सम्पादकीय

छोटे पर्दे की भूमिका

Rani Sahu
19 Nov 2021 7:01 PM GMT
छोटे पर्दे की भूमिका
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वर्तमान समय में छोटे पर्दे का रोल बहुत बड़ा हो गया है

वर्तमान समय में छोटे पर्दे का रोल बहुत बड़ा हो गया है। 21 नवंबर को हम विश्व टेलीविजन दिवस मना रहे हैं। ऐसा कोई घर-परिवार समाज में न होगा, जहां इसे सम्मानजनक स्थान प्राप्त न हो। बदलते वक्त के साथ छोटे पर्दे में भी बहुत से बदलाव आए हैं। 80 के दशक में श्याम-श्वेत रंगों से शुरुआत करने वाले छोटे पर्दे में जहां सब रंगों का समावेश हुआ, वहीं डिजिटल क्रांति में उसने स्वयं को अप-टू-डेट भी किया है। इतना ही नहीं, एक समय में टेलीविजन के पर्याय के रूप में दूरदर्शन का नाम लिया जाता था और आज टेलीविजन में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चैनल्स की भरमार है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार चैनल्स का चयन कर सकता है, फिर चाहे वह धार्मिक कार्यक्रम, समाचार या फीचर फिल्म क्या देखना चाहता है, उसके पास बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं।

बच्चों, बूढ़ों, युवाओं और महिलाओं के साथ-साथ हर वर्ग और आयु के व्यक्तियों की पसंद का ध्यान रखा जाता है। बल्कि सच तो यह है कि आज के समय में बड़े पर्दे से अधिक लोग छोटे पर्दे को पसंद कर रहे हैं। किसी समय बुद्धू बक्से के नाम से जाना जाने वाला टेलीविजन अब बुद्धिमान कहा जाने लगा है। बल्कि अब तो इसे 'छोटा सिनेमा की उपमा भी दी जा सकती है। संपूर्ण विश्व का दर्शन कराने वाला टीवी आज सब की जरूरत बन चुका है। बच्चों के मनोरंजन से संबंधित कार्टून से लेकर विद्यार्थी के रूप में इच्छित उनकी शिक्षण सामग्री तक सब कुछ उपलब्ध करवाने में इसका विशेष योगदान है। कोरोना काल में भी इसने अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है और मोबाइल फोन की ही तरह शिक्षण सामग्री को बच्चों तक पहुंचाने में बहुत मदद की है। किसी समय जब टीवी पर केवल एक ही चैनल दूरदर्शन हुआ करता था, उस समय भी इसकी भूमिका अद्वितीय थी। सिनेमा जगत को अनेक चमकते सितारे देने का श्रेय टेलीविजन को भी जाता है। सच तो यह है कि पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने का महत्वपूर्ण काम करने का श्रेय कुछ हद तक टेलीविजन को भी जाता है। टीवी आज मानव जीवन में अनेक रंग भर रहा है।
-यश गोरा, कांगड़ा


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