सम्पादकीय

सियासत में महिलाओं के लिए सम्मान का संकट

Rani Sahu
25 May 2022 6:08 PM GMT
सियासत में महिलाओं के लिए सम्मान का संकट
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पाकिस्तान में एक बार फिर महिलाओं का सम्मान बहस का मुद्दा बन गया है

पाकिस्तान में एक बार फिर महिलाओं का सम्मान बहस का मुद्दा बन गया है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की एक टिप्पणी के बाद बहस छिड़ी है. उन्होंने प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की भतीजी और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी राजनेत्री मरियम के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था.

उन्होंने कहा था कि मरियम सभाओं में इमरान खान का नाम इतनी बार लेती हैं कि उनके पति कहीं खफा न हो जाएं. इस पर बवाल तो होना ही था. सबसे पहले इमरान की पूर्व पत्नियों में से एक रेहम खान ने कहा कि उन्हें शर्म आती है कि वे ऐसे घटिया इंसान की पत्नी रही हैं.
इसके बाद तो मुल्क की महिलाओं ने इमरान के बारे में इतना आक्रोश प्रकट किया कि उन्हें सफाई देना भी मुश्किल हो गया. वैसे इमरान खान को महिलाओं के मामले में कभी सम्मान से नहीं देखा गया.
उनकी सारी पूर्व पत्नियां उन पर औरतों को लेकर बाजारू सोच रखने का आरोप लगाती रही हैं. कई देशों में उनकी गहरी महिला मित्र रही हैं और उनके अनुभव भी कोई इज्जत नहीं बख्शते. उनकी अपनी पार्टी की सदस्या आयशा गुलाली ने भी इमरान पर अश्लील संदेश भेजने का आरोप लगाया है.
पाकिस्तान की सियासत में यह पहली बार नहीं है. इससे पहले विदेश मंत्री रही हिना रब्बानी खार पर भी असम्मानजनक टिप्पणियों का लंबा सिलसिला है. बिलावल भुट्टो से उनकी नजदीकियों को लेकर सियासी गलियारे चुटकुलों से भरे पड़े हैं.
पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं पीपुल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो को भी राजनीतिक सहयोगियों और विरोधियों की तरफ से ऐसे ही बर्ताव का सामना करना पड़ा था. इतने गंदे और अमर्यादित ढंग से बेनजीर की घेराबंदी की गई कि एकबारगी वे खुद तड़प कर रह गई थीं.
कहा गया कि इमरान खान से उनके प्रेम संबंध हैं, लेकिन इमरान ने उनके बारे में भी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था. बीच में तो इस तरह का वातावरण बन गया था कि पाकिस्तान में कोई भले घर की महिला सियासत में काम नहीं कर सकती. आज भी वहां के समाज में औरतों के सार्वजनिक जीवन में उतरने को बहुत अच्छा नहीं माना जाता.
लेकिन हम केवल पाकिस्तान की बात ही क्यों करें? भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में आधी आबादी को सत्ता में भागीदारी के लिए समान अवसर उपलब्ध नहीं है. जब वे राजनीति में प्रवेश के प्रयास करती हैं तो पुरुष खौफ खाते हैं.
बांग्लादेश में कुछ महीने पहले सूचना प्रसारण मंत्री मुराद हसन ने पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया की पोती के बारे में अश्लील टिप्पणियां की थीं. खालिदा की तबियत इन दिनों बहुत खराब है और उनकी पोती विरासत संभालने की तैयारी कर रही हैं.
प्रधानमंत्री बेगम शेख हसीना ने उनसे जवाब तलब किया था. मगर मंत्री जी यहीं नहीं रुके. कुछ दिन बाद ही उन्होंने मुल्क की लोकप्रिय अभिनेत्री माहिया माही को दुष्कर्म की धमकी दे डाली. इसके बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उन्हें पद से ही हटा दिया.
पिछले पच्चीस-तीस साल से बांग्लादेश में दोनों बेगमों की ही सरकारें रही हैं. इसके बाद भी महिला नेत्रियों के बारे में पुरुष राजनेताओं की राय नहीं बदली है.
नेपाल का हाल भी ऐसा ही है. डेढ़ साल पहले संसद के निचले सदन की स्पीकर शिवमाया तुम्बा हांफे को अचानक ही हटा दिया था. शिवमाया वरिष्ठतम महिला नेत्री हैं. उनका आरोप था कि पुरुष प्रधान सियासत में महिलाओं के लिए कोई स्थान नहीं है.
संयोग है कि उन्हें दुष्कर्म के आरोप में हटाए गए स्पीकर कृष्ण बहादुर के स्थान पर लाया गया था. लेकिन वे ज्यादा दिन पद पर काम नहीं कर पाईं. शिवमाया का कहना है कि नेपाल इन दिनों महिलाओं के लिए सियासत के राजशाही के दौर से भी खराब है.
श्रीलंका में भी राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा और प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके ने शानदार काम किया, लेकिन वे भी महिलाओं को सम्मान नहीं दिला सकीं. सिरिमावो भंडारनायके के रूप में संसार को इस देश ने पहली महिला प्रधानमंत्री तो दिया, लेकिन वे सियासी नजरिया बदलने में असफल रहीं.
म्यांमार के बारे में कुछ भी छिपा नहीं है. आंग सान सू की ने लोकतंत्र और महिलाओं की बेहतरी के लिए काफी कुछ करना चाहा, मगर वे सर्वोच्च स्थान पर पहुंचने के बाद भी जेल में हैं. उनके लिए कोई मजबूत समर्थन नहीं दिखाई दे रहा है.
उनके बाद कोई महिला नेत्री इस सुंदर देश के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरती नहीं दिखाई दे रही है. वहां सेना ने सू की की गिरफ्तारी के बाद उनकी महिला कार्यकर्ताओं का दमन शुरू कर दिया है.
उत्पीड़न से बचने के लिए महिलाओं ने अंधविश्वास का सहारा लिया. उन्होंने कमर के नीचे पहनने वाले कपड़े सारोंग को चारों तरफ इस तरह लटकाया कि कोई उनको पार करके निकल न सके.
मान्यता है कि जो पुरुष उनको पार करके या उनके नीचे से निकलेगा, वह नपुंसक हो जाएगा. अनेक स्थानों पर महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने इसी ढंग से अपना बचाव किया. ऐसी स्थिति में महिलाओं की सत्ता में सक्रिय भागीदारी के बारे में कौन सोच सकता है?
भारत का जिक्र किए बिना इस क्षेत्र की महिलाओं की सत्ता भागीदारी की बात पूरी नहीं हो सकती. अन्य पड़ोसी मुल्कों की तुलना में भारत में स्थिति तनिक बेहतर है, पर यह संतोषजनक नहीं.
जड़ों में मातृसत्तात्मक समाज के बीज होते हुए भी शासन में भागीदारी के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है. राजवंशों में अनेक रानियों और बेगमों के कुशल नेतृत्व के बावजूद अत्याचारों का लंबा सिलसिला है.

सोर्स- lokmatnews

Rani Sahu

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