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कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस पार्टी ने बड़ा दांव खेल दिया। 24 साल बाद एक बार फिर कांग्रेस परिवार का वफादार पुन: अध्यक्ष बनने जा रहा है। गुरुवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से माफी मांगते हुए यह कहा कि वह कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सीएम पद पर बना रहूंगा कि नहीं सोनिया गांधी तय करेंगी। इसके बाद कांग्रेस में संशय की स्थिति बनी रही।
इस बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए कूद पड़े। आनन-फानन में उन्होंने नामांकन पत्र भी ले लिया। लेकिन शुक्रवार को अचानक संसद में कांग्रेस प्रतिपक्ष के नेता गांधी परिवार के भरोसेमंद मल्लिकार्जुन खड़गे की एंट्री हो गई। हालांकि इस पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे की एंट्री होते ही दिग्विजय सिंह ने अपनी दावेदारी वापस ले ली । खड़गे गांधी परिवार के करीबी हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अब दक्षिण राज्यों के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच मुकाबला होगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि खड़गे के नाम के प्रस्ताव को लेकर जिस तरीके से कांग्रेसी नेता आगे आए हैं उसके बाद उनकी जीत तय नजर आ रही है। गुरुवार देर रात तक सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के बीच नए अध्यक्ष को लेकर मीटिंग हुई, जिसके बाद शुक्रवार सुबह खड़गे को 10 जनपथ पर बुलाया गया था। गांधी परिवार के बैकडोर सपोर्ट की वजह से खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। सबकुछ सही रहा तो खड़गे कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बनेंगे। जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 44 सीटों पर ही सिमट गई। मोदी लहर में पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए। ऐसे में कर्नाटक के गुलबर्ग से आने वाले खड़गे ने अपनी सीट बचा ली, जिसका उन्हें फायदा मिला। कांग्रेस ने लोकसभा में उन्हें पार्टी का नेता बनाया। दक्षिण भारत से होने के बावजूद खड़गे सदन में हिंदी में ही अपनी बातें रखते रहे। राहुल गांधी के उठाए गए राफेल से लेकर नोटबंदी के मुद्दे को खड़गे ने लोकसभा में बखूबी उठाया, जिससे वे टीम राहुल में भी शामिल हो गए। हालांकि 2019 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन जल्द ही राज्यसभा के जरिए खड़गे ने सदन में एंट्री कर ली। बाद में पार्टी ने गुलाम नबी को हटाकर खड़गे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि खड़गे गांधी परिवार का नया संकटमोचक के रूप में उभरे हैं।
2019 में महाराष्ट्र में जब धुर-विरोधी उद्धव के साथ सरकार बनाने की बात आई, तो पार्टी ने खड़गे को ही प्रभारी बनाकर वहां भेजा। खड़गे सोनिया के इस मिशन को वहां कामयाब करने में सफल रहे। इतना ही नहीं, जुलाई महीने जब ईडी सोनिया-राहुल को पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाई थी, उस वक्त संसद में विरोध का मोर्चा खड़गे ने ही संभाला था। खड़गे मनमोहन कैबिनेट में श्रम विभाग के मंत्री थे, बाद में उन्हें रेल मंत्रालय का जिम्मा भी दिया गया। साल 1972 में वह पहली बार विधायक बने। इसके बाद वे 2008 तक लगातार विधायक चुने जाते रहे। साल 2009 में पार्टी ने उन्हें गुलबर्गा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया। इसके बाद वह लोकसभा पहुंचे। वह लगातार दो बार 2009 और 2014 में सांसद बने। खड़गे अपने राजनीतिक करियर में नौ बार विधायक रह चुके हैं। खड़गे का नाम 2 बड़े विवादों में आ चुका है। साल 2000 में कन्नड़ सुपरस्टार डॉ. राजकुमार का चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण कर लिया था। उस वक्त खड़गे प्रदेश के गृह मंत्री थे, जिसके बाद विपक्ष ने उनकी भूमिका पर सवाल उठाया। वहीं, इसी साल नेशनल हेराल्ड केस में ईडी ने उनसे पूछताछ की थी। हेराल्ड केस में मनी लॉन्िड्रंग का आरोप है। हालांकि अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
सोर्स- JANBHAWANA TIMES
Rani Sahu
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