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आज भारत में सभी दलों की अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग है। जब देश स्वतंत्र हुआ था, तब कुछ और बात थी और धीरे-धीरे कई विद्रूपताओं ने सिर उठा लिया। वास्तव में व्यक्ति स्वतंत्रता के मायने स्वच्छंदता मान बैठा है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस को इसकी आशंका पहले से ही थी। उनका मानना था कि देश को स्वतंत्र होने पर भी एकदम पूरी स्वतंत्रता हानिप्रद हो सकती है। देश ने स्वतंत्रता से पूर्व विभाजन के विषैले दंश को झेला। आज कुछ तत्त्वों के कारण देश को जोडऩे पर कम ध्यान है, जबकि देश विरोधी शक्तियां देश को तोडऩे में लगी हुई हैं। पृथकतावाद, आतंकवाद, माफिया राज और भ्रष्टाचार का इस कद्र बोलबाला है जिससे लगता है कि कुछ जयचंद देश को बर्बाद करके ही रहेंगे। आज देश को सशक्त सरकार की जरूरत है।
-किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर
By: divyahimachal
Rani Sahu
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