉर्ज उनसे कह रहे हैंः ‘मेरा दम घुट रहा है।’

लंबे अरसे से साम्यवादी कहते रहे हैं, 'पूंजीवाद हमें वह रस्सी बनाकर बेचेगा जिसके सहारे हम उसे लटकाकर फांसी देंगे।' इस उद्धरण का श्रेय मार्क्स, लेनिन, स्टैलिन और माओ जे दगुं तक को दिया जाता है और इसे कई तरह से पेश किया जाता है। आशय यह कि पूंजीवाद की समाप्ति के उपकरण उसके भीतर ही मौजूद हैं। पिछली सदी के मध्यकाल में 'मरणासन्न पूंजीवाद' और 'अंत का प्रारंभ'-जैसे वाक्यांश वामपंथी खेमे से उछलते रहे। हुआ इसके विपरीत। नब्बे के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनिया को लगा कि अंत तो कम्युनिज्म का हो गया।

उस परिघटना के तीन दशक बाद 'पूंजीवाद का संकट' सिर उठा रहा है। अमेरिका में इन दिनों जो हो रहा है, उसे पूंजीवाद के अंत का प्रारंभ कहना सही न भी हो, पश्चिमी उदारवाद के अंतर्विरोधों का प्रस्फुटन जरूर है। डोनाल्ड ट्रंप का उदय इस अंतर्विरोध का प्रतीक था और अब उनकी रीति-नीति के विरोध में अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों का आंदोलन उन अंतर्विरोधों को रेखांकित कर रहा है। पश्चिमी लोकतंत्र के सबसे पुराने गढ़ में उसके सिद्धांतों और व्यवहार की परीक्षा हो रही है। इसके दो रूप देखने को मिले हैं। एक तरफ अमेरिकी पुलिस ने जॉर्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत नागरिक के साथ इतनी सख्ती बरती कि उसकी जान चली गई। उसके बाद देशभर में आंदोलनों की आग लग गई जिसे बुझाने के लिए असाधारण कदम उठाए गए।शहरों में कर्फ्यू लगाया गया। ट्रंप ने सेना बुलाने की धमकी दी है। दूसरी तरफ, मायामी पुलिस ने घुटनों पर बैठकर लोगों के गुस्से और मांगों को समझने और इस लड़ाई में साथ देने का संकेत भी दिया। हाउस्टन के पुलिस चीफ ने डोनाल्ड ट्रंप को अपना मुंह बंद रखने की सलाह दी। राष्ट्रपति चुनाव के साल में अमेरिकी सामाजिक जीवन में ऐसी कड़वाहट जबर्दस्त ध्रुवीकरण का संकेत दे रही है।
राष्ट्रपति पद पर काम करते हुए डोनाल्ड ट्रंप के पहले तीन साल अपेक्षाकृत शांति से निकल गए। आंतरिक राजनीति में कई तरह के विरोधों का सामना करते हुए भी ट्रंप ने इस साल के शुरू में अमेरिकी संसद में महाभियोग को परास्त करने में सफलता प्राप्त कर ली। कोरोना वायरस के प्राणघातक प्रहार और अब देश-विदेश व्यापी प्रदर्शनों ने उनके सामने मुश्किलों के पहाड़ खड़े कर दिए हैं। मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए चीन को फटकार लगाने वाले ट्रंप को वैश्विक फटकार सुननी पड़ रही है।
'आई कांट ब्रीद'
मिनेपॉलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का वायरल वीडियो गवाही दे रहा है कि अमेरिकी पुलिस किस हद तक अमानवीय है। आंदोलनकारी सड़कों पर फ्लॉयड के आखिरी शब्द 'आई कांट ब्रीद' का मंत्र की तरह जाप कर रहे हैं। दुनिया के किसी भी कोने में पुलिस के ऐसे कृत्य की भर्त्सना करने में अमेरिका सबसे आगे रहता था। अब वह देखे कि उसके घर में क्या हो रहा है? रोचक बात यह है कि मानवाधिकार के धर्मयुद्ध में अमेरिका के साथ खड़े होने वाले देशों ने अभी तक इस मामले पर टिप्पणी नहीं की है। पश्चिमी देश पहले सन्नाटे में आ गए और उनकी टिप्पणियों में अफसोस ज्यादा है, नाराजगी कम। क्या पश्चिमी लोकतंत्र को इस आंदोलन से ठेस लगेगी ? क्या यह उसकी संरचनात्मक विफलता है? क्या चीन-जैसे देशों को बचाव का मौका मिल गया है?
डोनाल्ड ट्रंप राजनीतिक चक्रव्यूह में घिर गए हैं। इसका असर चुनाव पर पड़ेगा। पर किस दिशा में? आंदोलन में हिंसा और लूटपाट भी हुई है और पुलिस अत्याचार भी। खामोश बहुमत किस बात को महत्व देगा ? अश्वेतों और लैटिन अमेरिकी मूल के नागरिकों का वोट पहले से ही उनके खिलाफ है। देश का परंपरागत 'गोरा मन' क्या ट्रंप का साथ देगा ? आंदोलन का एक असर कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की रणनीति पर भी पड़ेगा। जिस तरह भारत में प्रवासी मजदूरों की भीड़ बगैर किसी सुरक्षात्मक व्यवस्था के निकल पड़ी थी, वैसे ही दृश्य अमेरिका में दिखाई पड़ रहे हैं।
घायल अर्थव्यवस्था
सबसे बड़ा असर अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा जिसे बचाने के लिए ट्रंप ने कोरोना से बचाव के बजाय सामना करने का फैसला किया था। नैया को किनारे लगाना आसान काम नहीं है। इन पंक्तियों के लिखने तक आंदोलनों की लहर थमी नहीं थी बल्कि उसका विस्तार यूरोप और एशिया के देशों में भी हो गया था। लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए लाखों लोगों की नाराजगी बाहर आ रही है। दुकानें लूटी जा रही हैं, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। पुलिस के साथ आमने-सामने की मुठभेड़ें हो रही हैं। लंदन के ट्रैफेल्गर स्क्वायर से लेकर जर्मनी और फ्रांस के शहरों में भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
इस मामले की शुरुआत 20 डॉलर के नोट के इस्तेमाल की रिपोर्ट से हुई थी जिसके बारे में अनुमान था कि वह जाली है। 25 मई की शाम को जॉर्ज ने एक किराने की दुकान से सिगरेट खरीदा था। दुकान में मौजूद कर्मचारी को लगा कि जॉर्ज जाली नोट दे रहे हैं और उसने पुलिस को फ़ोन कर दिया। कुछ देर बाद दो पुलिस वाले वहां पहुंच गए। जॉर्ज दो अन्य लोगों के साथ किनारे खड़ी गाड़ी में बैठे हुए थे। पुलिस अधिकारी टॉमस लेन ने कार की ओर बढ़ते हुए अपनी बंदूक निकाल ली और जॉर्ज को हाथ खड़ा करने को कहा। पुलिस का कहना है कि हम उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, पर फ्लॉयड ने हथकड़ी लगाने का विरोध किया। जॉर्ज जमीन पर गिर गए और कहने लगे कि उन्हें क्लॉस्टेरोफोबिया (बंद जगह में डरना) है। 46 वर्षीय फ्लॉयड की मौत के ठीक पहले के क्षणों का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें पुलिसकर्मी डेरेक शॉविन अपने घुटने से उसकी गर्दन दबा रहा है। जॉर्ज उनसे कह रहे हैंः 'मेरा दम घुट रहा है।'

सोर्स: navjivanindia

Next Story