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अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘मेन आर फ्रॉम मार्स, वीमेन आर फ्रॉम वीनस’ (पुरुष मंगल ग्रह से हैं और महिलाएं शुक्र ग्रह से) में लेखक जॉन ग्रे कहते हैं कि जब कोई महिला चिंताग्रस्त होती है तो वह अपनी चिंता उन लोगों के सामने रखती है जिन पर उसे विश्वास है, या जो उसकी बात सुनने को तैयार हैं। इसके विपरीत जब कोई पुरुष चिंताग्रस्त होता है तो वह आत्मकेंद्रित होता चला जाता है। कोई पुरुष जब निराशा, गुस्सा, तनाव, डर, आत्मग्लानि, अवसाद, अकेलेपन, बोरियत जैसी भावनाओं का शिकार हो रहा हो तो उसका जीवन बहुत कठिन हो सकता है। अक्सर होता यह है कि इन भावनाओं से लड़ रहा व्यक्ति चुप रहना शुरू कर देता है और उसके आसपास के लोग उसकी हालत का अंदाजा भी नहीं लगा पाते। यही नहीं, अगर कभी हिम्मत करके वह व्यक्ति किसी को अपनी बात कहना भी चाहे तो लोग उसके दर्द की गहराई को समझे बिना उल्टी-सीधी सलाहें देने लगते हैं और अपनी ही लड़ाई लड़ रहा वह व्यक्ति और भी खामोश हो जाता है।
जब हम अपनी चिंताएं और उन चिंताओं से जुड़ी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते तो हमारा संघर्ष कहीं ज्यादा दुखदायी हो जाता है, हम अकेले पड़ जाते हैं और हमें कोई रास्ता नहीं सूझता। यह चिंता अक्सर लगातार बनी रहे, गहरी और गाढ़ी होती रहे तो यह अवसाद में बदल सकती है और फिर किसी गंभीर बीमारी का कारण बन सकती है। चिंता, डर, फोबिया, अवसाद, अकेलेपन की भावना, निराशा, आत्मग्लानि, बोरियत आदि भावनाओं से ग्रसित व्यक्ति धीरे-धीरे खुद पर से नियंत्रण खो देता है और सबके लिए परेशानी का कारण बन जाता है। इन भावनाओं से ग्रसित व्यक्ति कुछ साधारण क्रियाकलापों से इन परिस्थितियों का सामना कर सकता है और आवश्यकता होने पर किसी प्रशिक्षित मनोचिकित्सक अथवा आध्यात्मिक चिकित्सक की सेवाएं ले सकता है। प्रकृति के सान्निध्य में समय बिताना, कोई हॉबी पाल लेना, छोटे बच्चों के साथ खेलना, अपने किसी प्रियजन के साथ समय बिताना, किसी की प्रशंसा करना, किसी की सहायता करना, स्वादिष्ट भोजन लेना, मनपसंद संगीत सुनना, अपनी पसंद की किताबें पढऩा आदि ऐसे काम हैं जिनसे व्यक्ति अपने भटके हुए मन को संभाल सकता है।
इसी तरह पुरानी खुशनुमा यादों को दोबारा याद करके भी व्यक्ति परेशानियों के क्षणों में भी मुस्कुरा सकता है। ये छोटे-छोटे साधन हैं जो बहुत आसान हैं और आप किसी भी स्थिति में हों, दुनिया के किसी भी कोने में हों, इन्हें आजमा सकते हैं। स्थिति गंभीर होने पर किसी मनोचिकित्सक या किसी आध्यात्मिक चिकित्सक की सलाह भी ले सकते हैं। भारतवर्ष में स्पिरिचुअल हीलर या आध्यात्मिक चिकित्सक को लेकर ज्यादातर लोगों के पास कोई विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध नहीं है। लोग आध्यात्मिक चिकित्सक के नाम से ही कन्फ्यूज हो जाते हैं। उनके मन में जो छवि उभरती है वो किसी साधु-संन्यासी की छवि होती है, जबकि स्पिरिचुअल हीलर का साधु-संन्यासी होना आवश्यक नहीं है। गुस्सा, डर, आत्मग्लानि, पछतावा, अकेलापन आदि भावनाओं को लेकर कोई मनोचिकित्सक आपके व्यवहार को बदलने के लिए काउंसिलिंग करता है तो भी वह मूलत: आपके चेतन मन से बात करता है जबकि एक आध्यात्मिक चिकित्सक आपके चेतन मन के साथ-साथ आपके अवचेतन मन को भी जागृत करके आपको अपनी समस्या से रूबरू करवाता है और फिर एक मार्गदर्शक के रूप में उसका समाधान करने में आपकी सहायता करता है। इस तरह से स्पिरिचुअल हीलर असल में मनोचिकित्सक से भी एक कदम आगे जाकर आपका मार्गदर्शन और इलाज करता है।
