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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
कोरोना काल में भारतीय दवा उद्योग ने गुणवत्तापूर्ण दवा और कोविड-19 टीका विकसित व वितरित कर विश्वव्यापी प्रतिष्ठा अर्जित की थी. लेकिन अब हरियाणा की एक दवा कंपनी द्वारा निर्मित कफ सिरप को लेकर विवाद व संदेह उत्पन्न हो गया है. खांसी व ठंड को काबू में लाने वाले इस सिरप के पीने से अफ्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत हो गई. सभी मृतक बच्चे पांच साल से कम उम्र के थे और ये दवा लेने के बाद तीन से पांच दिन के भीतर भगवान को प्यारे हो गए.
इस दवा में डाइथिलीन ग्लायकोल और इथिलीन ग्लायकोल की मात्रा औसत से ज्यादा पाई गई जिसके चलते मृतक बच्चों के गुर्दे नहीं भरने वाले घाव में बदल गए. नतीजतन विश्व स्वास्थ्य संगठन को सक्रिय होना पड़ा और उसने मौत का कारण तय किया. डब्ल्यूएचओ ने अनेक देशों को इस सिरप की बिक्री पर रोक लगाने की सलाह दी है. भारत सरकार ने भी दवाओं के नमूने लेकर कोलकाता की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज दिए हैं.
अतएव कह सकते हैं कि भारत के दवा कारोबार की साख पर आंच आई है. इससे भारत में बनाई जाने वाली सस्ती व असरकारी दवाओं के अंतरराष्ट्रीय बाजार को भी बट्टा लगेगा. लेकिन चिंता की बात यह है कि एक कफ सिरप के प्रयोगशाला में परीक्षण के दौरान सामने आए अस्थायी नतीजों को दवा में घातक तत्व होने का कारण कैसे मान लिया गया?
डब्ल्यूएचओ ने कुल 23 नमूने लिए थे, जिनमें जांच के बाद केवल चार में घातक एवं प्रतिबंधित रसायन होने का पता चला है इसलिए यह संशय सहज रूप से उत्पन्न होता है कि कहीं भारतीय दवा उद्योग को प्रभावित करने का यह षड्यंत्र तो नहीं है क्योंकि कोरोना काल में भी डब्ल्यूएचओ और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने भारत के दवा उद्योग को प्रभावित करने की कोशिश की थी.
इनमें वैश्विक प्रसिद्धि प्राप्त मेडिकल जर्नल 'लांसेट' और बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स स्थित न्यूज वेबसाइट इयू रिपोर्टर ने भ्रामक रिपोर्टें प्रकाशित की थीं. इनकी पृष्ठभूमि में विदेशी दवा कंपनियों की मजबूत लॉबी थी. दरअसल ये कंपनियां नहीं चाहतीं कि कोई विकासशील देश कम कीमत पर दुनिया को सस्ती व असरकारी दवा उपलब्ध कराने में सफल हो जाए.
हालांकि दवा कंपनियों की मुनाफाखोरी और अमानक दवाओं को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं. भारतीय कंपनियां भी इस मुनाफे की हवस में शामिल हैं. कंपनी मामलों के मंत्रालय की एक सर्वे रिपोर्ट कुछ समय पहले आई थी, जिसमें खुलासा किया गया था कि दवाओं की महंगाई का कारण दवा में लगने वाली सामग्री का महंगा होना नहीं है बल्कि दवा कंपनियों का मुनाफे की हवस में बदल जाना है.
Rani Sahu
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