- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कश्मीर में जहर के...
कश्मीर घाटी में अरबीकरण व बहावीकरण, जिनके कारण पिछले कुछ दशकों से वहां अलगाववाद व कट्टरता फली-फूली है, के मूल स्रोतों की यदि जांच-पड़ताल की जाए तो सबसे पहले जमायते इस्लामी का नाम सामने आता है। यह संस्था बहुत पुरानी है। भारत विभाजन से पहले से ही कार्यरत है। दरअसल इसका नाम जमायते इस्लामी हिंद है। यह हिंदोस्तान भर के उन लोगों का, जिनके पूर्वज तुर्क-मुगल काल में कभी मतांतरित हो गए थे, अरबीकरण करने का प्रयास करती रही है। दरअसल यह प्रक्रिया दोहरी है। इसके अनुसार पहले भारतीयों को मतांतरित किया जाता है जिसका अर्थ है कि वे अपना पंथ या मजहब छोड़ कर इस्लाम मजहब को स्वीकार कर लें। लेकिन जमायते इस्लामी के लिए मामला यहीं समाप्त नहीं हो जाता। इस प्रक्रिया का दूसरा चरण है कि वे अब अपनी भारतीय संस्कृति, विरासत और भाषा-लिपि छोड़ कर अरबी संस्कृति, विरासत व भाषा-लिपि को भी अपना लें। यही प्रक्रिया अरबीकरण कहलाती है। जमायते इस्लामी हिंद अरसे से इसी काम में लगी हुई थी। लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि अरबीकरण की प्रक्रिया को पश्चिमोत्तर भारत या सप्त सिंधु क्षेत्र में आसानी या तेज़ी से किया जा सकता था क्योंकि वहां की अधिकांश आबादी का इस्लामीकरण पहले ही हो चुका है, तो जमायत ने भारत विभाजन का समर्थन करना शुरू कर दिया।