सम्पादकीय

टूटती उम्मीदों की कथा

Triveni
11 Jun 2021 5:05 AM GMT
टूटती उम्मीदों की कथा
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भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने डगमग अर्थव्यवस्था को एक तरह से अंधकार में धकेल दिया है।

भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने डगमग अर्थव्यवस्था को एक तरह से अंधकार में धकेल दिया है। बैंको से निजी कर्ज लेने वालों, क्रेडिट कार्ड से कर्ज लेने वालों और प्राइवेट कंपनियों से गोल्ड लोन लेने वालों के डिफॉल्ट में पिछले महीने हुई बढ़ोतरी बढ़ती जा रही तबाही का संकेत देती है। रोजमर्रा के उपयोग की चीजें का बाजार जिस तरह अप्रैल और मई में ढहा है, उसका भी यही संकेत है कि भारत दुर्दशा अकथनीय रूप लेती जा रही है। दरअसल, ऐसी कहानी दुनिया भर में देखने को मिल रही है। इसलिए फिलहाल ऐसी भी कोई उम्मीद नहीं है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की मजबूती भारत को संभाल लेगी। मसलन, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ताजा रिपोर्ट गौरतलब है। उसमे बताया गया है कि वैश्विक संकट के कारण 2022 तक बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी। गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ विषमता भी बढ़ेगी। आईएलओ का कहना है कि रोजगार के अवसरों में होने वाली बढ़ोतरी साल 2023 तक इस नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी। ये सूरत तब की है, जब अभी पता नहीं है कि कोरोना महामारी के अभी आगे और कितने दौर आएंगे। हर दौर नई समस्याएं पैदा करेगी, यह साफ है। फिलहाल, सूरत यह है कि दुनिया में कोरोना महामारी का अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे दो अरब श्रमिकों पर विनाशकारी असर हुआ है। 2019 के मुकाबले अतिरिक्त 10 करोड़ 80 लाख श्रमिक अब 'गरीब' या 'बेहद गरीब' की श्रेणी में पहुंच चुके हैं।

आईएलओ का अनुमान है कि अगले साल तक वैश्विक बेरोजगारी बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी। 2019 में यह संख्या 18 करोड़ 70 लाख थी। साफ है कि कोविड-19 महामारी से श्रम बाजार में पैदा संकट खत्म नहीं हुआ है। नौकरियों के अवसर में बड़े पैमाने पर ह्रास का महिलाओं, युवाओं और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। महिलाओं के लिए 2020 में रोजगार के अवसरों में पांच फीसदी की गिरावट आई, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा करीब चार फीसदी रहा। आईएलओ ने कहा है कि गरीबी उन्मूलन की दिशा में पांच साल की प्रगति बेकार चली गई है। उसने अनुमान लगाया है कि अगर दुनिया में महामारी नहीं आती, तो करीब तीन करोड़ नई नौकरी पैदा हो सकती थी। लेकिन महामारी के कारण कई छोटे व्यवसाय दिवालिया हो गए हैं या गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।


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