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गुजरात के गोधरा सांप्रदायिक दंगों के संदर्भ में, कई सालों तक, उन्हें ‘खूनी खलनायक’ करार दिया जाता रहा
सोर्स- divyahimachal
गुजरात के गोधरा सांप्रदायिक दंगों के संदर्भ में, कई सालों तक, उन्हें 'खूनी खलनायक' करार दिया जाता रहा। उन्हें कातिल, हत्यारा और मौत का सौदागर भी कहा गया। उनके खिलाफ हरसंभव आपराधिक साजि़श रची गई। दुष्प्रचार इतना व्यापक था कि यूरोपीय और पश्चिमी देशों ने उन्हें वीजा देने से इंकार कर दिया। आज ये ही देश पलक-पांवड़े बिछा कर उनका स्वागत करते हैं और भारत का सहयोग चाहते हैं। आज वही शख्स भारत का प्रधानमंत्री है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नफरत का भाव और दुष्प्रचार आज भी समाप्त नहीं हुए हैं। प्रधानमंत्री के विदेशी प्रवास से पहले उन देशों के अख़बारों और पत्रिकाओं में प्रायोजित ख़बरें पहले भी छपवाई जाती थीं और आज भी यह सिलसिला जारी है। बड़े-बड़े आलेख भी लिखे जाते हैं और राहुल गांधी सरीखे विपक्षी नेता विदेश की ज़मीं पर भारत और प्रधानमंत्री मोदी को कोसते हैं। दरअसल गोधरा कांड के बाद मुख्यमंत्री मोदी की सार्वजनिक छवि और देश की बदनामी के मद्देनजर खूब साजि़शें रची गईं। फर्जी दस्तावेजों, झूठे बयानों और साक्ष्यों, फर्जी दस्तख़त और स्टिंग ऑपरेशन तक का सहारा लिया गया। उस 'अग्नि-परीक्षा' से मोदी कुंदन की तरह बाहर निकले हैं। लोकतंत्र और संविधान की गरिमा स्थापित हुई है। संवैधानिक पद पर होने के बावजूद मोदी ने विशेष जांच दल (एसआईटी) और आयोगों के सवालों के घंटों तक हाजिर रहते हुए जवाब दिए थे। भाजपा ने कोई हंगामा नहीं किया। एक बार फिर सर्वोच्च अदालत के जरिए न्यायपालिका में आस्था और विश्वास मजबूत हुए हैं। यह न्याय का अंतिम चरण था। देश गोधरा दंगों की विभीषिका जानता है। किसी ने तो वह मंजर नंगी आंखों से देखा होगा! इंसान इंसान के प्रति इतना 'जानवर' हो सकता है, कमोबेश हम तो सोच भी नहीं सकते। फरवरी, 2002 के अंतिम दिनों में साबरमती एक्सप्रेस टे्रन में 59 हिंदू कारसेवकों को जि़ंदा जला दिया गया।
इससे ज्यादा बर्बरता और राक्षसी भाव क्या होगा? उसके खिलाफ आक्रोश और रोष के कारण दंगे भड़के। अंतिम फैसला देश के सामने है कि दंगे पूर्व नियोजित नहीं, बल्कि स्वतः स्फूर्त, स्वप्रेरित थे। अंततः सेना ने ही दंगों को काबू किया। मार्च, 2002 के पहले तीन दिन करीब 30 लाख हिंदुओं की भीड़ सड़कों पर थी। उन्हें काबू कर पाना पुलिस के वश में नहीं था। सेना त्वरित फैसला लेकर बुलाई गई। उस दौर में 'सुपर कॉप' केपीएस गिल भी गुजरात सरकार के साथ थे। बहरहाल गोधरा कांड पर आयोग, एसआईटी और अदालत सब कुछ खुलासा कर चुके हैं। हम उन्हें दोहराना नहीं चाहते, लेकिन सुप्रीम अदालत ने अब प्रधानमंत्री मोदी और 63 अन्य बेगुनाहों को 'क्लीन चिट' देकर सच्चाई पर मुहर लगाई है। एसआईटी के निष्कर्षों को सही पाया है और जकिया जा़फरी जैसी याचिका खारिज कर दी है। चूंकि दंगों के दौरान और उनके बाद 2014 तक मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, लिहाजा उन्हें आरोपों और आपराधिक साजि़शों की परिधि में रखा गया। असंख्य किताबें लिखी गईं। लेखकों, विचारकों और पत्रकारों की एक जमात पैदा हो गई, जिसने मोदी को 'अपराधी' घोषित कराने की हरसंभव रणनीति खेली। उसी दौरान सामाजिक कार्यकर्ता और एक एनजीओ और ट्रस्ट की संचालिका तीस्ता सीतलवाड़ की सवालिया गतिविधियां सामने आईं। वह ही जकिया जा़फरी का कानूनी केस लड़वा रही थी और अदालत में कपिल सिब्बल जैसे वकील पैरवी कर रहे थे। कांग्रेस और वामदलों ने यूपीए सरकार के दौरान मोदी का राजनीतिक अस्तित्व मिटाने को तीस्ता का जमकर दुरुपयोग किया। उसके एनजीओ और ट्रस्ट को करोड़ों रुपए के अनुदान दिए गए। तीस्ता हर ऐसा दुष्प्रचार करती रही मानो मोदी ही हिंदू-मुसलमान के बीच सांप्रदायिक दंगों का साजि़शकार हो! सर्वोच्च अदालत के ताज़ा फैसले में कई साजि़शें, झूठ, जालसाजी और फर्जी कवायदें बेनकाब हुई हैं। अलबत्ता यह सोच रखने वाले भी कम नहीं हैं कि मोदी मुस्लिम, इस्लाम के कट्टर विरोधी हैं। तीस्ता के कारनामों पर हम कोई निर्णायक निष्कर्ष नहीं देंगे। सुप्रीम अदालत ने ही सभी पक्षों को सुनते हुए और जांच-साक्ष्यों को खंगालते हुए यह फैसला दिया है कि गुजरात के पुलिस महानिदेशक रहे आरबी श्रीकुमार, तीस्ता सीतलवाड़, राजनीतिक तत्त्वों और झूठ प्रचारित करने वालों के खिलाफ ज्यादा जांच की जरूरत है, लिहाजा गुजरात पुलिस ने 10 पन्नों की प्राथमिकी दर्ज की है। पुलिस अधिकारी और तीस्ता को गिरफ्तार किया गया है। अब गोधरा प्रकरण से जुड़ी कुछ विशेष जांच को नए सिरे से आगे बढ़ाया जाएगा। बहरहाल 20 साल के इस लंबे कालखंड के दौरान मोदी ने एक भी प्रतिक्रिया सार्वजनिक नहीं की है। वह दर्द झेलते रहे और आरोपों, गालियों का विषपान करते रहे। आज सच्चाई सामने है।
Rani Sahu
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