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सम्पादकीय
विश्व के ताकतवर मुल्कों के वो ऐतिहासिक अपराध, जिसके लिए उन्होंने कभी माफी नहीं मांगी
Shiddhant Shriwas
18 Oct 2021 11:06 AM GMT
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उससे तीन दिन पहले 10 अप्रैल को ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ब्रिटिश संसद में कहा कि उन्हें इस बात का 'बहुत अफसोस' है
दुनिया के ताकतवर मुल्कों के माथे पर अनेक ऐतिहासिक अपराधों का कलंक है. जिसकी जितना बल-वैभव, उसके उतने बड़े अपराध. इसमें से ज्यादातर अपराध ऐसे हैं, जो अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के खाते में दर्ज हैं. ब्रिटेन, जिसके अधीन एक समय आधी दुनिया थी और अमेरिका, जो ब्रिटेन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा सत्ता और ताकत का केंद्र बन गया. ब्रिटेन समय-समय पर माफीनामे की कुछ फुलझ़डियां छोड़ देता है, जैसेकि स्लेव ट्रेड में ब्रिटेन की भूमिका को लेकर सरकार ने माफी मांगी क्योंकि यह एक किस्म की हाइपोथेटेकल माफी भी थी क्योंकि अपराध का सीधा-सीधा उत्तरदायित्व किसी सरकार या किसी व्यक्ति का नहीं था. लेकिन जहां अपराध और उसका उत्तरदायित्व दोनों स्पष्ट थे, चाहे अमेरिका हो या ब्रिटेन, दोनों ने कभी माफी नहीं मांगी.
जापान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जिसने दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद अपने तमाम वॉर क्राइम्स के लिए लगातार आधिकारिक तौर पर माफी मांगी. यहां हम आप आपको बता रहे हैं अमेरिका और ब्रिटेन के ऐसे चार ऐतिहासिक वॉर क्राइम्स के बारे में, जिसके लिए उनके माफीनामे का दुनिया को अब भी इंतजार है.
जलियांवाला बाग हत्याकांड
इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया 1997 में अपने पति फिलिप के साथ हिंदुस्तान आई थीं. 13 अक्टूबर की शाम एक रॉयल भोज के दौरान उन्होंने कहा, यह बात कोई रहस्य नहीं है कि हमारे अतीत में कुछ मुश्किल अध्याय रहे हैं- जलियांवाला बाग, जहां मैं कल जाने वाली हूं, उसका एक दुखद उदाहरण है. अगले दिन महारानी के जलियांवाला बाग जाने की तस्वीेरें अखबारों के मुखपृष्ठ पर छपी थीं. अंदर विस्तार से लिखा था कि दीवारों पर पड़े गोलियों के निशान देखकर उनकी कैसी प्रतिक्रिया थी.
13 अप्रैल, 2019 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी थी. उससे तीन दिन पहले 10 अप्रैल को ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ब्रिटिश संसद में कहा कि उन्हें इस बात का 'बहुत खेद' है. महारानी विक्टोरिया के शब्दों 'दुखद उदाहरण' (Distressing Example) को कोट करते हुए थेरेसा ने कहा कि "जो कुछ भी हुआ, उसका बहुत अफसोस है."
जिस तरह 1857 का गदर भारत में कंपनी राज का अंत था, उसी तरह जलियांवाला बाग हत्याकांड एक तरह से भारत में ब्रिटिश सत्ता की ताबूत में ठुंकी आखिरी कील साबित हुआ
13 अप्रैल, 1919 को रविवार था और बैसाखी का दिन. अमृतसर शहर के जलियांवाला बाग में सैकड़ों की संख्या में लोग स्वतंत्रता आंदोलन के दो सेनानियों सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्या पाल की गिरफ्तारी के खिलाफ शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे. तभी ब्रिटिश सेना का जनरल आर.ई.एच. डायर अपने लाव-लश्कर के साथ वहां पहुंचा और निहत्थे लोगों को दनादन गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. इस हत्याकांड में 391 लोगों की मौत हो गई और 2000 से ज्यादा घायल हुए.
इस हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. सिर्फ भारत ही नहीं, इसकी गूंज हर उस देश तक पहुंची, जो उस वक्त अंग्रेजों का गुलाम था. जिस तरह 1857 का गदर भारत में कंपनी राज का अंत था, उसी तरह जलियांवाला बाग हत्याकांड एक तरह से भारत में ब्रिटिश सत्ता की ताबूत में ठुंकी आखिरी कील साबित हुआ. उसके बाद महज 28 साल और लगे साै साल लंबी चली आजादी की लड़ाई को अपनी मंजिल तक पहुंचने में.
ब्रिटिश सरकार ने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड पर खेद तो जताया, लेकिन कभी माफी नहीं मांगी. आज भी हमें उनके आधिकारिक माफीनामे का इंतजार है.
