सम्पादकीय

शिवराज पाटिल का ब्लॉग: सभी के साथ बराबरी में विश्वास रखने वाले किसी को कभी नहीं कहते थे कोई अपशब्द, जवाहरलाल दर्डा कांग्रेस के विचार धारा से थे काफी प्रभावित

Rani Sahu
2 July 2022 5:53 PM GMT
शिवराज पाटिल का ब्लॉग: सभी के साथ बराबरी में विश्वास रखने वाले किसी को कभी नहीं कहते थे कोई अपशब्द, जवाहरलाल दर्डा कांग्रेस के विचार धारा से थे काफी प्रभावित
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मैंने जवाहरलाल दर्डा में व्यावहारिक ज्ञान, राजनीतिक ज्ञान, तकनीकी ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के सुंदर संगम का अनुभव किया है


By लोकमत समाचार सम्पादकीय
मैंने जवाहरलाल दर्डा में व्यावहारिक ज्ञान, राजनीतिक ज्ञान, तकनीकी ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के सुंदर संगम का अनुभव किया है. दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है. उन्हें इस बात का पूरा एहसास था कि अगर ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी ज्ञान को आत्मसात न किया तो कालबाह्य होने में समय नहीं लगेगा. लेकिन उन्होंने साथ ही साथ अध्यात्म की शिक्षा को भी आत्मसात कर लिया था.
जवाहरलाल दर्डा ने सबके साथ किया बराबरी का व्यवहार
बाबूजी राजनेता थे, मंत्री थे, 'लोकमत' के संस्थापक-संपादक थे, लेकिन कभी भी अपने बड़प्पन की डींग नहीं हांकी. अपने सामने दूसरों को छोटा माना हो, ऐसा नहीं था. उन्होंने सबके साथ बराबरी का व्यवहार किया. किसी के लिए भी उन्होंने अपशब्द कहे हों, मुझे याद नहीं.
अपने राजनीतिक जीवन में बाबूजी ने पार्टी के प्रति निष्ठा को बड़ा महत्व दिया. पंडितजी, इंदिराजी, राजीवजी ही नहीं, कांग्रेस की विचारधारा को मानते हुए उसे सहारा दिया. इसके लिए उन्होंने अपने परम मित्र, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक का भी राजनीतिक साथ छोड़ दिया था.
राजनीति में परम मित्र का साथ छोड़ा लेकिन कांग्रेस के विचारों से जुड़े रहे
लेकिन उन्होंने कांग्रेस के विचारों को नहीं छोड़ा था. इसके पीछे उनकी दूरदृष्टि थी. मैंने उनके शहर यवतमाल में, उनके ही घर पर कांग्रेस में प्रवेश किया था. उस समय हेमवतीनंदन बहुगुणा वहां आए थे. मैं उस समय से उन्हें देख रहा था, उन्होंने कभी किसी की बुराई नहीं की. जीवन के प्रति उनकी निष्ठा का यह प्रमाण था.
बाबूजी के 'लोकमत' ने अकारण कभी किसी की बदनामी नहीं की. इसी कारण 'लोकमत' सामान्य जन का समाचार पत्र बन सका. उनके साथ काम करने वाले लोग एक-दूसरे के लिए जी-जान लगा देते थे.
सहयोगियों को तैयार करना और उन्हें संभालकर रखना दर्डाजी के लिए आसान काम था
इस तरह के सहयोगी तैयार करना और उन्हें संभालकर रखना कोई आसान काम नहीं, लेकिन दर्डाजी ने इसे बड़ी सहजता से किया. ये कंपनी हमारी अपनी है-इस तरह का वातावरण बनाने की क्षमता दर्डाजी में थी और मेरा मानना है कि इसे भी अध्यात्म का संस्कार माना जाएगा. इस संस्कार में मानवता का प्राधान्य होता है.
इसके आधार पर जो नेतृत्व तैयार होता है वह अमर रहता है. विजय दर्डा मेरे साथ राज्यसभा में थे. उन पर और उनके भाई राजेंद्र दर्डा पर बाबूजी के संस्कारों की छाप मैं देखता आ रहा हूं. दर्डाजी की जन्मशताब्दी के अवसर पर उनका हार्दिक अभिवादन.
Rani Sahu

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