सम्पादकीय

सुप्रीम कोर्ट का उचित निर्णय

Gulabi
1 March 2021 8:00 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट का उचित निर्णय
x
सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही ये निर्णय दिया है कि महिला के लिए उसके मायके के लोग अजनबी नहीं हैं

सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही ये निर्णय दिया है कि महिला के लिए उसके मायके के लोग अजनबी नहीं हैं। वे महिला के परिवार के सदस्य हैं, इसलिए महिला की संपत्ति के उत्तराधिकारी वे माने जाएंगे। इस तरह हिंदू विधवाओं के अधिकार को कोर्ट ने विस्तृत किया है। संपत्ति उत्तराधिकार कानून की इसे उचित व्याख्या माना जाएगा। पिछले हफ्ते कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने इस कानून की धारा 15 (1) (डी) की नई व्याख्या की। उन्होंने व्यवस्था दी कि महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को महिला की संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया जा सकता है। महिला के पिता के उत्तराधिकारी महिला के रिश्तेदार हैं। उन्हें अजनबी नहीं माना जा सकता। वे भी उसके ही परिवार का हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कानून की ये माकूल व्याख्या की कि कानून में आए शब्द परिवार का संकीर्ण मतलब नहीं निकाला जा सकता।


यानी परिवार का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि सिर्फ महिला के ससुराल से संबंधित व्यक्ति ही इसका हिस्सा हैं और वो ही उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी हो सकते हैँ। कोर्ट ने कहा कि परिवार को विस्तृत अर्थ के साथ देखना होगा। इसलिए हिंदू महिला के रिश्तेदार भी शामिल होंगे। गौरतलब है कि धारा 15 में कहा गया है कि अगर किसी महिला की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हुई, तो उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार धारा 16 के मुताबिक तय होगा। इस धारा के मुताबिक पहला हक महिला के बेटे और बेटी का होगा। इसके बाद पति के रिश्तेदारों का हक होगा। इसके बाद महिला के माता-पिता का अधिकार होगा। इसके बाद महिला के पिता के रिश्तेदारों का हक होगा और आखिरी में महिला की मां के रिश्तेदारों का होगा। लेकिन एक विधवा ने इसे चुनौती दी थी। विधवा महिला को पति की संपत्ति मिली थी। महिला का कोई बच्चा नहीं था। उसने अपनी संपत्ति अपने भाई के बेटों के नाम कर दी। तब महिला के पति के भाई के बेटों ने इसे हाई कोर्ट में इसको चुनौती दे दी। लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी चुनौती को खारिज कर दिया, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। महिला के पति के भाई के बेटों ने दलील दी थी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती है। मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी ये दलील नहीं मंजूर की। इस तरह उसने महिलाओं के हक में कानून की स्वागतयोग्य व्याख्या की।


Next Story