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वर्ष 2003 में हिमाचल प्रदेश को मिले विशेष औद्योगिक पैकेज के पश्चात मेडिकल डिवाइस पार्क और बल्क ड्रग पार्क जयराम सरकार की दो ऐसी उपलब्धियां हैं जो प्रदेश की वित्तीय स्थिति को सुधारने के साथ-साथ बेरोजगारी को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होने वाली हैं। यह दोनों योजनाएं प्रदेश के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि जहां इन दोनों परियोजनाओं में 50 से 60 हजार करोड़ रुपए के निवेश की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं, वहीं प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से 50000 लोगों को रोजगार भी मिलना तय है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन से प्रदेश औद्योगिक विकास में नई उंचाइयों को छूने में सक्षम हो सकेगा।
केन्द्रीय रसायन व उर्वरक मंत्रालय द्वारा 1 सितम्बर 2022 को हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के हरोली तहसील में बल्क ड्रग पार्क के निर्माण को सैद्धांतिक मंजूरी दिए जाने को भले ही विपक्षी दल चुनावी राजनीति से जोड़ रहे हों, पर सच्चाई यह है कि मंत्रालय द्वारा इस परियोजना के लिए तय गए विभिन्न मापदंडों जैसे भूमि, जल, विद्युत के साथ-साथ आधारभूत ढांचे की उपलब्धता में 14 राज्यों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा में हिमाचल के खरा उतरने के पश्चात ही इसे प्रदेश को आबंटित किया गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का प्रदेश के प्रति स्नेह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जी का प्रभाव और केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का सकारात्मक रवैया इस योजना को लाने में सहायक सिद्ध हुए हैं, पर मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के संकल्पित प्रयास और अधिकारियों की दो वर्षों की अनथक मेहनत के चलते सफलता का सेहरा इसी टीम के सिर पर बंधेगा।
हिमाचल प्रदेश के लिए इस योजना का आबंटन इसलिए भी एक बड़ी उपलब्धि माना जाएगा क्योंकि 24 सितंबर 2021 को तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के साथ हिमाचल प्रदेश के नालागढ़ में मेडिकल डिवाइस पार्क की स्थापना हेतु केंद्र सरकार द्वारा 100 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाए जाने की सैद्धांतिक मंजूरी के पश्चात बल्क ड्रग पार्क की मंजूरी की संभावना लगभग 'न' के बराबर ही थी, क्योंकि यह माना जा रहा था कि जिन राज्यों को केंद्र सरकार मेडिकल डिवाइस पार्क का आवंटन कर चुकी है, उन्हें बल्क ड्रग पार्क का आवंटन नहीं किया जाएगा और विशेषकर तब, जब उत्तर भारत के तीन बड़े राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड इस परियोजना को हासिल करने की दौड़ में सिर धड़ की बाजी लगाए हुए थे। ऐसे में दोनों परियोजनाओं को हासिल करके प्रदेश सरकार ने सराहनीय कार्य किया है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ये दोनों योजनाएं कितनी महत्वपूर्ण हैं, इस बात का एहसास कोरोना काल के दौरान हुआ था। मार्च 2020 में जब देश में कोरोना ने अपनी दस्तक दी तो चीन से आयातित सक्रिय औषधि सामग्री (एपीआई) में कमी के कारण देश में जेनेरिक दवाइयों की कीमत में 50 से 60 फीसदी वृद्धि होने से हडक़ंप मच गया था। तैयार फार्मा उत्पाद यानी फार्मूलेशन के लिए इस्तेमाल होने वाले किसी भी पदार्थ को 'एपीआई' कहा जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो 'एपीआई' किसी भी दवा को बनाने का आधार होता है।
उस समय एपीआई का वार्षिक आयात 3.5 अरब डालर था जिसमें ढाई अरब डालर का आयात अकेले चीन से होता था। ऐसे में केंद्र सरकार ने देश में ही एपीआई में आत्मनिर्भर होने के लिए योजना तैयार की। परिणामस्वरूप वर्ष 2020 में कुछ प्रोत्साहन योजनाओं के साथ-साथ केन्द्रीय रसायन व उर्वरक मंत्रालय ने 400 करोड़़ के मेडिकल डिवाइस पार्क और 3000 करोड़ रुपए के बल्क ड्रग पार्क के निर्माण के लिए राज्यों से प्रतिस्पर्धात्मक प्रस्ताव मांग लिए। हिमाचल प्रदेश को वर्ष 2003 में मिले विशेष औद्योगिक पैकेज का सबसे ज्यादा फायदा फार्मास्युटिकल कंपनियों ने उठाया। देखते ही देखते हिमाचल के बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ (बीबीएन) क्षेत्र देश के फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज का हब बन गया। समय के साथ गुजरात, आंध्रप्रदेश और अन्य राज्यों ने भी इस उद्योग को अपने यहां सुविधाएं उपलब्ध करवाना शुरू कर दी जिसके चलते यहां से काफी कंपनियों ने अपनी यूनिट्स दूसरे राज्यों मे स्थानांतरित कर दिए। दूसरा एपीआई का आयात चीन से होने के कारण उसे हिमाचल तक पहुंचाने में परिवहन खर्चा भी बढ़ रहा था। ऐसी छोटी-छोटी मुश्किलों से गुजर रही हिमाचल की फार्मा इंडस्ट्री को कोरोना ने बड़ा झटका दिया जब चीन से आयात पूरी तरह से बंद होने पर एपीआई अर्थात कच्चे माल की बीबीएन में अत्यधिक कमी हो गई। दूसरा, देश में ज्यादातर एपीआई गुजरात और आंध्र प्रदेश में बनता है।
उसे वहां से यहां पहुंचाने में समय और धन दोनों की बरबादी हो रही थी। हिमाचल प्रदेश में एपीआई के निर्माण के लिए अगर ठोस कदम नहीं उठाए जाते तो आने वाले समय में हिमाचल से फार्मा इंडस्ट्री वैसे ही विलुप्त हो जाती जैसे प्रदेश से ग्लेशियर ख़त्म हो रहे हैं। भारतीय फार्मा उद्योग ने वर्ष 2021-22 में 175040 करोड़ रुपए का निर्यात किया जिसमें से लगभग 15000 करोड़ रुपए का निर्यात अकेले बीबीएन से हुआ है। हिमाचल में जीएसटी संग्रहण और रोजगार उपलब्ध करवाने का सबसे बड़ा केंद्र यही क्षेत्र है। एक तरह से कह सकते हैं कि यह प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है। इन दोनों योजनाओं के आवंटन से प्रदेश के फार्मा उद्योग को प्राण वायु मिली है। अगर मेडिकल डिवाइस पार्क और बल्क ड्रग पार्क प्रदेश को नहीं मिलते तो निश्चित रूप से प्रदेश को एक बहुत बड़ा झटका लगता और प्रदेश सरकार के लिए भी डबल इंजन सरकार की सार्थकता को सिद्ध करना मुश्किल हो जाता। यह दोनों परियोजनाएं हिमाचल के लिए इसलिए भी लाभदायक हैं क्योंकि जहां अन्य प्रदेशों को इस योजना का 30 फीसदी खर्च स्वयं वहन करना पड़ेगा, वहीं विशेष राज्य राज्य के दर्जे के चलते प्रदेश को सिर्फ 10 फीसदी खर्च ही वहन करना पड़ेगा।
प्रवीण कुमार शर्मा
सतत विकास चिंतक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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