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समाचार है कि स्कूल खुलने जा रहे हैं। इमारतों की सफाई हो रही है और शिक्षक भी अपना चश्मा साफ कर रहे हैं। छात्र बदलते हैं
जयप्रकाश चौकसे। समाचार है कि स्कूल खुलने जा रहे हैं। इमारतों की सफाई हो रही है और शिक्षक भी अपना चश्मा साफ कर रहे हैं। छात्र बदलते हैं, कभी-कभी पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन होता है। लेकिन एक ही विषय बार-बार पढ़ाने से कुछ ऊब होती है। गौरतलब है कि पश्चिम के शिक्षण क्षेत्र में सातवें वर्ष शिक्षक को वेतन सहित एक वर्ष की छुट्टी मिलती है, जिसे सेवंथ हॉलिडे कहते हैं ताकि शिक्षक तरोताजा हो सके।
इधर हमारे यहां सबक जिसको याद हुआ उसे छुट्टी भी नहीं मिलती। दरअसल यह इश्क की पाठशाला के लिए कहा जाता है। कुछ प्रचलित बातें खारिज कर दी जाती हैं, जैसे स्पेयर द रोड एंड स्पायल द चाइल्ड। मनोज बसु के उपन्यास 'रात के मेहमान' में चोरी सिखाने की पाठशाला का विवरण है। यहां समझाया जाता है कि सेंध मारने जाने के पूर्व पूरे शरीर पर तेल मलकर जाए ताकि पकड़ने वाले हाथों से फिसल सके।
सेंध में पहले पैर डालना चाहिए क्योंकि सिर पकड़ में आने पर छूटना कठिन होता है। गोया की चोरी के कार्य को कला की ऊंचाई दी जा सकती है। साहित्य क्षेत्र में भी चोरियां होती हैं। फिल्म के गीतों के मुखड़े और धुनें भी चुराई जाती हैं। भाई लोगों ने गालिब को भी नहीं बक्शा और कबीर तो खुला हुआ खजाना रहे हैं। रिचर्ड बर्टन और एलिजाबेथ टेलर अभिनीत फिल्म 'हू इज अफ्रेड ऑफ वर्जीनिया वूल्फ' शिक्षा के गिरते हुए स्तर पर व्यंग्य करती है।
श्री लाल शुक्ल के एक हास्य-व्यंग्य उपन्यास 'राग दरबारी' में एक कस्बे के स्कूल में शिक्षा के नाम पर की जा रही धांधली का विवरण है। इस संस्था के संचालक एक वैद्य हैं जो शक्तिवर्धक चूर्ण निर्माता हैं। उनके पुत्र के सिर में लगा तेल उसके पीसने में मिलकर अजीब सी गंध फैलाता है जो स्कूल की सड़ांध को सीधे टक्कर देता है। ज्ञातव्य है कि पूना फिल्म प्रशिक्षण परिसर में कभी शांताराम जी का प्रभात स्टूडियो होता था। परिसर में लगे वृक्ष को छात्र, विजडम ट्री कहते थे। खाकसार ने इस संस्था की पृष्ठभूमि पर 'पाखी' के लिए कथा लिखी थी, 'मत रहना अखियों के भरोसे।'
बिहार के एक शिक्षक के जीवन से प्रेरित फिल्म 'सुपर थर्टी' में पढ़ने वाले सभी बच्चे आई.आई.टी के लिए चुने जाते हैं। प्राइवेट ट्यूशन के रैकेट पर प्रकाश झा ने 'आरक्षण' फिल्म बनाई थी। ऋषिकपूर अभिनीत फिल्म 'दो दूनी चार' भी यादगार फिल्म रही। श्री लाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' का एक संवाद है कि शिक्षा प्रणाली सड़क पर बीमार श्वान की तरह है, जिसे सब लतियाते जरूर हैं परंतु कोई उपचार का प्रयास भी नहीं करता।
हमारे समाज में धन का इतना महत्व है कि सामाजिक प्रतिष्ठा उससे जोड़ दी गई है। लंबे अरसे तक शिक्षक का वेतन कम रहा है। इसलिए वे उपेक्षित किए गए। हमारे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन भी शिक्षक रहे हैं। उन्हें आदर देने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। आजकल इस दिन रस्म अदायगी होती है। कभी-कभी शिक्षकों को राष्ट्रपति पदक भी दिया जाता है।
इरफान खान अभिनीत फिल्म 'हिंदी मीडियम' की कहानी है कि स्कूल में गरीब बच्चों के लिए कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं। इसमें अपने बेटे को स्थान दिलाने के लिए नायक गरीबों की बस्ती में रहने जाता है। गौरतलब है कि संगमरमरी अट्टालिकाओं के नजदीक ही झोपड़ पट्टी विकसित होती है।
अट्टालिकाओं में रहने वालों को सेवक चाहिए और सेवक को उनके नजदीक रहना आवश्यक है, ताकि हुक्म देते ही वह हाजिर हो सके। इसीलिए बहुमंजिले की गोद में झोपड़पटि्टयां विकसित होती हैं। जी हुजूरी यहां से शुरू होकर उच्च सदनों तक पहुंचती है। यह सामंतवादी परंपरा भारतीय राजनीति में पल्लवित हो रही है।
शिक्षा का उद्देश्य तर्क सम्मत विचार वाले व्यक्तियों का निर्माण करना है। शिक्षा आदर्श जीवन मूल्य विकसित करने की जगह गुलाम मनोवृत्ति के लोग बना रही है। एक पाठशाला सांसदों और विधायकों के लिए भी रची जानी चाहिए।
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