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सोर्स- Jagran
कांग्रेस की बहुचर्चित भारत जोड़ो यात्रा का शुभारंभ हो गया। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यह यात्रा 150 दिनों की है। यह यात्रा जिन एक दर्जन राज्यों से गुजरेगी, उनमें गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल नहीं हैं, जबकि वहां विधानसभा चुनावों की गहमागहमी शुरू हो गई है। इसका कारण जो भी हो, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर चुनाव वाले इन दोनों राज्यों को भारत जोड़ो यात्रा से क्यों बाहर रखा गया? कांग्रेस भले ही नफरत छोड़ो-भारत जोड़ो और कदम मिले-वतन जुड़े जैसे नारों के साथ यात्रा की शुरुआत कर रही हो, लेकिन हर ऐसी यात्रा का उद्देश्य राजनीतिक ही होता है।
यह समय ही बताएगा कि कांग्रेस को अपनी इस यात्रा का अपेक्षित राजनीतिक और चुनावी लाभ मिलेगा या नहीं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अतीत में ऐसी अनेक यात्राएं सफल भी रही हैं। लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रही हो या फिर चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी की यात्राएं, इन यात्राओं से इन नेताओं को राजनीतिक लाभ मिला। वैसे यह आवश्यक नहीं कि हर ऐसी यात्रा सफल ही साबित हो।
चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने के पहले पद यात्रा निकाली थी, लेकिन वह राजनीतिक रूप से कोई बहुत सफल नहीं कही जा सकती। उनकी इस यात्रा का जब दिल्ली में समापन हुआ तो उसमें मुट्ठी भर लोग ही जुटे थे। वास्तव में इस तरह की यात्राओं की सफलता इस पर निर्भर करती है कि संबंधित नेता और दल जनता को वांछित संदेश देने और उसमें उत्साह जगाने में सफल रहता है या नहीं?
फिलहाल यह कहना कठिन है कि राहुल गांधी यह काम कर सकेंगे या नहीं, क्योंकि अभी तक न तो वह और न ही उनके सहयोगी ऐसा कोई विमर्श खड़ा कर सके हैं, जो देश की जनता को आकर्षित कर सके। यदि इस यात्रा के जरिये राहुल गांधी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भर सकें तो यह भी एक उपलब्धि होगी, क्योंकि एक अर्से से जिस तरह एक के बाद एक नेता के पार्टी छोड़ने का सिलसिला कायम है, उससे कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव नजर आता है।
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा एक ऐसे समय हो रही है, जब पार्टी के अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया जारी है। इसे लेकर संशय व्याप्त है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनेंगे या नहीं? इसी तरह प्रश्न यह भी है कि राहुल गांधी के इन्कार करने की स्थिति में अध्यक्ष कौन बनेगा? अच्छा होता कि अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद इस यात्रा का आयोजन किया जाता। कांग्रेस के नीति-नियंताओं को यह समझने की भी आवश्यकता है कि वे पार्टी की विचारधारा को सही तरह रेखांकित नहीं कर पा रहे हैं।
Rani Sahu
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