सम्पादकीय

स्पिलट थीअरी ऑफ हिमाचल

Rani Sahu
3 Oct 2022 7:06 PM GMT
स्पिलट थीअरी ऑफ हिमाचल
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By: divyahimachal
चुनावी हवाओं की फरमाइश कुछ ऐसी कि सियासी दामन के दाग भी उड़ रहे हैं अपनी सोहबत लिए। हिमाचल का आगामी चुनाव सीधी वकालत का करिश्मा नहीं हो सकते, इसलिए 'स्पिलट थीअरी' का भी मजमून तैयार है। यंू ही कोई मुख्यमंत्री प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के परिवार को निमंत्रण नहीं दे सकता, लेकिन यहां तो बिसात है और दावत भी कि भाजपा के मंच बोल रहे हैं, 'प्रतिभा जी का स्वागत है'। यह निमंत्रण सादगी पूर्ण तो नहीं, साजिशी होकर भी कांग्रेस के भीतर फासले चुन रहा है। हर असंभव को संभव बनाने में जुटी भाजपा ने 'विभाजन' की रेखाओं पर कांग्रेस और 'आप' के तरबूज काटे हैं। जो पार्टी पहले ही कांग्रेस के खाते से दो विधायक छीन कर ले जा चुकी हो या जिसकी मंडी पर हर्ष महाजन और सुखराम परिवार के बिकने की खबर हो, उसकी क्षमता में हर चीरहरण जायज हो सकता है। बेशक अभी ईडी और आयकर के पेंच में कोई कांग्रेसी सामने नहीं आया, लेकिन फाइलें तो पहले ही कुछ चेहरों को संदिग्ध बना चुकी हैं। ऐसा नहीं कि 'विभाजन' के संकट केवल कांग्रेस का गोत्र बदल सकते हैं, चिंता की सरगर्मियां भाजपा के मोहल्ले में भी हैं। वहां भी 'स्पिलट थीअरी' का कीड़ा काट सकता है। किसी भी पार्टी के टिकटों के तहखाने सुरक्षित नहीं हैं, इसलिए सूचियां अभी पर्दे में हैं और महत्त्वाकांक्षा के ढोल शांत हैं।
हिमाचल में विभाजन की सियासत पर आसरा लगाए बैठी आम आदमी पार्टी के लिए अपने शुभारंभ के नगीने खोने का दंश मौजूद है, फिर भी भाजपा-कांग्रेस के भटके नेताओं की आवभगत में कोई कसर बाकी नहीं रहेगी। एक तरह से अपनी आरंभिक दौड़ में काफी आगे निकलते हुए 'आप' ने जो संभावना तराशी, उसकी मिट्टी खराब हो चुकी है या इस पार्टी के प्रति जनता की दृष्टि चुरा ली गई। हिमाचल में कांग्रेस जिस रफ्तार से जनता के विमर्श और राजनीतिक इतिहास के निष्कर्ष में आगे रही, उसे भी 'स्पिलट थीअरी' का फालिज हुआ है, वरना अब तक मुद्दों की रवानगी से सत्तारूढ़ दल आजिज आ जाता। अपने उम्मीदवारों के नाम पर मोहर लगाने में माहिर साबित होते-होते, कांग्रेस ने अब विराम चुने हैं, तो इस ऐहतिहात में टूटने का खतरा और बिखरने की नौबत का अंदेशा जाहिर है। कमोबेश ऐसे ही दंश से गुजर रही भाजपा के लिए देहरा और जोगिंद्रनगर की मिस फील्डिंग कितनी तोडफ़ोड़ करेगी, यह चुनाव की अनुमानित बढ़त का कंकाल भी हो सकती है। हिमाचल में बिरादरियों में बंटा टिकट आबंटन अपनी नई तासीर में कितनी कहानियां लिखेगा, इसके ऊपर फिलहाल कयास हैं, लेकिन आरक्षित वर्गों के अलावा राजपूत, ब्राह्मण, ओबीसी के गणित में कई 'स्पिलट', कई दरारें उभर सकती हैं। भले ही हिमाचल में धर्म की दीवारें नहीं और न ही ऐसे किसी मुद्दे की चढ़त चढ़ती हो, लेकिन जातिगत मसलों में खोने-पाने की संगत जरूर है।
आज भी कुछ वर्ग वोटों के विभाजन को एकतरफा उंडेलने का सामथ्र्य रखते हैं, इसलिए उम्मीदवारों के चयन में गुणवत्ता का अभाव स्पष्ट है। इसी राज्य में ऐसी कई जातियां हैं जिनका योगदान प्रदेश के विविध पहलुओं को रोशन करता है, लेकिन जातीय समीकरणों के कारण इनके प्रतिनिधित्व की शून्यता है। हैरानी यह कि हिमाचल में अब 'धरती पुत्र या पुत्री' के नाम पर विभाजक रेखाएं पैदा की जा रही हैं और इनको हवा देते कई वरिष्ठ नेता भी देखे जाते हैं। विडंबना यह है कि भाजपा का राष्ट्रीय स्तर का परिवारवाद विरोधी नारा हिमाचल में गूंज कर भी अर्थहीन है, क्योंकि पलक पांवड़े बिछा कर जब पार्टी 'सुखराम परिवार' को आसरा देती है या जब स्व. देश राज महाजन के सुपुत्र को धारण करती है, तो यही आत्मबोध भयभीत करता है। हिमाचल 'स्पिल्ट थीअरी' का सबसे बड़ा कारक और कारण कर्मचारी सियासत है जिसे हर बार सत्ता साधती है, लेकिन विरोध में खड़े होने का चुंबकीय प्रभाव शांत नहीं होता, इसलिए आगामी चुनाव की धुरी पर विभाजन के कई चक्कर काटे जा रहे हैं।
Rani Sahu

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