सम्पादकीय

Teacher Devoted to Water: पानी के लिए समर्पित एक शिक्षक, पर्यावरण वाले मास्साहब के नाम से प्रसिद्ध

Neha Dani
10 July 2022 1:37 AM GMT
Teacher Devoted to Water: पानी के लिए समर्पित एक शिक्षक, पर्यावरण वाले मास्साहब के नाम से प्रसिद्ध
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इसका अच्छा परिणाम यह हुआ कि छात्रों को समाज के साथ जुड़ने की नई सीख मिली।

पर्यावरण वाले मास्साहब के नाम से प्रसिद्ध रसायन विज्ञान के प्रवक्ता मोहन चंद्र कांडपाल 33 वर्षों से पानी बोओ, पानी उगाओ! के काम में समर्पित हैं। इनका जन्म अल्मोड़ा जिले के कांडे गांव में हुआ। इनके पिता कानपुर के पंजाब नेशनल बैंक में काम करते थे, जिसके कारण उन्होंने एमएससी तक की पढ़ाई भी कानपुर से ही पूरी की। बचपन में ही वह स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन के विचारों के अनुयायी बन गए थे।


वर्ष 1984 की बात है। इंटर की परीक्षा देकर छुट्टियों के समय वह अपने गांव आए, तो उस समय वहां 'नशा नहीं, रोजगार दो', आंदोलन चल रहा था। वह इससे प्रभावित होकर आंदोलन में कूद पड़े थे। पिता के आग्रह पर पढ़ाई तो पूरी करनी थी। वर्ष 1990 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद रसायन विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में उन्हें आदर्श इंटर कॉलेज, सुरई खेत में नियुक्ति मिल गई थी, जहां से उन्हें अपने गांव के नजदीक रहकर सेवा करने का मौका मिल गया। विज्ञान के शिक्षक के रूप में उन्होंने अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को मेहनत पूर्वक पढ़ाया और उसके अच्छे परिणाम भी दिखे। लेकिन वह इतने तक ही सीमित नहीं रहे। अपने स्कूल के 40 विद्यार्थियों की टीम बनाकर वह छुट्टी के समय आसपास के गांवों में तालाबों की सफाई, वृक्षारोपण जैसे कार्य करने लगे। गांवों में जाने से छात्रों को विज्ञान की प्रयोगात्मक जानकारी भी हासिल हुई।


प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व विकास के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1993 में पर्यावरण शिक्षण व ग्रामोत्थान संस्था का गठन किया। इस संगठन को प्रारंभ में उत्तराखंड सेवा निधि का साथ मिला। प्रारंभ में जलस्रोतों के संरक्षण व जल के समान वितरण का काम उन्होंने अपने गांव से ही प्रारंभ किया। 90 के दशक में उनके गांव में तीन जलस्रोत थे, जहां पानी भरने के लिए महिलाओं की लंबी कतार लग जाती थी। अपनी बारी के इंतजार में खड़ी आखिरी महिलाओं को अक्सर बिना पानी लिए ही घर लौटना पड़ता था।

यह बुरी स्थिति देखकर शिक्षक मोहन चंद्र ने गांव में स्कूल के विद्यार्थियों के माता-पिता की बैठक बुलाकर प्रत्येक परिवार को बराबर पानी उपलब्ध कराने के लिए जल वितरण के नियम बनवाए, जिससे सबको पानी मिलने लगा। लेकिन जलस्रोत का पानी भी कम होने लगा था। उसे रिचार्ज करने के लिए वर्षा जल एकत्रीकरण हेतु उन्होंने छोटे-छोटे तालाब, जिसे स्थानीय स्तर पर खाव कहते हैं, बनवाए। यहां चारों ओर की नंगी धरती को ढकने के लिए एक हजार से अधिक चौड़ी पत्ती के पौधे रोपकर जंगल तैयार किया गया, जहां से गांववालों को निरंतर पानी की आपूर्ति हो रही है। इसका प्रबंधन गांव के ही लोग करते हैं।

शिक्षक के प्रयास की यह मुहिम अब द्वाराहाट एवं भिकियासैण ब्लॉक के 82 गांवों तक फैल चुकी है, जहां महिला संगठनों ने अपने गांवों में 8,000 से अधिक तालाब बना दिए हैं। उनमें वर्षा का पानी जमा रहता है, जिसके कारण गांव के जलस्रोत जिंदा हो गए और जंगल में चारा-पत्ती भी उग आई है।

वह ललित पांडे, कुमाऊं विश्वविद्यालय के पहले कुलपति डीडी पंत, प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री खड्ग सिंह वल्दिया और आरडी खुल्वे जैसी विभूतियों को अपना मार्गदर्शक मानते हैं। उन्होंने पहली बार अपने कॉलेज के पास वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें उनके ये प्रेरणा पुरुष उपस्थित थे।

उस आयोजन में शामिल हुए अतिथियों ने कहा था कि यदि वृक्षारोपण को सफल बनाना है, तो इनकी जड़ों को सींचने के लिए वर्षा जल एकत्रित करना होगा और पेड़ों को बचाने के लिए गांव की महिलाओं को आगे लाना होगा। मोहन चंद्र जी को एहसास हुआ कि उनके वृक्षारोपण कार्यक्रम में न तो महिलाएं थीं और न ही वृक्षारोपण स्थल पर पानी की कोई व्यवस्था थी। उसके बाद उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में जल संरक्षण को प्राथमिकता देना प्रारंभ किया। साथ ही, अपने छात्रों को साथ लेकर वह गांव- गांव में महिला संगठन का गठन करने लगे। इसका अच्छा परिणाम यह हुआ कि छात्रों को समाज के साथ जुड़ने की नई सीख मिली।

अब तक उनके पढ़ाए हुए डेढ़ हजार से अधिक छात्र-छात्राओं में से अधिकांश तालाब बनाने में मदद करते हैं। वह अपने पूर्वजों के नाम से तालाब बनवा रहे हैं। पर्यावरण के मास्साहब के रूप में चर्चित इस शिक्षक ने आधा दर्जन के लगभग लोगों की एक ऐसी मित्र मंडली भी बना रखी है, जो प्रतिवर्ष जल संरक्षण जैसे पवित्र कार्य के नाम पर आर्थिक मदद भी करते रहते हैं।

इस क्षेत्र में सुरई खेत के निकट से रिसकन नदी बहती है, जिसे ऋषिगण के नाम से भी जाना जाता है। इसका उद्गम स्थान नागार्जुन गांव के एक मंदिर के पास स्थित एक पेड़ की जड़ है। रिसकन नदी आगे 40 किलोमीटर चलकर गगास नदी में मिलती है। यह नदी सूखने के कगार पर थी, जिसमें जल वापसी के लिए 'पानी बोओ, पानी उगाओ' अभियान के तहत 800 तालाब बनाए गए हैं, और चारों ओर सघन रूप से वृक्षारोपण करने का प्रयास चल रहा है। आसपास के 27 गांवों के लोग अपनी इस नदी को बचाने के लिए खासे उत्साहित हैं।

सोर्स: अमर उजाला

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