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प्रचंड ऊर्जा के स्रोत सरदार...आप बहुत याद आते हैं
विष्णु पंड्या। सरदार वल्लभ भाई पटेल के मूल्यांकन की कोई आधारशिला हो सकती है? भारत के सार्वजनिक जीवन में ही इसका प्रत्युत्तर मिल जाता है। वर्ष 1947 से पहले लंबे वक्त तक स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष कर जिन हस्तियों ने स्वाधीन भारत के आरंभिक वर्षों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सक्रियता दिखाई, उनकी प्रतिभा के सृजन में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि वे व्यापक संघर्ष के हालात से भी सफलतापूर्वक पार निकले और प्रभाव छोड़ा।
इन हस्तियों ने जो मूल्यवान निरीक्षण किया वह था, राजनीतिक स्वतंत्रता और सत्ता हस्तांतरण के बाद संसदीय लोकतंत्र की मूलभूत तत्वों के साथ-साथ नेतृत्व और जनता को कैसे एक सूत्र में पिरोया जाए। इन दो कसौटियों पर तत्कालीन महापुरूष कितने खरे उतरे, यही उनके मूल्यांकन के मानदंड हो सकते हैं। सरदार के जवानी के 47 वर्ष ब्रिटिश साम्राज्यवाद की घनघोर गुलामी में बीते। वे महज 3 वर्ष और कुछ महीने स्वतंत्र भारत में रह पाए।
उन्होंने पराधीन व स्वतंत्र भारत की जिन समस्याओं का सामना किया, उसकी भी आधी शताब्दी बीत चुकी है। सरदार आज होते तो वैश्वीकरण से लेकर बाजारवाद तक या कश्मीर-पूर्वोत्तर भारत से चीन-पाकिस्तान तक से जुड़े मुद्दों का कैसे मूल्यांकन करते, इन समेत तमाम मुद्दों पर अनुमान बदलते वक्त की जटिलताएं सुलझाने की दृष्टि देता है।
सरदार ने अपने वक्त में जटिल चुनौतियों का कैसे सामना किया, कैसी रणनीति बनानी पड़ीं होंगी, कैसे सख्त और वक्त के अनुकूल निर्णय लेकर दूरदृष्टि के कौशल का परिचय देना पड़ा होगा, इनके लिए क्या-क्या करना पड़ा होगा, इनके बारे में आज भी विचार करने से हम आश्चर्य से भर जाते हैं। एक ही शख्सियत इतनी प्रचंड ऊर्जा का स्रोत! सरदार ने हर पहलू और स्तर पर ऐसी भूमिका निभाई जो वर्तमान में हमारे नेतृत्व और कर्तव्य दोनों के लिए अनिवार्य है।
सरदार ने नेतृत्व को नीति से जोड़ा और इस राह में आने वाली तमाम चुनौतियों से जूझने की शक्ति सांस्कृतिक भूमिका के आधार पर सृजित की। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान सरदार ने 3 आयामों से काम किया। सेवा, संगठन और सामूहिक जनआंदोलन, इन तीन 'स' से सरदार की धीरज के साथ राह दिखाने वाली सशक्त शख्सियत ने आकार लिया।
कॉर्पोरेशन में सरदार वल्लभ भाई के योगदान को लेकर यह कहने का मन होता है कि अगर संगठन को नेतृत्व देते तो मौजूदा वक्त के तमाम मुद्दों का निराकरण हो गया होता। उनके सार्वजनिक जीवन की दीर्घ और कठिन यात्रा राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में ऐसे अनुकरणीय मूल्यों का बीजारोपण कर गई, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वल्लभभाई कठोर सच्चाई से साक्षात्कार करवाते गए और सतर्क करते गए।
इन कारणों से यह दीर्घकालीन राजनीतिक का अमिट अध्याय था। स्वतंत्रता से पहले का उनका संघर्ष भी बहुत कुछ सिखाता है। कठलाल से उनके सत्याग्रह का श्रीगणेश हुआ और बारडोली सत्याग्रह ने बैरिस्टर वल्लभभाई को 'सरदार' में तब्दील कर दिया। नागपुर सत्याग्रह में तो उन्हें खुद गांधीजी ने जेल जाने कहा। असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक, सरदार अगुवाई करने वालों में से एक थे।
इसी तरह 1931 में कराची से राष्ट्रीय महासभा के सभापति के स्थान को सुशोभित किया। भविष्य में स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री पद छोड़ने को तैयार वल्लभभाई को अध्यक्षता करने के मामले में देर-सबेर होने का कोई रंज नहीं था। सरदार संगठन को जीवन देने वाली महान शख्सियत थे। जमीनी सच्चाई से भी वाकिफ थे इसलिए सत्याग्रह, आंदोलन, पार्टी और कार्यकर्ताओं को एक सूत्र से कैसे बांधे रखना है, इसके लिए कहां विनम्रता और कहां सख्ती की जरूरत है, उसका उन्हें पूरा ख्याल रहता था।
ऐसे विलक्षण महामानव की विराट प्रतिमा (स्टेच्यू ऑफ यूनिटी) समूचे राष्ट्र-राष्ट्रीय जीवन को गौरवान्वित कर रही है। कह रही है: राष्ट्रे जागृयाम वयम्! लौहपुरुष को जन्म जयंती पर इससे अधिक श्रेष्ठ स्मरणाजंलि और क्या हो सकती है?
Rani Sahu
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