सम्पादकीय

नफरत की पत्थरबाजी

Rani Sahu
12 April 2022 7:06 PM GMT
नफरत की पत्थरबाजी
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मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के पावन दिन ‘रामनवमी’ पर पत्थरबाजी, नफरत के बोल, हिंसा, आगजनी, दंगों की खतरनाक नौबत और मांसाहार की जिद आदि की घटनाएं कई सवाल और संदेह पैदा करती हैं

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के पावन दिन 'रामनवमी' पर पत्थरबाजी, नफरत के बोल, हिंसा, आगजनी, दंगों की खतरनाक नौबत और मांसाहार की जिद आदि की घटनाएं कई सवाल और संदेह पैदा करती हैं। पहला सवाल तो यह है कि क्या हम एक 'केला गणतंत्र' के हिस्से में रह रहे हैं? क्या हिंदू बनाम मुस्लिम, रामनवमी बनाम रमजान, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, देश की विविधता आदि मनःस्थितियां बेहद गहरे समा गई हैं? क्या हम दुराग्रही हो गए हैं? क्या धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार खोखला और अप्रासंगिक है? क्या हिंदुओं के त्योहार मुसलमानों को भड़काते और उकसाते हैं? रमजान का 'पाक महीना' और 'ईद' तो आपसी सद्भाव और सौहार्द्र के साथ मनाए जाते रहे हैं। हिंदू भी इफ्तारी में शिरकत करते हैं। क्या अब इतनी असहिष्णुता फैल गई है कि किसी ने कोई भजन गा दिया अथवा विवादित बयान दे दिया, तो बदले में हिंसा भड़क उठेगी? पथराव और आगजनी की घटनाएं शुरू कर दी जाएंगी?

या सांप्रदायिक दंगों की नौबत पैदा हो जाएगी, जिनमें हत्याएं भी संभव हैं? यदि ऐसे उग्र हालात पैदा होते रहेंगे, तो यह देश सबका कैसे रहेगा? धार्मिक, जातीय, नस्लीय और क्षेत्रीय विविधता को एक 'राष्ट्रीय गुण' कैसे माना जाएगा? इस बार रामनवमी के दिन देश के आधा दर्जन राज्यों के कई शहरों में जो हिंसक उत्पात और नफरत की पत्थरबाजी सामने आई है, वे न तो संयोग हैं और न ही प्रयोग हैं। वह सांप्रदायिक विभाजन की स्पष्ट स्थिति है। मध्यप्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में जो 'तांडव' कराए गए, वे घोर निंदनीय और शर्मनाक हैं। संविधान और कानून का सरेआम उल्लंघन हैं। कानूनन उनके साजि़शकारों और दंगाइयों को दंडित किया जाना चाहिए। मप्र के खरगोन में कर्फ्यू लगाना पड़ा। करीब 40 मकानों और दुकानों में आग लगा दी गई। करीब 130 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है। ऐसे ही नफरती दृश्य अन्य राज्यों में भी सामने आए हैं। मप्र में सरकार के आदेश पर दंगाइयों की विवादित संपदाओं पर बुलडोजर चलाकर उन्हें 'मिट्टी' और 'मलबा' बनाया गया है। सजा के ऐसे ढंग पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन सरकार ने तमाम कानूनी प्रक्रियाओं पर सोचा होगा और अदालतों को भी आपत्ति नहीं होगी। सवाल यह है कि कौन-सी मस्जिद पर हिंदुओं ने हमला किया? किस मस्जिद को ढहाने या विध्वंस की कोशिश की गई? ऐसे सवालों के जवाब में मुसलमानों के कठमुल्ला नेता या प्रवक्ता सिर्फ सोशल मीडिया का हवाला देते हैं। उनके पास कोई सबूत या दलील नहीं है। यदि मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, तो पत्थरबाजी और आगजनी क्यों की गई?
क्या मुसलमान इंसाफ भी खुद तय करेंगे? यदि किसी कथित बाबा ने मुस्लिम औरतों के बलात्कार करने की सार्वजनिक बात कही है, तो उसे कानून के कटघरे में लाया जाए। उसकी प्रतिक्रिया हिंसक नहीं होनी चाहिए। किसी व्यक्ति के निजी बयान पर एक भरे-पूरे समुदाय को जख्मी नहीं किया जा सकता। सबसे खतरनाक और असहिष्णु घटना राजधानी दिल्ली के जेएनयू परिसर में हुई है। यह विश्वविद्यालय विश्व के 100 श्रेष्ठ शैक्षिक संस्थानों में एक है। ख्याति है, गुणवत्ता है, भविष्य की होनहार पीढ़ी तैयार की जा रही है, लेकिन उस विश्वविद्यालय के परिसर में अक्सर दंगात्मक टकराव होते रहे हैं। भारत के 'टुकड़े-टुकड़े' करने की नकारात्मक हुंकार भी यहीं भरी गई। रामनवमी पर किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? हॉस्टल में मांसाहार और शाकाहार दोनों ही बनते रहे हैं। वह विवाद का मुद्दा नहीं है। रामनवमी क्यों नहीं मनाई जा सकती थी? वामपंथी एक घिसा-पिटा शब्द अक्सर बोलते और लिखते रहे हैं-फासिस्ट। इस विशेषण में वे आरएसएस, भाजपा और उनके सहयोगी संगठनों को लपेटते रहे हैं। जेएनयू में वामपंथियों का जनाधार अभी शेष है। छात्रों में भी वही संस्कार भरे जाते हैं, लिहाजा हिंदूवाद का विरोध होता रहा है और अफजल जैसे आतंकी के लिए शर्म के साथ आंसू बहाए जाते हैं। उस परिसर में रामनवमी के दिन ऐसी हिंसा की गई कि 60 से ज्यादा छात्र जख्मी हुए हैं। छात्र दोनों पक्षों के हैं। पुलिस ने दोनों ही पक्षों की प्राथमिकी लिखी है। विडंबना है कि एक गरिमामय शैक्षिक संस्थान को सांप्रदायिक आधार पर बांट कर रखा हुआ है।

क्रेडिट बाय दिव्यहिमाचल

Rani Sahu

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