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- वेटलैंड माफिया के...
मैं जब-जब पौंग बांध क्षेत्र में गया हूं यहां नित नई कहानियों की परतें खुलती चली गई हैं। करीब 50 साल पहले विस्थापन के जिस दर्द को यहां के हजारों परिवारों ने झेला है, उसके बेहिसाब शेड्स हैं। ऐसी ही एक कहानी के किरदार ने मुझे विचलित किया जो गत एक दशक से देसी व विदेशी परिंदों, जीव-जंतुओं, जैव विविधता आदि को बचाए रखने की जंग से जूझ रहा है। मिलखी राम शर्मा 2012 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए थे। लेकिन इस शख्स ने पौंग डैम क्षेत्र में जिन ज्वलंत मुद्दों को कामयाब तरीके से चर्चा के केंद्र में लाने का प्रयास किया है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। व्यवस्था, प्रशासन, वन विभाग, राजनेताओं से टकराने और मर-मिटने के लिए आमादा मिलखी राम की ऊर्जा व जुनून देखते ही बनते हैं। आखिर क्या है इस नायक को कहानी? 1972 में हिमाचल सरकार ने वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन एक्ट बनाया था जिसके तहत 1983 में समूचे पौंग बांध क्षेत्र को वाइल्ड लाइफ बर्ड सेंक्चुरी घोषित किया गया था और 1994 में भारत सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का वेटलैंड घोषित किया था। तब से देश-विदेश के पर्यावरण प्रेमियों का ध्यान पौंग डैम क्षेत्र की ओर आकर्षित होने लगा था। यहां साइबेरिया से आने वाले व स्थानीय पक्षियों की 240 से अधिक प्रजातियां हैं। 27 प्रकार की मछलियां हंै, तो 450 प्रजातियां पेड़-पौधों की हैं। लेकिन गत 40 सालों में बायो डाइवर्सिटी को तहस-नहस करने की नामुराद कोशिशों की असंख्य कहानियां भी यहां मौजूद हैं। कोरोना काल में ही 2020 में करीब 3 हजार से ज्यादा विदेशी व देसी पक्षियों का शिकार किया गया। जब मामला मीडिया की सुर्खियां बना तो वाइल्ड लाइफ विभाग ने इसे कथित तौर पर बर्ड फ्लू से जोड़ दिया और शिकारियों को बचने का साफ रास्ता दे दिया।