सम्पादकीय

बंदरों के खास उद्गार

Rani Sahu
25 Aug 2023 7:06 PM GMT
बंदरों के खास उद्गार
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सुबह बाग में घूमने गया तो देखा वरिष्ठ बंदर आम के वृक्षों पर बैठे सोच रहे हैं कि इस साल इन वृक्षों पर आम नहीं लगे, लेकिन पिछले साल इन दिनों खूब आम खाए। हमने कभी इनसानों की तरह पेड़ नहीं गिने। बंदरों के आसपास इनके बच्चे फुदक रहे हैं। उछलना, कूदना सीख रहे हैं। इनसानी दुनिया के पैंतरों से अभी अनजान हैं। एक बच्चे को भूख लगी तो बोला, यहां खाने के लिए कुछ नहीं है, क्या सामने जो कूड़ा पड़ा है, इसमें से ही ढूंढ कर खाना पडेगा। बंदरू पापा ने उन्हें बताया कि चतुर इनसान ने ही हमारे पुराने आशियाने उजाड़े हैं, इसलिए हमें ताजा कंद, मूल फल की जगह इनका फेंका, जूठा, बासी, सड़ा हुआ हर कुछ खाना पड़ता है। डबलरोटी भी कई दिन बासी होती है, पेट बड़ी मुश्किल से भरता है। कितनी बार सोच चुका हूं कि मर जाऊं। ये तो हमें मारते भी नहीं। इनके यहां एक चीज़ होती है, धर्म, यह सब उसमें अंधे हुए हैं। दूसरा बंदर बच्चा बोला, हां हां, मां बता रही थी कि एक और कुछ होता है, कानून, बताते हैं बड़ी सख्त लेकिन नर्म चीज़ होती है।
उसमें हमें मारने की अनुमति होती है, लेकिन…। इनके समाज में होते हैं…वन्यजीव प्रेमी, वो भी हमें मारने नहीं देते, लेकिन हमारे जीने और खाने का प्रबंध करना उनके बस में नहीं होता। एक शासकीय विभाग होता है, वन विभाग जिसके राजा की आज्ञानुसार हमें पकड़ा जाता है, हमारी नसबंदी करके वहीं छोडऩा होता है जहां से पकड़ा होता है, लेकिन कहीं और ही छोड़ देते हैं। हमारी मां तो हमें चिपका कर घूमती रहती है। इनके यहां ऐसा नहीं होता क्या। छोटी बंदरिया बोली, अरे यह तो अब बच्चे ही पैदा नहीं करना चाहते। एक शिशु बंदर ने पूछा, क्या इनसान भी लड़ते हैं। उसे बुज़ुर्ग बंदर ने बताया, हम बंदर तो सिर्फ हाथ से लड़ते हैं, कभी कभी दांत भी प्रयोग करते हैं, लेकिन इनके यहां तो बहुत पंगे हैं। यह तो जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, राजनीति को भी हथियार बना लेते हैं। ज़्यादा पंगा बढ़ाना हो, तो तलवार, डंडे, बन्दूक, बम और आग भी इस्तेमाल करते हैं। अपने बच्चों को डराते रहते हैं। अच्छा, इनका तो बहुत बुरा हाल है, नया बंदर बोला। बुज़ुर्ग बंदरी ने कहा, बहुत बिगड़े हुए हैं यह लोग। हम तो बंदर हैं न, तुम चिंता न करो, हम सब बंदर सभी को एक जैसा समझते हैं।
आपस में समान व्यवहार करते हैं। सुना करते थे कि इनसान मानवता, सद्व्यवहार, अच्छाई के पैरोकार होते हैं, मगर यह सब देखने में ही ऐसे लगते हैं। वास्तविकता कुछ और है। यह तो जानवरों के नाम पर पकाई योजनाओं का पैसा भी हज़म कर जाते हैं। युवा बानर बोला, इसका मतलब इस दुनिया में भेदभाव, असमानता बहुत है। दूसरा बोला, यहां बहुत बचकर चलना पड़ता है, चौक्कने रहना पड़ता है। इनके डंडे, पत्थर, घुड़कियों को सहना पड़ता है। लम्बी छलांगे लगानी सीखनी पड़ती है। इन्हें डराना सीखना पड़ता है, कभी कभी काटना भी पड़ता है। बंदरु, यहां तो बड़े पंगे हैं, मुझे तो लगा था कि जंगल में रहने का मौक़ा मिलेगा, शुद्ध कंद मूल फल, जल और वायु मिलेगी। छोटी बंदरिया बोली, भूल जा, अब तो दुनिया के जंगल में ही रहना पड़ेगा।
प्रभात कुमार
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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