सम्पादकीय

चुनाव आयोग को किंकर्तव्यविमूढ़ होने की इजाज़त संविधान नहीं देता है.

Gulabi
10 April 2021 9:53 AM GMT
चुनाव आयोग को किंकर्तव्यविमूढ़ होने की इजाज़त संविधान नहीं देता है.
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जब हाथी निकल गया और केवल पूंछ बाकी रह गई, तब चुनाव आयोग को कोरोना के फैलाव की चिंता सता रही है

कार्तिकेय शर्मा। जब हाथी निकल गया और केवल पूंछ बाकी रह गई, तब चुनाव आयोग को कोरोना के फैलाव की चिंता सता रही है. चुनाव आयोग दनादन अपने दिल्ली के दफ्तर से मेमो निकाल रहा है कि अगर नियमों का उल्लंघन हुआ तो वो सख्त कार्यवाही कर सकता है. लेकिन हिंदी में एक कहावत है और वो यह कि 'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत.' या ये कह दीजिये कि चुनाव आयोग सोते-सोते जाग रहा है.


प्रेस रिलीज़ में बकायदा लिखा जा रहा है की रैलियों को कैंसिल भी किया जा सकता है. लेकिन अभी तक एक भी ऐसी रैली नहीं हुई है जहां 2 गज की दूरी का ध्यान रखा गया है. एक ऐसी रैली नहीं हुई है जहां सभी लोग मास्क पहन कर आएं हों. खुद नेता लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं. हेमंत बिस्व सरमा तो खुल कर कह रहे हैं की असम में कोरोना नहीं है. ये भाषण क्या चुनाव आयोग ने नहीं सुना? बीजेपी और कांग्रेस के सभी कद्दावर नेता बिना मास्क के घूम रहे हैं. क्या चुनाव आयोग को यह सब नहीं दिख रहा है.


अपना चेहरा दिखाने के लिए नहीं लगा रहे मास्क
नेता खुलकर कह रहें हैं कि लोग उन्हें देखने आ रहे हैं इसलिए वो मास्क नहीं लगा सकते. मास्क तो छोड़िये, पत्रकारों को इंटरव्यू के दौरान खुद 2 गज की दूरी का उल्लंघन करना पड़ रहा है क्योंकि अगर ज़्यादा बात बनाई तो इंटरव्यू नहीं मिलेगा. इस पर विपक्ष भी चुप बैठा है. वो भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं. वैसे विपक्ष को गाली देना फैशन हो गया है, लेकिन यहां उनकी सही मायने में गलती है.

पिछले साल विपक्ष ने मोदी को लोकतंत्र के मुद्दे पर जम कर घेरा था. चीन और रूस की उपमाओं का इस्तेमाल जम के मोदी पर हुआ था की वो कोरोना की आड़ में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमज़ोर कर रहे हैं. अब लीजिये, सरकार भी चुप है और विपक्ष भी. सारा दम राज्य सरकारों का शादियों, कोचिंग इंस्टिट्यूट्स, धार्मिक स्थलों और स्कूल पर लगा दिया है. जबकि खुद हर राजनेता खुल कर कोविड नियमो का मजाक उड़ा रहा है.

समाज के जिम्मेदार लोगों को करना चाहिए नियमों का पालन
एक तो कद्दावर लोग खुद नियमों का पालन नही कर रहे हैं और इसके साथ वह अपने कार्यकर्ताओं को भी कोरोना नियमों को मानने की हिदायत नहीं दे रहे हैं. जब जिम्मेदार लोग कोरोना नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं तो आम जनता बात क्यों मानेगी? सच कहें तो भारत का चुनाव आयोग एक ऐसे बब्बर शेर की तरह है जिसके दांत केवल दिखाने के हैं. आज तक कुछ मामलों को छोड़ कर आयोग ठीक से किसी एक नेता पर नकेल नहीं कस पाया है.

ये दुर्भाग्य है कि चुनाव आयोग अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझ रहा. हर फैसले राजनीतिक दल पर छोड़े नहीं जा सकते हैं, संविधान बनाने वालों ने सत्ता के अधिकारों का बटवारा इसीलिये किया था. सोच ये थी कि कुछ संस्थाएं सत्ता का इस्तेमाल करेंगी और बाकी देखेंगी की वो इस्तेमाल ठीक तरीके से हो रहा है या नहीं.

क्या चुनाव आयोग किसी नेता पर नकेल कसेगा?
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का प्रचार पिछले 2 महीने से चालू था. पुडुचेरी, केरल, असम और तमिलनाडु में चुनाव खत्म हो चुका है. हालांकि अभी भी चुनाव पश्चिम बंगाल के कुछ इलाक़ों में बचा है. क्या आपको लगता है कि किसी बड़े नेता पर नकेल कसी जाएगी? बिलकुल नहीं. ज़्यादा से ज़्यादा नोटिस भेजा जायेगा वो भी अगर ज़रूरी समझा गया तो.

देश में कोरोना की दूसरी भयावह लहर चल रही है और राजीतिक पार्टियों का दिमाग केवल चुनाव पर है. भारत का ट्रम्प के अमेरिका जैसा हाल हो रहा है. कोरोना की लड़ाई में किन्तु परन्तु नहीं चलने वाला है. अगर लड़ना है तो नियम सब पर लागू करने होंगे चाहे वो सत्ताधारी हों या धर्म के ठेकेदार. क्योंकि इन सबके ऊपर देश और उसके आम नागरिक हैं. चुनाव आयोग को किंकर्तव्यविमूढ़ होने की इजाज़त संविधान नहीं देता है. चिंता है कोविड के नियमों के उल्लंघनों को लेकर, तो एक्शन लीजिये.


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