सम्पादकीय

राष्ट्रपति चुनाव के किस्से (पार्ट-5) : कांग्रेस की उदारता से सन 1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध चुने गए थे राष्ट्रपति

Gulabi Jagat
20 May 2022 1:12 PM GMT
राष्ट्रपति चुनाव के किस्से (पार्ट-5) : कांग्रेस की उदारता से सन 1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध चुने गए थे राष्ट्रपति
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प्रतिपक्षी दलों खासकर कांग्रेस की उदारता के कारण सन 1977 में 64 वर्षीय नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए थे
सुरेंद्र किशोर |
प्रतिपक्षी दलों खासकर कांग्रेस (Congress) की उदारता के कारण सन 1977 में 64 वर्षीय नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiva Reddy) निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए थे. पहली बार प्रतिपक्ष ने इस पद के लिए कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. यहां तक कि निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ने को उत्सुक कुछ उम्मीदवार भी न्यूनतम दस प्रस्तावक भी नहीं जुटा पाए थे. कांग्रेस के सांसद प्यारेलाल कुरील चाहते थे कि वे चुनाव लड़ें. उन्होंने अपनी पार्टी से भी आग्रह किया था कि कांग्रेस को राष्ट्रपति पद का चुनाव (Presidential Election) लड़ना चाहिए. पर, वे भी निर्दलीय तौर पर चाहते हुए भी चुनाव में उम्मीदवार बनने में सफल न हो सके. दरअसल तब माहौल ही वैसा था. खुद इंदिरा गांधी रायबरेली और उनके पुत्र संजय गांधी अमेठी से लोक सभा चुनाव हार गए थे. पूरे हिन्दी भारत में कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर ही जीत पाई थी. नतीजतन कांग्रेस और इंदिरा गांधी हिम्मत जवाब दे चुकी थी.
एक तो सन 1969 में नीलम संजीव रेड्डी को उनकी अपनी ही पार्टी यानी कांग्रेस के इंदिरा गांधी गुट ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में हरवा दिया था. तब वे राष्ट्रपति पद के कांग्रेस की ओर से अधिकृत उम्मीदवार थे. किंतु प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने वी. वी. गिरि को उम्मीदवार बनवा दिया. प्रधानमंत्री ने सांसदों-विधायकों से अपील की कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज के आधार पर वोट करें. लोहियावादी समजवादी सांसद और विधायकगण भी इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ के झांसे में आ गए थे. उन्होंने भी गिरि को अपने वोट दे दिए. इंदिरा गांधी का वह प्रयास सफल रहा. उसके बाद कांग्रेस पार्टी में महा विभाजन हो गया. इस कारण 1977 में अनेक लोगों में रेड्डी के प्रति सहानुभूति थी.
नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने थे
दूसरी बात यह थी आपातकाल की पृष्ठभूमि में उस साल हुए लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी ने भारी जीत हासिल की थी. कांग्रेस संसदीय दल के नेता यशवंत राव चव्हाण ने 9 जुलाई 1977 को ही तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई को यह सूचित कर दिया था कि हमारा दल लोकसभा अध्यक्ष रेड्डी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का समर्थन करेगा. सी.पी.आई., अन्ना द्रमुक, क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक, माकपा और अकाली दल ने भी रेड्डी का समर्थन किया.
इस तरह नीलम संजीव रेड्डी 25 जुलाई 1977 को निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिए गए. वे 25 जुलाई 1982 तक उस पद पर रहे. उनके कार्यकाल में मोरारजी देसाई, चैधरी चरण सिंह और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहीं. रेड्डी के निर्विरोध चुने जाने के कई अर्थ लगाए गए. कुछ विश्लेषकों ने कहा कि कांग्रेस की दिशाहीनता के कारण ऐसा हुआ. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के कारण उसमें दिशाहीनता आ गई थी. आजादी के बाद पहली बार 1977 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेस हटा दी गई थी. उससे पहले चार चुनाव जीत कर कांग्रेस केंद्र की सत्ता पा चुकी थी. सन 1977 की हार उसके लिए एक झटके की तरह था. दूसरी ओर, कुछ अन्य राजनीतिक प्रेक्षकों ने कहा कि निर्विरोध चुनाव इस देश की राजनीति में आए हुए विराट परिवर्तन की अभिव्यक्ति है.
नीलम संजीव रेड्डी आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के एक लघु किसान परिवार में जन्मे थे. देश की राजनीति में शामिल होने के बाद वे लगातार आगे बढ़ते ही चले गए. सन 1956 में नव गठित आंध्र प्रदेश के नीलम संजीव रेड्डी प्रथम मुख्य मंत्री बने थे. बाद में वे केद्र में भी मंत्री बने. रेड्डी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे. लोकसभा के स्पीकर भी थे. सर्वसम्मति से चुनाव हुए पर संतोष व्यक्त करते हुए नव निर्वाचित राष्ट्रपति माननीय रेड्डी ने कहा कि "यह खुशी की बात है कि राष्ट्रपति पद को राजनैतिक मतभेदों से ऊपर रखा गया है. इससे मेरे लिए विभिन्न दलों के बीच समानता लाने और उनके साथ समता का व्यवहार करने में आसानी होगी." आर्थिक मामलों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि "महंगाई की समस्या को हल किया जाना चाहिए. देश के लोगों से मेरी अपील है कि वे विघटनात्मक राजनीति को छोड़कर रचनात्मक कार्यों में लगें."
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)
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