6 अगस्त की सुबह 5 बजकर 55 मिनट पर शहर के बीचोंबीच एक जोर का धमाका हुआ, जिसकी गूंज मुख्य शहर के चारों ओर ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर तक सुनाई दी
जापान के हिरोशिमा शहर के बीचोंबीच हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क में एक म्यूजियम है. इस म्यूजियम में कागज के बने दो छोटे क्रेन
रखे हुए हैं, जो 2016 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी हिरोशिमा यात्रा के दौरान खुद अपने हाथों से बनाकर
वहां रखे थे.
हर साल दुनिया भर से हजारों की संख्या में लोग उस पीस मेमोरियल म्यूजियम में आते हैं और बराक ओबामा के बनाए उस पेपर क्रेन को देखने भी, लेकिन शायद ही उनमें से कोई ये बात जानता हो कि इस कागज के खिलौने के साथ बराक ओबामा की तरफ से कोई माफीनामा नहीं आया था. वो पीस म्यूजियम में गए जरूर थे, मृतकों की आत्मा की शांति के लिए मौन भी रखा था, उन्हें श्रद्धांजलि भी दी थी, वहां बैठकर कागज की क्रेन बनाई थी, लेकिन अमेरिका की तरफ से नागासाकी-हिरोशिमा के परमाणु हमले के लिए माफी नहीं मांगी थी.
उस हमले को 76 साल हो चुके हैं. 1945 में 6 से 9 अगस्त के बीच में अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर दो परमाणु बम गिराए थे. 6 अगस्त की सुबह 5 बजकर 55 मिनट पर शहर के बीचोंबीच एक जोर का धमाका हुआ, जिसकी गूंज मुख्य शहर के चारों ओर ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर तक सुनाई दी. एकाएक पूरा शहर अंधेरे में डूब गया. शहर की 30 फीसदी आबादी तो धमाके के साथ ही खत्म हो गई. बाकियों तक मौत धीरे-धीरे पहुंची.
परमाणु हमले का असर धीरे-धीरे दिखना शुरू हुआ. फेफड़ों में जहर भरने लगा और लोग तिल-तिलकर मरने लगे. मौत का ये खेल कुछ दिनों, कुछ हफ्तों, कुछ महीनों का नहीं था. कर्द पीढि़यों का था. जब लगा कि बम का धुंआ उड़ चुका है, धूल वापस जमीन पर बैठ गई है, लोग बीमारियों से मरने लगे. उनके फेफड़ों में ने काम करना बंद कर दिया, आंखों से दिखना बंद हो गया, बच्चे अपंग पैदा होने लगे, जो जन्म से अंधे और सांस ले सकने में अक्षम होते.
आज 76 साल बाद भी उस बम का असर खत्म नहीं हुआ है. अटॉमिक रेडिएशन के निशां अब भी हैं. शारीरिक विकलांगता और स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां अब भी हो रही हैं.
लेकिन 76 साल बाद आज भी अमेरिका आधिकारिक तौर पर उस जघन्य अपराध के लिए जापान से माफी नहीं मांगी. अमेरिका को आज भी लगता है कि उस समय उसने जो किया, वो सही किया.
वियतनाम की लड़ाई
अमेरिका के ऐतिहासिक अपराधों की फेहरिस्त तो सबसे लंबी है. उसने वियतनाम में 20 साल तक युद्ध लड़ा. वियतनाम का एक हिस्सा चीन और सोवियत संघ के समर्थन से और दूसरा अमेरिका के समर्थन ने एक-दूसरे की मिट्टी पलीद करता रहा. इस युद्ध में न सिर्फ दोनों तरफ के हजारों सैनिक और हजारों की संख्या में वियतनामी नागरिक मारे गए, बल्कि अमेरिका को भी मारी नुकसान उठाना पड़ा. वो सिर्फ अहंकार के कारण लगातार एक हारा हुआ युद्ध लड़ रहा था. और उस युद्ध से जुड़े सारे दस्तावेजों को गोपनीयता के नाम पर जनता से छिपाकर रखा गया.
वियतनाम युद्ध न सिर्फ वियतनाम की जनता, बल्कि खुद अमेरीकी जनता के प्रति भी अमेरिका का अपराधिक कृत्य था, जिसके लिए उसने कभी माफी नहीं मांगी.
इराक में अमेरिका ने जो किया, वो भी ऐतिहासिक अपराध ही था
इराक युद्ध
इराक को सद्दाम हुसैन की तानाशाही से मुक्त कराने के नाम पर इराक की जमीन पर खेला जा रहा खेल दरअसल वहां अपनी पिट्ठू सरकार बिठाने और उनके तेल के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने की अमेरिकी साजिश थी, जिसकी कीमत इराक की सेना और जनता ने हजारों की संख्या में अपनी जान देकर चुकाई. इराक में अमेरिका ने जो किया, वो भी ऐतिहासिक अपराध ही था, लेकिन अगर किसी को लगता है कि इस तरह के अपराधों के लिए वो देश माफी मांगेगा तो वह गलतफहमी में है. अमेरिका सीना ठोंककर राज करने वालों में से है.
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