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- अस्पृश्य समाज के...
संसार के महापुरुषों के चरित्रों का अध्ययन करते समय यह बात हमारे ध्यान में अवश्य आती है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, यह महानता उसे अपने जीवन में त्याग और परिश्रम की भारी पूंजी लगाकर प्राप्त करनी पड़ती है। रूस में स्टालिन और अमेरिका में अब्राहिम लिंकन की भांति भारत में भी बाबा साहब अंबेडकर ने साधारण परिवार में जन्म लेकर अपने ज्ञान बल से सुधारवादी सोच को इस तरह से विकसित किया कि देशवासियों के लिए किया गया उनका उपकार कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। सूबेदार रामजी एवं भीमाबाई के घर 14 अप्रैल 1891 को पुत्र रत्न के रूप में भीम ने जन्म लिया जिसे परिवार वाले भीवा कहकर पुकारते थे। भीवा अपनी कर्म निष्ठा एवं लग्न से भीमराव अंबेडकर बनकर भारतीय पीडि़त समाज एवं सभी वर्गों की महिलाओं के लिए कैसी-कैसी मुसीबतों को सहकर मसीहा बनकर सामने आए, उस समय के समाज को पता ही नहीं चला। अपने अध्ययन काल के समय जब अन्य विद्यार्थी सिनेमा, शराब और सिगरेट पर पैसा बहाते थे, उन दिनों भीमराव पुस्तकें खरीदने के सिवा अन्य कोई खर्चा नहीं करते थे। शराब और सिगरेट को उन्होंने कभी स्पर्श तक नहीं किया। लंदन में अध्ययन के दौरान बाबा साहब को बाहरी दुनिया से कोई सरोकार नहीं था। उन दिनों उनके कमरे में मुंबई निवासी अस्डोनाकर रहा करते थे। वह जब भी उन्हें सोने के लिए आग्रह करते तो बाबा साहब का जवाब होता, 'मेरे पास न खाने के लिए पैसा है, न सोने के लिए समय। मुझे तो बस अपनी पढ़ाई जल्द से खत्म करनी है।