सम्पादकीय

शिमला रैली के लाभार्थी

Rani Sahu
31 May 2022 7:25 PM GMT
शिमला रैली के लाभार्थी
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काफी अपना सा था काफिला, मगर उसके कदमों ने हमारी जगह नहीं दी

काफी अपना सा था काफिला, मगर उसके कदमों ने हमारी जगह नहीं दी। मोदी सरकार के आठ सालों की शहनाइयां जिस शिमला की गूंज के साथ ताल मिलाती रहीं, उन्हें यह खबर नहीं कि पहाड़ के संगीत में कहां दर्द रहा होगा। जाहिर है समारोह शानदार प्रदर्शन की नीयत से हिमाचल को पर्व का माहौल देता रहा, लेकिन क्या इसी अपेक्षा में प्रदेश की जनता अपने प्रधानमंत्री की प्रतीक्षा करती रही। इसमें दो राय नहीं कि अपने रंग, ढंग और शब्दावली के दम पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी भावनाओं को 'तेरी से मेरी' तक जोड़ा, लेकिन कहीं रिश्तों के सुकून को ऐसा वादा नहीं मिला, जो किस्मत बदल दे। आर्थिक संसाधनों से महरूम और बढ़ते कर्ज बोझ के नीचे हिमाचल की हसरत भरी निगाहें जो ढूंढ रही थीं, वह मुकाम कम से कम शिमला रैली में तो नहीं आया। अमृत महोत्सव का घड़ा यहां आकर छलका नहीं, जबकि उनके प्रशंसक और आलोचक भी मानते हैं कि 'मोदी है तो मुमकिन है' की भूमिका में अगर हिमाचल के रास्ते उत्तराखंड की तरह परवान चढ़ते, तो मंजिलें कुछ और होतीं। प्रधानमंत्री ने एम्स, ड्रोन, वन रैंक वन पेंशन, पर्वतमाला परियोजनाओं और अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों की 'वाइब्रेंट योजना' का जिक्र करके हिमाचल का कृतज्ञ मन टटोला जरूर, लेकिन हिमाचल की गागर में केंद्र की उदारता का सागर दिखाई नहीं दिया।

इसमें भी दो राय नहीं कि शिमला से हिंदोस्तान और हिंदोस्तान से शिमला का महत्त्व बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने आत्मीय रिश्तों की बागडोर फिर थामी और जिक्र के भाव में कुल्लू की पूलों से काशी विश्वनाथ तक के पदचिन्ह जोड़े, लेकिन देश या उनके लिए पर्वतीय प्रदेश कितना महत्त्वपूर्ण है, यह अनुवाद कहीं यथार्थ के आंकड़ों में अटक गया। पहली बार केंद्रीय योजनाओं की पूरी धाम शिमला में लगी, लेकिन क्या इससे हिमाचल का पेट भरा। वहां प्रधानमंत्री की प्रशंसा की तूलिका हिमाचल का शृंगार अवश्य करती रही, लेकिन इसी के बगल में शिमला व धर्मशाला स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की विडंबना नहीं मिटी। वह हिमाचल को पर्यटन के नक्शे पर रख देते हैं, लेकिन 21 ग्रीन फील्ड हवाई अड्डों की सूची में मंडी एयरपोर्ट का नाम नहीं रखते। कांगड़ा हवाई अड्डा को विस्तार का प्रश्रय नहीं देते। प्रधानमंत्री चाहते तो पर्वतीय राज्य के वर्षों से पंजाब पुनर्गठन, वन संरक्षण अधिनियम व कोटे पर सेना में भर्ती के बंधक हिमाचली अधिकारों को मुक्त करवा देते। पर्वतीय परियोजनाओं के मानदंड बदलकर वित्तीय पोषण के मानदंड सरल कर देते ताकि तब स्मार्ट सिटी जैसी परियोजनाओं में केंद्रीय हिस्सेदारी का 90ः10 का अनुपात सुनिश्चित हो जाता है।
देश के लिए चार धाम एक्सप्रेस जैसी परियोजना देने वाले प्रधानमंत्री हिमाचल के मंदिरों पर आधारित भी तो कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट दे सकते थे। ऊना रेल को आगे 'मंदिर रेल परियोजना' का तोहफा बना देते, तो चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, दियोटसिद्ध, नयनादेवी, कांगड़ा व चामुंडा जैसे मंदिरों पर आधारित एक 'टैंपल सर्किट' बन सकता है। हाटी समुदाय के साथ-साथ, छोटा व बड़ा भंगाल तथा शिमला के कुछ इलाकों के लिए जनजातीय दर्जे की घोषणा भी हो जाती, तो रिश्तों में खनक पैदा होती। रैली के अपने कई सफल आयाम भी हैं और उनका सबसे बड़ा आशीर्वाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मिला। एक नजदीकी प्यार, पुचकार और प्रशंसा के पात्र मुख्यमंत्री रहे, तो यह अंकगणित मोदी का राजनीतिक शास्त्र है और इसके ऊपर जयराम ठाकुर निरंतर खरे साबित हुए हैं। कहना न होगा कि भाजपाई मुख्यमंत्रियों की पांत में जयराम का पाठ्यक्रम देश के प्रधानमंत्री को बार-बार प्रभावित करता है, देखना यह होगा कि चुनावी परीक्षा में यह कितना कारगर सिद्ध होता है। बहरहाल रैली के सबसे अहम किरदार व लाभार्थी हिमाचल के मुख्यमंत्री कहे जा सकते हैं।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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