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अफगानिस्तान से मिल रही खबरों का संकेत यही है कि तालिबान का ना तो नजरिया बदला है,
अफगानिस्तान से मिल रही खबरों का संकेत यही है कि तालिबान का ना तो नजरिया बदला है, और ना ही उसके काम करने का तरीका। ये खबरें कुछ हलकों में बने इस भ्रम को तोड़ने वाली हैं कि पिछले 20 साल के अनुभव और नेतृत्व की आधुनिक तकनीक का कुशलता से इस्तेमाल करने वाली नई पीढ़ी के उदय के कारण अब तालिबान बदल गया है। लेकिन हाल की मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक देश के उत्तरी और उत्तर-पूर्वी इलाकों में तालिबान का कहर अभी से टूटने लगा है, जबकि अभी देश के लगभग एक तिहाई हिस्से पर ही उसका कब्जा है। इन खबरों के मुताबिक कई जगहों पर तालिबान ने हर परिवार को निर्देश दिया है कि वे अपने घर की एक युवती का निकाह तालिबान लड़ाकुओं से कर दें। साथ ही उसने हुक्म दिया है कि महिलाएं बिना किसी पुरुष को साथ लिए घर से बाहर ना जाएं, पुरुष दाढ़ी बढ़ाएं और मस्जिदों में जाकर ही नमाज पढ़ें।
अफगानिस्तान सरकार की एक एजेंसी के मुताबिक अपने कब्जे वाले इलाकों में तालिबान ने सार्वजनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को नष्ट कर दिया है। नतीजतन, सवा करोड़ लोगों को अब बिना सार्वजनिक सेवाओं के जीना पड़ रहा है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान के कुल 364 जिलों में से कम से एक तिहाई पर अब तक तालिबान कब्जा जमा चुका है। वैसे तालिबान का दावा है कि अब देश के 80 फीसदी हिस्से उसके कब्जे में हैं। बहरहाल, कब्जा चाहे जितने इलाके पर हो, लेकिन यह साफ है कि तालिबान का तौर तरीका नहीं बदला है। अमीरात की पुरानी व्यवस्था में उसका यकीन बना हुआ है। तो फिर बदला क्या है? यही कहा जा सकता है कि कुछ भी नहीं। तालिबान का लोकतंत्र में भरोसा पहले भी नही था, अभी भी नहीं है। वह उस दिन के इंतजार में है, जब मौजूदा अफगानिस्तान सरकार गिर जाएगी और वह देश पर कब्जा कर फिर से अपना कट्टर इस्लामी सिस्टम लागू कर सकेगा। इसीलिए अफगानिस्तान सरकार से चल रही उसकी वार्ता में युद्धविराम या सत्ता साझा करने के मसलों पर समझौता करने में उसकी कोई रुचि नहीं है। ये बात ध्यान में रखने की है कि तालिबान के पिछले शासन के समय अफगानिस्तान में आतंकवादियों को पनाह दी गई थी। उन आतंकवादियों ने अमेरिका सहित दुनिया में कई जगहों पर हमले किए। तो क्या फिर से अफगानिस्तान आतंकवादियों का अड्डा बनेगा?
Triveni
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