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By: divyahimachal
भविष्य की सबसे बड़ी परख में चुनावी सिंहद्वार की भूमिका का जबरदस्त प्रदर्शन, वर्तमान हिमाचल को आशा, आश्वासन व भाषण की घुट्टी पिला रहा है। सक्रियता का आलम प्रदेश की जमीन को तर करने की अदा में ऐसी कसरतें कर रहा है कि बंदा हर रोज खिड़कियों से फैलती धूप को छू सकता है। हृदय स्पर्शी घोषणाएं, मंत्रिमंडल के निर्णय और कदमताल करते प्रगति के नक्शों पर नाचती मुद्राएं, अपने आप में चुनाव की कठिन परीक्षा में सौहार्द की तह जमा जाती हैं। कई अटके-लटके मसले चुटकियों में हल हैं, तो भविष्य के पथ पर दहाड़ती इच्छाशक्ति का चेहरा पहनकर निकले हिमाचल को देखकर कौन नहीं कहेगा, 'गजब हो गया'। इसलिए हम 75 साल के अमृत महोत्सव में इतना अमृत तो पीना चाहेंगे कि हर विधानसभा में समारोह केवल सूचना पट्ट की हैसियत बन कर ऐसा सब कुछ दे दे, जो हमारी 'विश लिस्ट' की अधूरी कल्पनाओं में भी बमुश्किल शामिल होता हो। पालमपुर में एडिशनल सेशन कोर्ट का दरवाजा खोलकर सत्ता का स्पर्श मोम से मुलायम क्यों न हो या हाटी समुदाय को अनुसूचित जाति में प्रवेश क्यों न सरकार के पक्ष में तोरण द्वार लगाए। हमारा मानना है कि सत्ता के आखिरी पन्नों में भाजपा कुछ ऐसे रंग चुन रही है जो चुनावी इंद्रधनुष की आभा का एक नया आकाश खोल सकते हैं।
जाहिर है एक बड़े कार्यक्रम के तहत डबल इंजन सरकार के मायनों में हिमाचल की चुनावी बरसात शुरू हो चुकी है और यहां जनता के 'मन' को भिगोने के लिए एक बड़ा परिदृश्य पैदा किया जा रहा है। ऐसे में 'मिशन रिपीट' कितने फलांग दूर है, यह अनुमान लगाने के लिए हिमाचल का सत्ता पक्ष चौबीस घंटे अलग-अलग मंच से संबोधित कर रहा है। कहीं बल्क ड्रग पार्क, कहीं शिमला शहरी रोप-वे नेटवर्क, कहीं रज्जु मार्गों की पर्वत माला, तो कहीं बिलासपुर-हमीरपुर को जोड़ती ट्रेन की सुर्खियों को साधुवाद की तलाश है। 'चुनावी रंगत आने में और कितना समय लगेगा, मगर जनता के दिलों की दीवारों पर कोई न कोई इश्तिहार चस्पां है'। यहां जिक्र तमाम भर्तियों और भर्तियों के पैमानों का भी होगा, क्योंकि हर घर में बेरोजगारी का कोई न कोई प्रमाण मौजूद है और यही पैमाने कर्मचारी रुह में फंसे अधिकारों और विसंगतियों को अलहदा-अलहदा संदर्भों में देख भी रहे हैं। गुरुवार की मंत्रिमंडल बैठक की तासीर में एसएमसी नीति फिर बिलोल दी गई और जाहिर तौर इस मक्खन को चेहरे पर लगाकर शिक्षक वर्ग अपने नूर में चमक उठा है। एसएमसी बनना अगर किसी सरकार के प्रति बेरोजगारों की कृतज्ञता थी, तो उसकी हिफाजत में जयराम सरकार ने अति सुरक्षा का वादा किया है। यानी कि अब एसएमसी एक स्थायी कॉडर की ओर बढ़ते हुए किसी नियमित भर्ती से पदच्युत नहीं होगा और चोखा रंग लाने के लिए छुट्टियों का तोहफा भी हाजिर हो गया। चुनाव में हर बार अंबेडकर को जीवित करती घोषणा इस बार भी जिलों के एक कालेज में अंबेडकर पुस्तकालय खुलवा कर पुण्य कार्य करेगी। बहरहाल हम यह नहीं सुन सकते कि कानून व्यवस्था कितनी सुदृढ़ या शिक्षा में कितनी गुणवत्ता आएगी, अलबत्ता नए स्कूलों की कतार और पुलिस केंद्रों की भरमार दर्ज हो रही है।
सिविल जज के कार्यालयों से न्याय करती सरकार का जुनून काबिले तारीफ है, तो विभागीय कार्यालयों से विभिन्न विधानसभाओं का शृंगार देखते ही बनता है। सरकार का पदचाप सुन रहा चुनाव क्यों न मुस्कराए या 'पक्षीय' हो जाए, क्योंकि हिमाचल इस वक्त केवल लाभार्थी ढूंढ रहा है। आम नागरिक के जीवन में लाभार्थी होने की अनिवार्यता जब घर कर जाती है, तो उसकी जरूरतें एक मेहरबान सरकार चाहती है। सुर्खियों से चुनाव को प्रभावित करने की दौड़ में सरकार जितनी उदार व मेहरबान दिखेगी, फिलवक्त वही इसकी सफलता है। यह भले सपनों के रज्जु मार्ग हों या शिमला का नया ट्रैफिक समाधान हो, हम तसल्ली कर सकते हैं कि हमारे घर की खिड़कियों में भी अंतत: आशा की धूप तो प्रवेश कर ही रही है। ऐसे में चुनाव अधिसूचना से पूर्व सारे बंद दरवाजे और खिड़कियां खोलकर रखें, ठीक उसी तरह जैसे दिवाली में लक्ष्मी का इंतजार करते हैं-चुनावी त्योहार में घोषणाओं का इकबाल मंजूर होगा।
Rani Sahu
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