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साइबर सुरक्षा जटिल मसला है, जिसका विविध क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव होता है. इसीलिए, बहुआयामी, बहुस्तरीय पहल और प्रतिक्रियाओं की जरूरत होती है. भौगोलिक दायरे से परे इस समस्या ने सरकारों के सामने बेहिसाब चुनौतियां पेश की हैं. मालवेयर, फिशिंग हमले, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर लक्षित हमला, डेटा चोरी, ऑनलाइन धोखाधड़ी और चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे वर्चुअल दुनिया के अपराध लगातार बढ़ रहे हैं.
भारत में करीब 80 करोड़ लोगों की ऑनलाइन मौजूदगी है, 2025 तक यह तादाद 40 करोड़ और बढ़ जायेगी. इससे साइबर निगरानी और सुरक्षा की अहमियत को समझा जा सकता है. गृह मंत्रालय द्वारा 'साइबर सुरक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा' विषय पर आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस में गृहमंत्री ने इन दोनों के बीच की कड़ी को रेखांकित किया. कुछ देशों ने बकायदा साइबर आर्मी तैयार कर ली है.
गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा (सीआईएस) अनुभाग के तहत साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (आई4सी) की व्यवस्था बनायी गयी है. इसमें राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, राष्ट्रीय साइबर खतरा विश्लेषण इकाई, राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला, संयुक्त साइबर अपराध कोऑर्डिनेशन टीम, राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र, राष्ट्रीय साइबर अपराध शोध एवं नवाचार केंद्र तथा राष्ट्रीय साइबर अपराध इको-सिस्टम और प्रबंधन इकाई जैसे घटक हैं.
चूंकि, डेटा और सूचना का व्यापक आर्थिक महत्व है और यह बढ़ भी रहा है. ऐसे में इसकी विविध स्तरों पर सुरक्षा को लेकर तैयारी भी आवश्यक है. साल 2012 में साइबर अपराध के 3377 मामले सामने आये थे, 2020 में यह आंकड़ा 50 हजार को पार कर गया. राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल की शुरुआत के तीन वर्षों में दो लाख सोशल मीडिया अपराध शिकायतों के साथ साइबर अपराध के 11 लाख मामले सामने आये हैं.
बीते आठ वर्षों में इंटरनेट कनेक्शन 231 प्रतिशत बढ़ा है, तो प्रति जीबी डेटा लागत भी 96 प्रतिशत तक कम हुई है. इस बढ़त के बीच साइबर धोखाधड़ी और अपराधों का बढ़ना भी स्वाभाविक है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में साइबर अपराधों से दुनियाभर में छह ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. निजी फर्म, सरकारी सेवाएं, विशेषकर महत्वपूर्ण उपयोगिताओं वाली सेवाओं पर साइबर हमले और सेंधमारी का जोखिम बढ़ रहा है.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
सामान्य लोगों में साइबर सुरक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है. डिजिटल प्लेटफाॅर्मों के ऐसे अपराधों की चपेट में आने से उपभोक्ताओं का विश्वास टूटता है. साथ ही कैशलेस अर्थव्यवस्था बनने की राह में भी यह अवरोधक है. दूसरी ओर, ऑनलाइन अतिवाद की भी चुनौती है. क्योंकि, कट्टरपंथी और आतंकी भौगोलिक सीमाओं से बाहर भी अपनी हरकतों को अंजाम देने में सक्षम हो जाते हैं.
महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को पुख्ता करने हेतु सुरक्षा सूचकांक जैसा तंत्र बनाना होगा, ताकि सुरक्षा तैयारियों का सही और सटीक आकलन हो सके. इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखने की जरूरत है, तभी व्यापक स्तर पर लोगों की सुरक्षा और निजता की रक्षा हो सकेगी.