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सम्पादकीय न्यूज
By NI Editorial
तथ्यात्मक और वस्तुनिष्ठ होने की सबसे बुनियादी शर्त का परित्याग कर चैनलों पर घटनाओं की मनमानी व्याख्या होती है। इसमें सिर्फ चैनलों के अपढ़-कुपढ़ एंकर या रिपोर्टर ही दोषी नहीं हैं।
भारत की मीडिया को लेकर दो घटनाक्रम ऐसे हैं, जिनसे समूचे मीडिया जगत को शर्म आनी चाहिए लेकिन भारत का मीडिया लाज-शर्म से परे हो गया है। पिछले दिनों प्रेस स्वतंत्रता की रिपोर्ट आई, जिसमें भारत आठ स्थान और नीचे गिर गया है। पहले 180 देशों की सूची में भारत का स्थान 142वां था, अब आजाद मीडिया की सूची में भारत 150वें स्थान पर पहुंच गया है। सोचें, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मीडिया आजादी के सूचकांक में डेढ़ सौवें स्थान पर है! पिछले आठ साल में इसकी रैंकिंग में 17 स्थान की गिरावट आई है। इसका मतलब है कि मौजूदा सरकार से पहले भी भारत का मीडिया कोई बहुत आजाद या तटस्थ-निष्पक्ष नहीं था। पहले भी उसकी स्थिति खराब ही थी, अब और खराब हुई है।
दूसरा बड़ा घटनाक्रम देश के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना का मीडिया पर दिया गया बयान है। उन्होंने कहा है कि भारत के न्यूज चैनलों की कोई जवाबदेही नहीं रह गई है। वे गंभीर से गंभीर मसले पर भी कंगारू कोर्ट लगा कर बैठ जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया में एक निश्चित जवाबदेही बची हुई है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया बिना जिम्मेदारी के हो गए हैं। चीफ जस्टिस की कही गई बात बहुत मायने वाली है क्योंकि हाल के दिनों में अपनी गैरजिम्मेदार रिपोर्टिंग और बहसों के जरिए चैनलों ने अनेक व्यक्तियों की छवि और साख को निजी तौर पर तो नुकसान पहुंचाया ही, समाज और देश को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया।
गंभीर से गंभीर सामरिक और धार्मिक या सांप्रदायिक मसलों पर सारे दिन न्यूज चैनलों पर बेसिर-पैर की खबरें और बहसें होती रहती हैं। तथ्यात्मक और वस्तुनिष्ठ होने की सबसे बुनियादी शर्त का परित्याग कर चैनलों पर घटनाओं की मनमानी व्याख्या होती है। इसमें सिर्फ चैनलों के अपढ़-कुपढ़ एंकर या रिपोर्टर ही दोषी नहीं हैं। देश की चुनी हुई सरकार और मीडिया समूहों के मालिक इसमें बराबर के दोषी हैं। मीडिया समूहों के मालिकों ने गुणवत्ता से समझौता किया है और अपने निजी लाभ के लिए इसकी नैतिकता को गिरवी रखा हुआ है। किसी न किसी भय से या अपने निजी लाभ के आगे वे इस कदर अंधे हो गए हैं कि उनको अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं हो रहा है। वे तात्कालिक लाभ के लिए देश के लोकतंत्र, संवैधानिक व्यवस्था और देश व समाज की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं।
Gulabi Jagat
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