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- मिट्टी का जीवन
Written by जनसत्ता; हमें अपना जीवन जीने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र में उपस्थित प्रत्येक जीव एवं प्रत्येक तत्त्व की आवश्यकता होती है। तभी हम अपने जीवन को अस्तित्व में बनाए रख सकते हैं। लेकिन हम लगातार देख रहे हैं कि इस भूमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व मृदा का स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ता चला जा रहा है जो हमारे लिए और हमारी पीढ़ियों के लिए बेहद भयावह होगा। हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि मृदा भूपर्पटी का केवल हिस्सा नहीं, बल्कि मानवीय जीवन की शैली को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
भूमंडल पर उड़ने वाला 95 फीसद भोजन मृदा में ही उत्पादित होता है। इसके अलावा वायुमंडल की तुलना में मृदा तीन गुना अधिक कार्बन को धारण कर सकती है। इसके अतिरिक्त लगभग प्रत्येक जीव का जीवन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मृदा के बेहतर स्वास्थ्य से ही जुड़ा है। अगर मृदा जिंदा है तो हम सब जिंदा। यह जंगल-पहाड़ जिंदा है, प्रत्येक जीव जिंदा है। स्वच्छ जल हमें प्राप्त होता है, प्रत्येक स्तर का जीव जिंदा है। हमारे शरीर के लिए जरूरी सभी तत्त्व इसी से प्राप्त होते हैं। जैसे फास्फोरस, नाइट्रोजन, आयरन आदि।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में मृदा का बेहतर स्वास्थ्य और उसकी बेहतर गुणवत्ता होना बहुत जरूरी है, क्योंकि भारत में बारह महीने खेती की जाती है और देश की बड़ी आबादी इस क्षेत्र में कार्यरत है। इसके अलावा इसका देश की अर्थव्यवस्था में भी अतुलनीय योगदान है। मृदा की आज वर्तमान इस दुर्दशा के लिए कोई प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय गतिविधियां ही ज्यादा जिम्मेदार है।
जैसे हमारे जीवन में प्लास्टिक का लगातार बढ़ता उपयोग, कृषि जगत में तात्कालिक आर्थिक लाभ कमाने की भावना से प्रेरित ने भयंकर रूप से कीटनाशकों प्रयोग बढ़ाया है। साथ ही प्रशिक्षित किसानों का अभाव एवं परंपरागत पद्धति पर खेती करना, बड़े-बड़े उद्योगों द्वारा अपशिष्ट एवं हानिकारक पदार्थों का गलत निष्कासन, जल और वायु प्रदूषण का बढ़ना प्रमुख कारण है। इसलिए जरूरी हो गया कि अब हम समय के साथ और अति गंभीर हो और इन समस्याओं का समाधान जल्द से जल्द करें।
हम मृदा संरक्षण के लिए कुछ नए उपाय कर सकते हैं। हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि मृदा की सुरक्षा करना किसी देश, सरकार संस्थान, व्यक्ति या किसी धर्म विशेष की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह एक पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि हम इसकी सुरक्षा के लिए सामूहिक रूप से एकजुट हों। हमें किसानों को इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अपनानी चाहिए उन्हें प्रशिक्षित करके उन्हें संसाधन उपलब्ध कराकर।
फिर प्रभावशाली वर्ग इस अभियान में आगे आए। प्रभावशाली वर्ग ऐसे वर्ग से हैं, जिनको एक बड़ा जनसमूह सुनता हो समझता हो। इसमें नेता, अभिनेता, साहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी, खिलाड़ी आदि सभी शामिल हैं। इन्हें अपनी लोकप्रियता का इस सामाजिक कल्याण के लिए जरूर करना चाहिए। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले बड़े आयोजनों में जैसे ओलंपिक, फीफा विश्व कप, क्रिकेट वर्ल्ड कप, आइपीएल, आस्कर पुरस्कार, नोबेल पुरस्कार आदि मृदा संरक्षण को लेकर जनमानस को जागरूक किया जाए।
इसके अलावा, मृदा संरक्षण के अभियान को सकारात्मक प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जाए और कल्याणकारी योजनाओं को और प्रभावशाली तरीके से लागू किया जाए। उदाहरण के लिए भारत सरकार की मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना। बेहतर मृदा स्वास्थ्य का विषय शिक्षा के हर स्तर पर अनिवार्य रूप से जोड़ा जाए। अभी हम कुछ इन मूलभूत हो मुद्दों पर नियंत्रण कर लेते हैं तो निश्चित तौर पर हम इस क्षेत्र में क्रांति ला सकते हैं। अन्यथा केवल कागजी आंकड़े हमारे लिए बेहतर नहीं होंगे।
देश के अनेक भागों में हिंदी पर अनावश्यक रूप से विवाद खड़ा किया जा रहा है। भारत के संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया है, क्योंकि हिंदी देश की सबसे ज्यादा स्वीकार्य भाषा है। हमारे राजनीतिक दल अपने हिसाब से हिंदी के पक्ष और विपक्ष में खड़े हो गए हैं। यहां तक कि हिंदी के प्रश्न पर बालीवुड के सितारे भी बंटे हुए नजर आ रहे हैं। यह समझ से परे हैं।
हालांकि यह भी कहा जा सकता है कि इस मसले पर अलग-अलग धारणाएं और क्षेत्रीय राजनीति के नफा-नुकसान के हिसाब-किताब भाषा से जुड़े सवाल पर हावी हैं। हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोलने वाली और व्यवहारिक भाषा है। उत्तर भारत के राज्यों में हिंदी में काम किया जाता है। हिंदी आम बोलचाल की भाषा है और दक्षिण एवं उत्तर भारतीयों के बीच सांस्कृतिक सेतु का काम करती है।
भारत एक विशाल देश है, जहां पर देश की सभी भाषाओं को फलने-फूलने का अवसर मिलता है। दक्षिण भारत की फिल्में आज भारत में धमाल मचा रही हैं, जिन्हें देखने वालों की एक बड़ी संख्या हिंदी भाषी क्षेत्रों की है। सभी भारतीयों को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि भारत की सभी भाषाएं भारत की हैं और सभी भाषाओं को समृद्ध एवं व्यवहारिक बनाने के लिए हम सभी भारतीय प्रयास करें। इसके लिए सभी राज्यों में भाषा संबंधित एकेडमी बनाकर एक बड़ा योगदान दे सकते हैं। लोकगीतों के माध्यम से भाषा को समृद्ध कर सकते हैं।
कुछ दिनों से भीषण गर्मी पड़ रही है, जिससे सभी लोग परेशान हैं और इस भीषण गर्मी में पानी और बिजली लोगों का सहारा होती है। भीषण गर्मी में पानी अमृत समान होता है और बिजली लोगों को गर्मी से बचाने में सहायक होती है। चिलचिलाती गर्मी में लोगों के सामने बिजली पानी की समस्या उत्पन्न होने लगी है। बिजली कटौती से पानी की भी दिक्कत होने लगी है, क्योंकि आज के जमाने में बिजली नहीं तो पानी नहीं वाली बात है। दो-तीन दिनों तक बिजली न आने से पीने के पानी की समस्या होने लगी है। एक तो पहले ही इस महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है और अब इस भीषण गर्मी में पानी और बिजली की कमी के कारण आम आदमी का हाल बेहाल हो गया है। अगर वक्त रहते सरकार ने बिजली-पानी की किल्लत से लेकर महंगाई जैसी समस्याओं पर काबू नहीं पाया तो देश को एक नए अंधेरे का सामना करना पड़ सकता है।