स्पिरिचुअल हीलिंग प्रोसेस, यानी आध्यात्मिक चिकित्सा की प्रक्रिया में अक्सर पांच चरण होते हैं। सबसे पहले तो आध्यात्मिक चिकित्सक आपकी परेशानी को गहराई से समझने का प्रयत्न करता है और आपको उस परेशानी से पार पाने के सामान्य तरीके बताता है, यह पहला चरण है। उसके बाद वह आध्यात्मिक उपचार की प्रक्रिया आरंभ करता है। इसमें सबसे पहले आपको प्राणायाम या विभिन्न तरह की श्वसन क्रिया से मन को शांत करता है और फिर रिलैक्सेशन की प्रक्रिया की शुरुआत होती है। योग चिकित्सक अक्सर नींद की बीमारी से परेशान व्यक्ति के लिए जिस योग-निद्रा की विधि का उपयोग करते हैं जो इस रिलैक्सेशन प्रक्रिया का ही एक प्रकार है। उसके बाद आध्यात्मिक चिकित्सक आपको विश्राम की गहरी अवस्था में ले जाकर आपको आपके अवचेतन मन तक ले जाता है। यह अपने ही अंतर्मन में गहरे उतर कर अंतर्मन को जगाने की प्रक्रिया है। अंतर्मन का जागरण आध्यात्मिक उपचार का तीसरा चरण है। अंतर्मन के जागरण के बाद आध्यात्मिक चिकित्सक अपने मार्गदर्शन से आपको अपनी समस्याओं के सही स्वरूप को समझने और उनका उपचार करने में सहायक होता है। यह आध्यात्मिक उपचार का चौथा चरण है। इस चरण की समाप्ति के बाद आप फिर से अपनी सामान्य अवस्था में वापस आते हैं और आध्यात्मिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में आपका चेतन मस्तिष्क सारी स्थिति का विश्लेषण करता है। यह आध्यात्मिक चिकित्सा का पांचवां और अंतिम चरण है। सामान्य रूप से आध्यात्मिक उपचार के चार सैशन में ही अधिकतर समस्याओं का समाधान हो जाता है। कभी-कभी तो एक या दो सैशन भी काफी होते हैं।
कुछ गहरी समस्याओं में चार से अधिक सैशन की आवश्यकता पड़ सकती है। पर नशा छुड़ाने या कुछ अनचाही आदतों को बदलने के लिए आठ-दस सैशन भी जरूरी हो सकते हैं। स्पिरिचुअल हीलिंग के सैशन आपको आपके सबकांशस माइंड की गहराइयों में ले जाएगा और आप स्पिरिचुअल हीलिंग का अनुभव और आनंद ले सकेंगे। यह सच है कि टेंशन, लगातार की थकावट, नर्वस होने, गुस्सा करते रहने, दुखी रहने, उदास, निराश या हताश रहने, अकेलापन महसूस करने, डर या फोबिया होने, नींद न आने की शिकायत होने, आत्मविश्वास या फोकस की कमी होने आदि अवस्थाओं में आध्यात्मिक उपचार सर्वाधिक उपयोगी एवं प्रभावी उपचार पद्धति होती है। इसके साथ ही कामकाज, खेलकूद अथवा पढ़ाई की कठिनाइयां समझने और उनका हल करने के लिए आवश्यक मानसिक दृष्टिकोण बनाने में भी आध्यात्मिक उपचार पद्धति अत्यंत कारगर है, और यह भी सच है कि स्पिरिचुअल हीलिंग से हालांकि कई बार कई शारीरिक व्याधियों का भी इलाज हो जाता है, लेकिन यह दवाइयों या पारंपरिक चिकित्सा का विकल्प नहीं है। किसी भी शारीरिक बीमारी की अवस्था में आपको अपने डाक्टर से सलाह लेना नहीं भूलना चाहिए। चिकित्सा विज्ञान यह स्वीकार करता है कि हमारी ज्यादातर शारीरिक व्याधियों का कारण भी मानसिक है और मानसिक विकारों अथवा समस्याओं के समाधान के लिए आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति सर्वाधिक अनुकूल, उपयोगी और प्रभावी पद्धति है। आध्यात्मिक उपचार पद्धति में दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए न तो कोई साइड इफैक्ट होता है, न ही कोई और जोखिम है। बड़ी बात यह है कि आध्यात्मिक उपचार ऑनलाइन भी संभव है। अत: यह सर्वाधिक सुरक्षित होने के साथ-साथ किफायती भी बहुत है। एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति होने के बावजूद इसकी जानकारी का अभाव है, वरना इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अगर आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति को बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाए तो हमें नए अस्पताल बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और यह भी संभव हो सकता है कि बहुत से अस्पताल खाली हो जाएं। अगर हम सचमुच चिंता छोडक़र सुख से जीना चाहते हैं तो हमें यही करना होगा।
पीके खु्रराना
राजनीतिक रणनीतिकार
ई-मेल: [email protected]
By: divyahimachal
चिंता छोड़ो, सुख से जियो
Rani Sahu
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