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हाल ही में कियारा आडवाणी ने एक इंटरव्यू में कहा कि ‘शेरशाह’ में शूट के दौरान सेट पर एक एक्टिंग कोच भी थे
हाल ही में कियारा आडवाणी ने एक इंटरव्यू में कहा कि 'शेरशाह' में शूट के दौरान सेट पर एक एक्टिंग कोच भी थे। वे हमारे प्रदर्शन की बारीकियां सुधारते थे। कियारा की बात सुनकर मैं 25 साल पहले यादों में चली गई। उस वक्त क्या सिद्धार्थ मल्होत्रा के कद के स्टार ऐसा करते थे? सच कहें तो आज के स्टार्स को एहसास हो चुका है कि अब सिर्फ स्टार रहकर काम नहीं चलेगा। एक्टिंग की बारीकियां या तो सीखकर आएं या सेट पर सीखें। 25 साल पहले ऐसा नहीं था। खासकर अभिनेत्रियों के मामले में।
तब उनके रोल ज्यादातर वही होते थे कि तीन गाने करने हैं, दो-तीन रोने-धोने के सीन। तब किरदार के लिए तैयारी होती भी तो हॉर्स राइडिंग सिखा दी या डांसिंग करवा ली। एक्टिंग करवाने के लिए तब हीरोइन को सिर्फ रोशन तनेजा के पास ले जाते थे। अनुपम खेर का एक्टिंग स्कूल तो काफी साल बाद आया। हॉर्स राइडिंग और डांसिंग के अलावा स्टंट की ट्रेनिंग दी जाती थी। अदाकारी के लिए किसी ने क्या किया, वह मामला नेपथ्य में रहता था।
अजय देवगन जब 'फूल और कांटे' से लॉन्च हुए तो ट्रेड और क्रिटिक बिरादरी में इसे लेकर बात थी कि उन्होंने स्टंट कैसे सीखे। अजय का फिल्म में बाइक पर जो फ्लिप था, वह किसी और ने नहीं किया था। अब आज का स्टार सेट पर एक्टिंग कोच रखता है। ताकि परफॉरमेंस में सुधार आए। कुछ हफ्ते पहले करण जौहर ने भी कहा कि अब कोई स्टार नहीं है। अब अगर एक्टिंग नहीं कर सकते तो कुछ नहीं कर सकते। कुछ लोग हैं जो शुरू से ही बेहतरीन एक्टिंग कर रहे हैं। 'मसान' से ही सब समझ चुके थे कि विकी कौशल की एक्टिंग में दम है। बहुत से ऐसे स्टार भी हैं, जिन्होंने काम करते-करते अभिनय सीखा।
हालांकि इंडस्ट्री में जो स्टार कल्चर है वह कहीं नहीं जाएगा। ओटीटी वाले भी अब तक बड़े बजट वाली फिल्मों में बड़े चेहरे ही देखते हैं। पर आज स्टार वो ही बनेगा, जिसे एक्टिंग आती हो। वरना पहले के दौर में तो ऐसा भी हुआ कि एक बड़े स्टार के मैनेजर ने ऐसे शख्स से एक्टिंग में आने को कहा, जिसे एक्टिंग नहीं आती थी। उस शख्स की विशेषज्ञता किसी और चीज में थी। पर मैनेजर का कहना था कि अरे यार एक्टर बनने के लिए एक्टिंग आना जरूरी नहीं है। पहले के दौर में कुछेक स्टार ऐसे रहे, जो सिर्फ किस्मत की दम पर स्टार बने थे।
आज की पीढ़ी में रणवीर सिंह और रणबीर कपूर दोनों स्टार और एक्टर दोनों हैं। रणबीर कपूर ने एक बार कहा था कि बेहतर एक्टर बनना है तो या तो डायरेक्टर के प्यार में पड़ जाओ या फिर उसे अपने प्यार में गुम कर दो। रणवीर सिंह के बारे में सुनते हैं कि जब वे 'पद्मावत' के लिए खिलजी की भूमिका कर रहे थे तो उन्होंने महीनों मीट खाया। कहने का मतलब है कि आप सिर्फ सेट पर क्या कर रहे हैं, वह बात मायने नहीं रखती। आप उस किरदार को जीने के लिए और क्या कुछ कर रहे हैं, वह भी मायने रखता है।
राजकुमार राव ने 'ओमेरटा' में आतंकी के किरदार के बारे में कहा कि दिल्ली में शूट के वक्त वे किरदार में पूरी तरह डूबे हुए थे। जब पत्रलेखा उनसे मिलने आईं तो राजकुमार का रंग-ढंग देखकर डर गई थीं। अब स्टार इस हद तक अपने किरदार में डूबते हैं, तब जाकर पर्दे पर उनका किरदार जीवंत होता है। अतिरिक्त प्रयास करने ही होंगे। अब ऐसा नहीं होने वाला कि किसी का बेटा या बेटी होने से कोई अच्छा डायरेक्टर फिल्म ले ही आएगा। आज आलम यह है कि बड़े प्रोडक्शन हाऊस के यहां एक स्टाफ है जो इंडस्ट्री पर नजर रखता है कि कौन-सा एक्टर, क्या कमाल का काम कर रहा है।
अनुपमा चोपड़ा
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