सम्पादकीय

कहीं गरमी, कहीं बारिश

Triveni
2 July 2021 2:15 AM GMT
कहीं गरमी, कहीं बारिश
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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान भीषण गरमी और लू से तप रहे हैं, जबकि पूर्वोत्तर भारत और बिहार में थोड़ी और बारिश होने पर बाढ़ का खतरा है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान भीषण गरमी और लू से तप रहे हैं, जबकि पूर्वोत्तर भारत और बिहार में थोड़ी और बारिश होने पर बाढ़ का खतरा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने बुधवार को कहा कि 7 जुलाई तक उत्तर पश्चिम भारत के शेष हिस्सों में मानसून के आगे बढ़ने की संभावना नहीं। देश में मानसून की बारिश भी तब तक बेहद कमजोर रहेगी। मानसून की उत्तरी सीमा में 19 जून के बाद प्रगति नहीं हुई है। ऐसे में, वह अभी दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, राजस्थान व पंजाब तक नहीं पहुंच पाया है। आईएमडी ने कहा है कि मध्य अक्षांश की पश्चिमी हवाओं के कारण मानसून कमजोर पड़ गया है। पूर्वी हवाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं, तो मानसून भी ठहर गया है। अनुमान के अनुसार, पूर्वी हवाओं में 7 जुलाई से पहले जोर नहीं पैदा होगा। इसका अर्थ है, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब को बारिश के लिए करीब दस दिन तक इंतजार करना पड़ सकता है।

30 जून तक उत्तर-पश्चिम भारत में 10 प्रतिशत से अधिक बारिश दर्ज की गई है। मध्य भारत में 17 प्रतिशत अधिक, दक्षिण प्रायद्वीप पर चार प्रतिशत अधिक, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में तीन प्रतिशत अधिक, पर दिल्ली तप रही है। और तो और, मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में अगले दो दिन व उससे अधिक समय तक लू चलने की संभावना है। विडंबना देखिए, अगले छह-सात दिनों के दौरान बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और पूर्वोत्तर राज्यों में भारी वर्षा की संभावना है। जिन इलाकों में बारिश हुई है, वहां जरूरत से कुछ ज्यादा है। ज्यादातर खेतों में पानी लगा है, तो धान की बुआई के लिए किसानों को इंतजार करना पड़ रहा है। नदी, नाले लबालब हैं। खराब सड़कों पर पानी भरने से चलना मुहाल हुआ है, लेकिन दिल्ली में लोग बारिश और राहत के लिए तरस रहे हैं। कहीं ज्यादा, तो कहीं कम बारिश की वजह से खेती पर भी असर पड़ रहा है। पिछले साल भी असमय बारिश या गैर-आनुपातिक बारिश के चलते फसलों और उत्पादन पर असर पड़ा था।
इसमें कोई शक की बात नहीं कि हम मौसम की अतिरेकी या प्रतिकूल स्थितियों से जूझने में बहुत सफल नहीं हैं। जब ज्यादा बारिश की स्थिति बनती है, तब भी हम आर्थिक या व्यावसायिक रूप से काफी प्रभावित होते हैं और जब कम बारिश होती है, तब भी हम जरूरत भर का पानी नहीं जुटा पाते। ऐसे में, अनेक बार नदियों को जोड़ने या नहरों का जाल बिछाने की बात होती है। सामूहिक रूप से किसानों और उनके साथ मिलकर स्थानीय प्रशासन को सोचना चाहिए कि खेतों में जमा होने वाले अतिरिक्त पानी को कैसे किसी सूखे तालाब या नदी तक पहुंचाया जाए। दूसरी ओर, गरमी और लू वाले इलाकों में भी जरूरी इंतजाम होने चाहिए। लोगों को राहत देने के लिए क्या प्रबंध किए जा सकते हैं? जल के अभाव से कैसे बचा जा सकता है? अधिक गरमी और लू की वजह से मौसमी बीमारियों में भी बढ़ोतरी होती है, अत: क्या व्यक्तिगत स्तर पर लोगों को पर्याप्त जागरूक किया गया है? क्या अस्पताल के स्तर पर तैयारियां पूरी हैं? अतिरेकी मौसम वाले देश भारत में प्राथमिक स्तर पर ही शिक्षण-प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से मिलना चाहिए, ताकि लोग मौसम के साथ बेहतर तालमेल बिठा सकें।


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