सम्पादकीय

महंगाई भरे दिन बीते न भैया

Rani Sahu
19 March 2023 6:59 PM GMT
महंगाई भरे दिन बीते न भैया
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By: divyahimachal
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के बयान से गहरा सुकून मिला था, लेकिन बहुत जल्द ही वह खंड-खंड होकर बिखर गया। गवर्नर दास ने दावा किया था कि महंगाई का दौर बहुत पीछे छूट गया है। महंगाई अतीत हो चुकी है। हम महंगाई के प्रभावों से अब उबर रहे हैं। उन्होंने यह दावा तब किया, जब आकलन किए जा रहे हैं कि वित्त-वर्ष 2023-24 के दौरान खुदरा महंगाई दर 6.8 फीसदी, थोक की दर 11.5 फीसदी और फूड की महंगाई दर 7 फीसदी से अधिक होने के अनुमान हैं। संभावित महंगाई की दर उस लक्ष्मण-रेखा के पार लगती है, जो भारत सरकार और रिजर्व बैंक ने तय कर रखी है। यह लक्ष्मण-रेखा 6 फीसदी की है। अर्थात महंगाई की दर इससे ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन रिकॉर्ड स्पष्ट बयां कर रहे हैं कि बीते 15 माह के दौरान महंगाई ने कमोबेश 13 बार लक्ष्मण-रेखा को लांघा है। अलबत्ता फरवरी, 2023 में भी खाद्य महंगाई दर करीब 5.95 फीसदी थी और खुदरा दर 6.44 फीसदी रही। शायद आम आदमी इन प्रतिशतों को नहीं जानता होगा, लिहाजा मोटे तौर पर स्पष्ट कर दें कि महंगाई अब भी मौजूद है। बल्कि तय लक्ष्मण-रेखा के बाहर ही है, लिहाजा ‘चरम’ पर है। बेशक केंद्रीय मंत्री और सत्ता-पक्ष के प्रवक्ता अब भी कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों और रूस-यूक्रेन युद्ध की आड़ में छिप कर दलीलें देते रहे हैं, लेकिन ‘महंगाई भरे दिन बीते न भैया…’ की तर्ज पर एक पुराना गीत लोगों के लबों पर है। दुर्भाग्य यह है कि महंगाई का मुद्दा कभी भी ‘राष्ट्रीय’ नहीं बन सका, लेकिन ‘राष्ट्रवाद’ का ढोल कहीं भी पीटा जा सकता है।
रोजमर्रा के कुछ उदाहरणों से स्पष्ट हो जाएगा कि महंगाई कितने छद्म तरीके से हमें प्रभावित कर रही है। बिस्कुट का 5 रुपए वाले पैकेट का वजन 80 ग्राम होता था, जिसे घटाकर 52 ग्राम कर दिया गया है। चाय की पत्ती का जो 250 ग्राम वाला पैकेट 60 रुपए में मिलता था, उसे घटा कर 200 ग्राम कर दिया गया है। नमकीन का 10 रुपए वाला पैकेट 60 ग्राम से घटा कर 42 ग्राम कर दिया गया है। बेशक ये छोटे-छोटे खर्च हैं, जो आम आदमी को उतने नहीं चुभते होंगे, लेकिन आटा, चावल, दाल, चीनी, सरसों का तेल, मसाला, मांस-मछली, अंडा, दुग्ध उत्पाद, अनाज और सबसे अधिक रसोई गैस का सिलेंडर आदि लगातार महंगे होते रहे हैं, नतीजतन औसत घर का बजट भी डांवाडोल हुआ होगा! राजधानी दिल्ली में गैस का सिलेंडर 1103 रुपए का बिक रहा है। यह स्थिति तब है, जब अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के बाज़ार में दाम 72 डॉलर प्रति बैरल है। यह कीमत 116 डॉलर प्रति बैरल से लुढक़ कर आई है, लेकिन आम आदमी के लिए पेट्रोल और डीजल के खुदरा दाम यथावत हैं। बीते 10 माह से दाम न तो बढ़े और न ही कम किए गए हैं। सवाल है कि जब कच्चा तेल लगातार सस्ता हो रहा है, तो उसका फायदा आम उपभोक्ता को क्यों नहीं दिया जा रहा है?
तेल ही महंगाई का प्रमुख, बुनियादी कारक है। सरकार को सवाल करें, तो उनका जवाब होता है कि तेल कंपनियां और बाज़ार ही दाम तय करते हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि यदि विपक्ष सहमत है, तो तेल को भी जीएसटी के दायरे में लाने को सरकार तैयार है। उससे भी तेल के दाम कम होंगे। सवाल यह है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर का महंगाई संबंधी दावा किन आधारों और डाटा पर आधारित है? बेशक केंद्रीय बैंक के साथ बड़े और विशेषज्ञ अर्थशास्त्री जुड़े हैं। जाहिर है कि देश की अर्थव्यवस्था को वे आम आदमी की तुलना में बेहतर ढंग से जानते हैं, लेकिन हकीकत तो कुछ और ही है। मान लेते हैं कि देश में औसत आय भी बढ़ी है, लेकिन करोड़ों लोग आज भी ऐसे हैं, जो रोज़ाना के 32 रुपए से ज्यादा खर्च करने में असमर्थ हैं। विशेषज्ञ आशंकाएं जताने लगे हैं कि महंगाई ही नहीं, शीघ्र ही मंदी की मार भी हमें झेलने को तैयार रहना चाहिए! क्या सरकार यह सब कुछ देख-सुन रही है? गरीब वर्ग को सस्ते दाम पर सरकारी राशन दिया जा रहा है। मध्यम वर्ग महंगाई की मार झेलने के लिए विवश है। उसे किसी तरह की सहायता नहीं दी जाती। इस तरह मध्यम वर्ग महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। आगामी लोकसभा चुनाव मात्र एक साल दूर हैं। अगर भाजपा को फिर से सत्ता हासिल करनी है, तो महंगाई पर अंकुश लगाना होगा, अन्यथा जनता एनडीए के खिलाफ भी जा सकती है।
Rani Sahu

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