सम्पादकीय

धर्मशाला से कुछ यूं निकली थी जन-गण-मन की धुन

Rani Sahu
30 Oct 2021 7:00 PM GMT
धर्मशाला से कुछ यूं निकली थी जन-गण-मन की धुन
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कैप्टन राम सिंह की इबारत को आजादी के पन्नों से हासिल करके कोई लेखक साहित्य की इबादत बना सकता है

कैप्टन राम सिंह की इबारत को आजादी के पन्नों से हासिल करके कोई लेखक साहित्य की इबादत बना सकता है, तो यह कार्य राजेंद्र राजन ने अपने नए प्रकाशन 'कैप्टन राम सिंह ठाकुर – जन गण मन धुन के जनक' के माध्यम से पेश किया है। आज तक इन नायक को समझने, उसके भीतर बहते संगीत को महसूस और एक स्वतंत्रता सेनानी की पूर्णता को विश्लेषित करने की जो कमी रही, उसी को पूरा करते हुए राजंेद्र राजन की यह पुस्तक अपनी विविधता, तर्कशीलता, ऐतिहासिक विवरण तथा विमर्श के साथ सामने आती है, तो लेखक की साधना का अनुमान इसलिए भी लगाया जा सकता है कि उन्हें किताब को आकार देने के लिए वर्षों की यात्रा करनी पड़ी।

किताब खुद में लेखकीय शिद्दत की कहानी है, जहां महज चार साल तो कैप्टन राम सिंह के वंशजों को खोजने में लग जाते हैं। राष्ट्रगान जन गण मन को भारतीय अस्मिता का प्रतीक बनाती धुनें, कभी धर्मशाला की मांझी-मनूनी जैसी खड्डों की तरह मस्ती में बहती, इतराती, तो कभी धौलाधार के अंचल में सैन्य पृष्ठभूमि के जोश में पलती रही होंगी। कुल 64 धुनें तैयार करने वाले कैप्टन राम सिंह ऐसे सैन्य पराक्रम की अनूठी मिसाल पेश करते हैं, जो देश को आजादी का पैगाम देने के लिए जिस हाथ में बंदूक थामते थे, उसी में संगीत के वाद्य यंत्र थाम कर राष्ट्रीय गान के पुरोधा बन जाते हैं। किताब के भीतर कैप्टन राम सिंह अपनी चारित्रिक ऊष्मा के साथ पेश होते हैं और जहां भारत के साथ नत्थी गोरखा इतिहास भी पलकें खोलता है। किताब कभी राम सिंह के आत्मकथ्य सरीखी, कभी शोध से परिपूर्ण और कभी आजादी की लड़ाई में मशगूल हो जाती है। आजाद हिंद फौज में युद्ध करते नायक के लिए गीत लिखना व संगीत रचना एक जुनून के मानिंद रहा।
संगीत को वह जीवन की पराकाष्ठा बना देते हैं। उनके रिश्ते फिल्म उद्योग में नाजिर हुसैन के साथ जुड़ते रहे, जो स्वयं में आजाद हिंद सेना के ही सैनिक थे। कैप्टन राम सिंह अपने साक्षात्कार में बताते हैं कि किस तरह जापानी बाशिंदे महात्मा गांधी को आदर देते हुए किसी कैदी को जीवनदान तक दे देते हैं। किताब के भीतर राम सिंह के जीवन के कई पहलू उजागर होते हैं और उनकी किस्सागोई उभर कर सामने आती है। पुस्तक राम सिंह के माध्यम से सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व तक पहुंचती है तथा उन रिश्तों को टटोलती है जिनके भीतर आजादी के लिए ताप व संघर्ष पैदा होता है। नेता जी ने राम सिंह को स्वर्ण पदक देने के तात्पर्य को कुछ इस तरह लिखा, 'आज हम अपनी आरजी हुकूमत व सुप्रीम कमांड आजाद हिंद फौज की तरफ से कैप्टन राम सिंह को उनकी संगीत रचना के लिए पदक दे रहे हैं। खास तौर पर आजाद हिंद फौज के कौमी तराना जिसको हुकूमत ने बांग्ला भाषा से हिंदी में अनुवाद किया। वह इस प्रकार था, 'शुभ सुख चैन की बरखा बरसे- भारत भाग्य है जागा।' इसकी धुन और आज हमारे राष्ट्रीय गान की धुन में कोई अंतर नहीं।'
लेखक ने अपने शोध में साबित किया है कि राष्ट्रगान की धुन पर व्यर्थ में विवाद पैदा किया गया, जबकि लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) लक्ष्मी सहगल पायनियर में छपे अपने लंबे पत्र 'आईएनए' नेशनल एंथम एंड कैप्टन राम सिंह में कहती हैं, 'निश्चित रूप से कैप्टन राम सिंह एक बहादुर गोरखा सिपाही थे। उनमें संगीत की विलक्षण प्रतिभा थी। राम सिंह ने जन गण मन के जिस म्यूजिकल स्कोर को तैयार किया था, उसे जर्मनी भेजा गया, जहां उसे फुल मिलिट्री और ऑरकेस्ट्रा के साथ प्रस्तुत किया गया था। यह संगीत की अविस्मरणीय व ऐतिहासिक धुन साबित हुई।' पुस्तक के नौ अध्यायों में कैप्टन राम सिंह ठाकुर को पहली बार राष्ट्रीय फलक पर वह सम्मान मिल रहा है, जिसे हासिल करने के लिए हिमाचल का यह नायक आज तक कहीं सघर्ष करता रहा। धर्मशाला के खनियारा क्षेत्र में घूमते लेखक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की वह मिट्टी खोज निकाली जहां से चिराग बन कर निकले कैप्टन राम सिंह ने संगीत की वह राह खोज निकाली थी, जहां पूरा देश राष्ट्रगान गाता हुआ गौरवान्वित होता है।
– निर्मल असो
पुस्तक का नाम: कैप्टन राम सिंह ठाकुर – जन गण मन धुन के जनक
संपादक: राजेंद्र राजन
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली
कीमत: 500 रुपए


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